Thursday, October 8, 2015

बजता हूँ बन के साज तेरे मंदिरों में अब

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बजता हूँ बन के साज तेरे मंदिरों में अब,
देता तुझे आवाज तेरे मंदिरों में अब |
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मांगी थी मैंने उम्र की संजीदगी लेकिन,
क्यों इस तरह मुहताज तेरे मंदिरों में अब |
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मन जिसका देखूं दुश्मनी की नीव पे काबिज़,
कैसे करूँ परवाज़ तेरे मंदिरों में अब |
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बस रौशनी की खोज में भटका तमाम उम्र
पगला गया, नेवाज तेरे मंदिरों में अब |
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ले चल मुझे शमशान, कोई गम जहाँ ना हो,
मेरा गया हमराज, तेरे मंदिरों में अब |
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हर्ष महाजन ©

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