Monday, November 16, 2015

चाहा जिसे था दिल के बंद दरवाजे ही मिले

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चाहा जिसे था दिल के बंद दरवाजे ही मिले ,
वो दोस्ती में मुझको बस अजमाते ही मिले |
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ज़ब्रो ज़फ़ा गरीबों पर जिस-जिस ने की अगर,
हर जुर्म खुद खुदा को वो लिखवाते ही मिले |

बदनाम वो शहर में पर, काबे का था मरीज़,
हर चोट भी ख़ुशी से सब बतियाते ही मिले |

वो यार था अजीजों सा, दुश्मन भी था मगर,
हर राज-ए-दिल उसे पर हम बतलाते ही मिले |

इस दौर में जिधर भी देखो गम ही गम हुए,
ऐ ‘हर्ष’ ज़िन्दगी में वो भी आधे ही मिले |

________हर्ष महाजन

ज़ब्रो ज़फ़ा = ज़बरदस्ती और अन्याय...
क़ाबे - House Of Allah In Mecca

बहर - r 2212 1222 2222 12

Monday, November 2, 2015

मेरी चिंता मत कर लेकिन, दिल की चिंता जारी रख

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मेरी चिंता मत कर लेकिन, दिल की चिंता जारी रख,
कितने बलवे झेले तूने, यारों से अब यारी रख |

उनके ज़ुल्मों से तंग आकर, मर्यादा मत भूलो तुम,
कर्मों का सब लेखा है ये,  अपना मन मत भारी रख ।

जब देखो वो सरहद पर, बारूदी खेलों में मशगूल,
ताँका-झांकी बंद न होगी अपनी भी तैयारी रख ।

कब तक बिजली गर्जन कर तू बादल पर मंडरायेगी,
पापी तुझको भूलें हैं सब, अपनी भागीदारी रख ।

मैखाने में गिर कर उठना पीने वालों का दस्तूर,
मत गिर जाना नज़रों से तू, इतनी तो खुद्दारी रख ।

_____________हर्ष महाजन ©

2222 2222 2222 222

Saturday, October 24, 2015

दिल चाहता है तुझसे कभी, ना गिला करूँ,

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दिल चाहता है तुझसे कभी, ना गिला करूँ,
इस ज़िन्दगी में तुझसे यही सिलसिला करूँ |

दिन भर शराब पी के हुआ,था मैं दरबदर,
अब ढूंढता हूँ चादर ग़मों की सिला करूँ |

नफरत थी जिन दिलों में, भुलाया नहीं मुझे,
दिल में बता खुदा, उनके, कैसे खिला करूँ |

अमन-ओ-अमां के साये ही जिनसे नसीब हो,
ऐसे चमन जमी दर ज़मीं काफिला करूँ |

तन्हा है सब सफ़र और तनहा हैं रास्ते,
अब सोचता हूँ तुझसे यहाँ ही मिला करूँ |

© हर्ष महाजन

2212 1221 2212 12

Tuesday, October 13, 2015

बन गया मैं यूँ खुदा, सूली पे चढ़ जाने के बाद

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बन गया मैं यूँ खुदा, सूली पे चढ़ जाने के बाद,
पत्थरों में पूजे मुझको, अब सितम ढाने के बाद |
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बनके पत्थर देखता हूँ, इंतिहा बुत परस्ती की,
फूल बरसाए है दुनियां, चोट बरसाने के बाद |

मैं था पागल इश्क में, उसको न जाने क्या हुआ,
लौ बुझा दी इस दीये की, इतना समझाने के बाद |

बे-वफाई छेदती है, नर्म दिल की परतों को,
हूर रुख्सत हो कभी दिल में वो बस जाने के बाद |

इतना रोया हूँ, मगर अब, अश्क आँखों में नहीं,
पत्थरों के शहर में पत्थर हुआ आने के बाद |

हर्ष महाजन ©

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Friday, October 9, 2015

किस तरह नादानियों में हम मुहब्बत कर गए

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किस तरह नादानियों में हम मुहब्बत कर गए,
दी सजा दुनियां ने हमको सारे अरमां मर गए |
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कब तलक खारिज ये होगी हक परस्तों की ज़मीं,
महके गुलशन तो समझना कातिलों के सर गए |
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बंदिशें अब बेटियों पर, आसमां को छू रहीं,
किस तरह बदला ज़माना, बरसों पीछे घर गए |
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प्यार की, हर पाँव से, अब बेड़ियाँ कटने लगीं,
नफरतों में, जुल्फों से, अब फूल सारे झर गए |
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लुट रही अस्मत चमन की, कागज़ी घोड़े यहाँ,
और फिर हाले-वतन भी, बद से बदतर कर गए |

हर्ष महाजन ©
2122 2122 2122 212

Thursday, October 8, 2015

बजता हूँ बन के साज तेरे मंदिरों में अब

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बजता हूँ बन के साज तेरे मंदिरों में अब,
देता तुझे आवाज तेरे मंदिरों में अब |
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मांगी थी मैंने उम्र की संजीदगी लेकिन,
क्यों इस तरह मुहताज तेरे मंदिरों में अब |
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मन जिसका देखूं दुश्मनी की नीव पे काबिज़,
कैसे करूँ परवाज़ तेरे मंदिरों में अब |
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बस रौशनी की खोज में भटका तमाम उम्र
पगला गया, नेवाज तेरे मंदिरों में अब |
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ले चल मुझे शमशान, कोई गम जहाँ ना हो,
मेरा गया हमराज, तेरे मंदिरों में अब |
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हर्ष महाजन ©

Wednesday, October 7, 2015

खिजाँ आयी है किस्मत में बहारों का भी दम निकले

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खिजाँ आयी है किस्मत में बहारों का भी दम निकले,
जहाँ ढूँढू मैं अरमां को , वहां अरमां भी कम निकले |

हजारों गम मेरे दिल में न मुझको राख ये कर दें ,
कहीं इन सुर्ख आँखों से नदी बन के न हम निकले |


तुम्हें लिख-लिख के ख़त अक्सर कभी मैं भूल जाता था,
पुराने ख़त दराजों से जो निकले आज, नम निकले |


किसी की जुस्तजू करके कि खुद को खो चुका हूँ मैं,
उधर से बेरुखी उनकी इधर दुनिया से हम निकले |


जगह छोड़ी है जख्मों ने कहाँ अब 'हर्ष' सीने में,
कहीं इन सुर्ख ज़ख्मों से न लावा बनके गम निकले |


हर्ष महाजन

Monday, October 5, 2015

अपनी साँसे भी मुझे अपनी सी लगती ही नहीं

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अपनी साँसे भी मुझे अपनी सी लगती ही नहीं,
बात इतनी सी मगर दिल से ये निकली ही नहीं |

दिल में आतिश है बहुत ये हुस्न बे जलवा नहीं
चाहता हूँ आग उसमें पर वो जलती ही नहीं |

शाम से शब ग़ैर की ज़ुल्फ़ों में जब करने लगे
रात ऐसी जो हुई फिर सुब्ह निकली ही नहीं |

जब तलक थे हमकदम, अपना सफ़र चलता रहा,
दरिया क़तरा जब हुवा, मंज़िल वो मिलती ही नहीं |

इस कदर रोया हूँ मैं आखें भी धुंधला सी गई,
आज कुछ बूँदे भी आँखों से निकलती ही नहीं |

हर्ष महाजन

Tuesday, July 21, 2015

जब कासिदों के संग दिखेगा अपना दीवाना

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कलयुग में खूब बिकेगा वो ईमान ही होगा,
इंसान का दुश्मन......यहाँ इंसान ही होगा |

दलदल बनेंगे रिश्ते....हर पोशाक पर पैबंद,
दिल खुद का देखें हम तो बेईमान ही होगा |

जब कासिदों के संग दिखेगा अपना दीवाना,
दुश्मन यहाँ दुश्मन का...कदरदान ही होगा |

आतंकियों की देश में अब जात नहीं होती,
अब दोस्तों मत कहना मुसलमान ही होगा |

बुजदिल करेंगे राज़.......राजदार नहीं होंगे.
नफरत यहाँ पर हर तरफ तूफ़ान ही होगा |

हर्ष महाजन

Thursday, July 16, 2015

किस तरह आता मुझे तेरा नशा पूछोगे

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इन हवाओं से कभी.....मेरा पता पूछोगे,
किस तरह आता मुझे तेरा नशा पूछोगे |

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तूने जो ली थी कसम मुझसे जुदा होने पर,
मेरी धड़कन की सदाओं से सजा पूछोगे |

अब तलक मैंने जलाईं थीं हजारों ही शमा,
यूँ अंधेरों में बता किस से पता पूछोगे |

बेरहम यादें चलीं आहों में आंधी की तरह,
है असर इतना कि कण-कण से खुदा पूछोगे |

जब से रातों में दिखे रूहें जुगनुओं की तरह,
था कहाँ मैंने जलाया था दीया पूछोगे |

_____________हर्ष महाजन

मेरा वादा है तुझे दिल से जुदा कर दूंगा

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मन के साए से तुझे खुद ही रिहा कर दूंगा,
मेरा वादा है तुझे दिल से जुदा कर दूंगा |


कैसे चाहत का तेरी दिल से कतल कर दूं मैं  
तूने चाहा तो अगर ये भी खता कर दूंगा |

मेरी आँखों से तू टपकेगा कभी बन के दर्द,

मुस्करा के तेरी खुशियों को हवा कर दूंगा |

सरहदों पर है अगर दिल के अँधेरा भी बहुत,

दिल में आतिश सी जलाकर मैं दिया कर दूंगा |
 
यूँ तो हर शख्स का है अपना मुक़द्दर लेकिन,

रिश्ता गर तुझसे जुड़ेगा मैं रिहा कर दूंगा |

हर्ष महाजन

(रमल मुसम्मन मखबून मह्जुफ़ मकतू )
2122-1122-1122-22

साज़-ए-दिल बजते रहे महफ़िल-ए-गम चलती रही

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मुझको इस शहर में…ऐसे भी नज़ारे थे मिले,
दिन में कातिल कभी रातों को सहारे थे मिले |

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वो थे क्या दिन सभी इल्जाम जो खुद सर थे लिए,
फर्क इतना सा था बस तुझ से इशारे थे मिले |


जाने कैसा था भँवर दुनियाँ का हम खो से गए,
ये तो किस्मत थी कि दोनों को किनारे थे मिले |


साज़-ए-दिल बजते रहे महफ़िल-ए-ग़म चलती रही,
सारी गज़लों में थे पल संग गुजारे थे मिले |


जब भी तन्हाई में वो.....बन के सहारा थे मिले,|
ज़िन्दगी को यूँ समझ दिन वो उधारे थे मिले ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'

Friday, June 12, 2015

*वो शख्स इस तरह मुझे बदनाम कर गया



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वो शख्स इस तरह मुझे बदनाम कर गया,
दिल में छुपे वो राज़ सर-ए-आम कर गया ।

दिलचस्प बात ये कि उसे इल्म ही नहीं,
नादानियों में हवस मिरे नाम  कर गया ।

रुक्सत हुआ तो दिल में लिए बोझ था बहुत,
वो जाते-जाते दोस्ती नीलाम कर गया ।

नफरत नहीं मुझे मगर आँखों मेंहै नमी,
वो शख्स इस तरह मुझे बे-दाम कर गया ।

रुतबे पे अपने मुझको था क्या-क्या गुमाँ मगर,
इक पल में सारे शहर में तमाम कर गया

हर्ष महाजन

221 2121 1221 212

*एक तरही गजल दिए गये मिसरे पर

Monday, June 1, 2015

मुझसे रुठोगे अगर तुम तो किधर मैं जाऊंगा





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मुझसे रुठोगे अगर तुम तो किधर मैं जाऊँगा,
मैं हूँ आईना जो टूटा तो बिखर मैं जाऊँगा |

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कुछ ख़लिश होगी तुझे ये राह बदलेगा अगर,
दिल में चाहत तो रहेगी अब जिधर मैं जाऊँगा |
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लोग कहते हैं नशा ग़म को भुला देता अबस,
जो भी मयख़ाना मिलेगा फिर उधर मैं जाऊँगा |

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रौशनी देकर शमा ख़ुद को जला देती मगर ,
यूँ वफ़ा सबसे निभाओ तो सिहर मैं जाऊँगा |

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मैंने वादा था किया तुमसे दिलो जाँ बनके यूँ,
तुम भी दे दो गर जिगर अपना निथर मैं जाऊँगा |



हर्ष महाजन 'हर्ष'



2122 2122 2122 22

Friday, May 29, 2015

उसको लफ्ज़ ए मुहब्बत सिखाता रहा



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उसको लफ्ज़ ए मुहब्बत सिखाता रहा,
नज़्म वो लिखती ..धुन मैं बनाता रहा ।

उसकी तहरीरें दिल को..थीं चुबती रहीं,
मिसरा दर मिसरा मुझको रुलाता रहा ।

हम मुहब्बत में शायद.. रहे कम असर,
फिर भी दिल मैं.....उसी पे लुटात़ा रहा ।

मैंने सदियों कही....गम पे ग़ज़लें बहुत,
पर मैं नज्में उसी की........सुनाता रहा ।

रूठ कर जब वो दिल से हुई बे-दखल ,
जाने अफ़साने....जग क्या बनाता रहा ।

उम्र भर मैकदा से.............रहा दूर दूर,
अब मैं बज्मों में पीता..... पिलाता रहा ।

हर्ष महाजन

212-212-212-212

अपने होटों पे सदा हम तो दुआ रखते हैं



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अपने होटों पे सदा.......हम तो दुआ रखते हैं,
बे-वफाओं से भी हम तो....अब वफ़ा रखते हैं |

है हुनर चुपके से धड़कन में.....उतर जाने का,
चाहे दुश्मन जो बहुत...दिल में सजा रखते हैं |

ज़िंदगी दी है खुदा ने....तो संग दी है अदा भी ,
पर उठे उंगली न नियत पर ये अना रखते हैं |

हम तो प्यासे बहुत...नदिया तलाश करते हैं,
गुज़रे लम्हों की.....फिजाओं में हवा रखते हैं |

थी दुआ उनकी चले जाएँ उनकी ज़िंद से सदा,
हो असर इतना दुआओं में....ये दुआ रखते हैं |


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हर्ष महाजन