Friday, May 29, 2015

उसको लफ्ज़ ए मुहब्बत सिखाता रहा



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उसको लफ्ज़ ए मुहब्बत सिखाता रहा,
नज़्म वो लिखती ..धुन मैं बनाता रहा ।

उसकी तहरीरें दिल को..थीं चुबती रहीं,
मिसरा दर मिसरा मुझको रुलाता रहा ।

हम मुहब्बत में शायद.. रहे कम असर,
फिर भी दिल मैं.....उसी पे लुटात़ा रहा ।

मैंने सदियों कही....गम पे ग़ज़लें बहुत,
पर मैं नज्में उसी की........सुनाता रहा ।

रूठ कर जब वो दिल से हुई बे-दखल ,
जाने अफ़साने....जग क्या बनाता रहा ।

उम्र भर मैकदा से.............रहा दूर दूर,
अब मैं बज्मों में पीता..... पिलाता रहा ।

हर्ष महाजन

212-212-212-212

अपने होटों पे सदा हम तो दुआ रखते हैं



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अपने होटों पे सदा.......हम तो दुआ रखते हैं,
बे-वफाओं से भी हम तो....अब वफ़ा रखते हैं |

है हुनर चुपके से धड़कन में.....उतर जाने का,
चाहे दुश्मन जो बहुत...दिल में सजा रखते हैं |

ज़िंदगी दी है खुदा ने....तो संग दी है अदा भी ,
पर उठे उंगली न नियत पर ये अना रखते हैं |

हम तो प्यासे बहुत...नदिया तलाश करते हैं,
गुज़रे लम्हों की.....फिजाओं में हवा रखते हैं |

थी दुआ उनकी चले जाएँ उनकी ज़िंद से सदा,
हो असर इतना दुआओं में....ये दुआ रखते हैं |


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हर्ष महाजन

Wednesday, May 27, 2015

रुख अब हवा का बदलने लगा है

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रुख अब हवा का बदलने लगा है,
तबसुम भी शोला उगलने लगा है |

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जब से चला है पता साजिशों का,
दिल कातिलों का दहलने लगा है ।

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कब तक भला क़ैद साँसे रहेंगी,
दिल वादियों का पिघलने लगा है ।

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गुमराह कब तक रहेंगी दिशाएँ,
तेवर फलक भी बदलने लगा है ।

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टिम-टिम सितारों तुम्हें छुपना होगा,
सूरज यहाँ अब निकलने लगा है ।

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__________हर्ष महाजन

Thursday, May 14, 2015

मुझे नाज़ है तू नसीब है

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मुझे नाज़ है तू नसीब है,
मेरी ज़िन्दगी के करीब है |

तुझे इतनी भी तो खबर नहीं,
मेरा इश्क तुझसे अजीब है |

मैं तो छोड़ दूं ये जहां अगर,
कोई ओर तेरा हबीब है |

तिरे गम से गर मैं जुदा हुआ,
न तू ये समझना नसीब है |

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मेरा दिल बहुत है उदास अब, ,
ज्यूँ हो सर पे मेरे सलीब है |

हर्ष महाजन


122 122 1212

Tuesday, May 12, 2015

हो रहे जो हादसे ये बात कुछ तो ज़रूर है

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हो रहे जो हादसे ये बात कुछ तो ज़रूर है,
आदमी जो आम है वो हर तरह बे-कसूर है |

कर रहे बदनामियाँ फिर बिन अदालत फैसला,
शख्स जिनपर हो सज़ा इस हादसे से दूर है |

बस्तियों में जल रहे हैं कागजों के वो मकां ,
दर्द अब जिसपे लिखा वो आदमी बे-कसूर है |

खो चुका वो अब भरोसा क्या खुदा औ नाखुदा
शख्स अब भी चुप खड़ा उसे हर सज़ा मंजूर है |

झूठ के पैबंद लगे हैं ‘हर्ष’ अब पोशाक पर
आदमी जिसपे लगें वो आदमी मशहूर है |

हर्ष महाजन

Monday, May 11, 2015

मुहब्बत हो रही बदनाम मेरे अफ़साने बहुत हैं

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मुहब्बत हो रही बदनाम मेरे अफ़साने बहुत हैं,
तेरे इस शहर में अब तो  मेरे दीवाने बहुत हैं |

तेरी आंखों के समंदर में मिले है नशा इतना,
वरना कहने को तो इस शहर में मैखाने बहुत हैं |

यूँ  ही खिलते हुए फूलों को झड़ते देखा है मैंने,
जिन्हें अंजाम देने को यहाँ बेगाने बहुत हैं |

तेरे कूचे में आकर दिल की कश्ती डूब जाती है,
मगर तुम देखो तो हम प्यार में अनजाने बहुत हैं |


मेरी रातें तेरी यादों से सजी रहती हैं लेकिन,
मुझको डर है तो बस इन यादों के ठिकाने बहुत हैं |

हर्ष महाजन

Friday, May 8, 2015

मुझे गम है मेरा कोई यहाँ दीवाना नहीं है



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मुझे गम है मेरा कोई यहाँ दीवाना नहीं है,
यकीनन दुनिया ने मुझको यहाँ पहचाना नहीं है । 

हुआ हूँ पारा-पारा देख ज़माने की अदाओं को,
मुझे क्यूँ लगता था कोई यहाँ बेगाना नहीं है ।

चले तलवारों की माफिक जुबां अपने करीबों की,
लगे वेसे भी अब मौसम यहाँ सुहाना नहीं है ।

हुए हमदर्द अब दुश्मन खुदाया दे कफन मुझको,
यहाँ बे-दर्द दुनिया में मेरा ठिकाना नहीं है ।

तजुर्बा हो गया मुझको सहे जो शोले नफरत के
हुई जो साजिशें पर 'हर्ष' यहाँ अनजाना नहीं है ।


© हर्ष महाजन


पुरानी कृति

Thursday, May 7, 2015

हुई यूँ ग़मों की ये शाम आखिरी है

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हुई यूँ ग़मों की ये शाम आखिरी है,
पहना दो कफन ये सलाम आखिरी है |

यूँ भर के ये अखियाँ टपकते जो आंसू ,
वो कहते हैं पीलो ये जाम आखिरी है |

सफ़र आखिरी है कदम दो मिला लो,
खुदा का दिया इंतजाम आखिरी है |

टपकते रहे पर, सकूं था कि इतना,
गमे ज़िन्दगी का इनाम आखिरी है |

यूँ ख्वाबों में हर पल रहे उम्र भर जो,
उन्ही के लिए ये कलाम आखिरी है |

महक तेरे दामन की चारों तरफ है,
यूँ समझो खुदा का पयाम आखिरी है |

 

© हर्ष महाजन


पुरानी कृति

Wednesday, May 6, 2015

दिल-ए-ग़मज़दा को सताओगे क्या तुम



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दिल-ए-ग़मज़दा को सताओगे क्या तुम,
मुझे बार-बार आजमाओगे क्या तुम |

ये हम हैं कि अब तक परेशाँ हैं,
शब्-ए-हिज्राँ की ताब लाओगे क्या तुम |


बस इतनी सी इक बात मैं पूछता हूँ,
कभी मुझको अपना बनाओगे क्या तुम |


न छोड़ोगे मर कर भी दामन हमारा,
जो वादा किया था निभाओगे क्या तुम |


गम-ए-ज़िन्दगी, ज़िंदगी बन चुका है,
हंसा कर मुझे अब रुलाओगे क्या तुम |


‘हर्ष’ आज मुल्क-ए-अदम से चला है,
इस बार ज़िन्दगी संग आओगे क्या तुम |


© हर्ष महाजन

Tuesday, May 5, 2015

कैसा है अब शोर यहाँ पर दिखते हैं घबराए लोग



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कैसा है अब शोर यहाँ पर दिखते हैं घबराए लोग,
ढूँढा करते प्यार यहाँ पर सदियों से ठुकराए लोग |

बिक जाते ईमान यहाँ पर बिक जाती हैं नीयत भी,
ज़र्रा-ज़र्रा लूटा हमसे जब-जब मिलने आये लोग |


ख़त्म हुए हैं जज्बे दिल के ख़तम हुए सारे अहसास,
अपने ही कांधों पर फिरते अपनी लाश उठाये लोग |


हर इंसान के दिल में उठता प्यार का इक ऐसा तूफ़ान,
जिसके बहाने जी पाते हैं हम जैसे पथराये लोग |


कफन अधूरा लकड़ी अधूरी अधूरा अपनों का ईमान,
चिता से उठती आग से देखो घर का दीप जलायें  लोग |


© हर्ष महाजन

एक पुरानी कृति