Friday, May 29, 2015

उसको लफ्ज़ ए मुहब्बत सिखाता रहा



...


उसको लफ्ज़ ए मुहब्बत सिखाता रहा,
नज़्म वो लिखती ..धुन मैं बनाता रहा ।

उसकी तहरीरें दिल को..थीं चुबती रहीं,
मिसरा दर मिसरा मुझको रुलाता रहा ।

हम मुहब्बत में शायद.. रहे कम असर,
फिर भी दिल मैं.....उसी पे लुटात़ा रहा ।

मैंने सदियों कही....गम पे ग़ज़लें बहुत,
पर मैं नज्में उसी की........सुनाता रहा ।

रूठ कर जब वो दिल से हुई बे-दखल ,
जाने अफ़साने....जग क्या बनाता रहा ।

उम्र भर मैकदा से.............रहा दूर दूर,
अब मैं बज्मों में पीता..... पिलाता रहा ।

हर्ष महाजन

212-212-212-212

No comments:

Post a Comment