Thursday, April 30, 2015

भूखे नंगे शहर में हरसूं बसते हैं खालीफे लोग

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भूखे नंगे शहर में हरसूं बसते हैं खलीफे लोग,
ढूँढा करते हर तबके को ठगने के तरीके लोग |

महफ़िल सूनी, मैकश सूनी, सारे सूने साज़ हुए,
गम में डूबे हैं सब इतने, भूल गए सलीके लोग |

मंजिल नहीं मिली तो गम में आशिक यूँ पागल हुए,
तोड़-तोड़ गुंचे फूलों के, उजाड़ें यूँ बगीचे लोग |

झूठी शान-ओ-शौकत में अब दुनियां यूँ मशगूल हुई,
कीमती चीज़ों के चक्कर में भूल गए गलीचे लोग |

मुजरिम यूँ परवाने बन, जब घर में आ दाखिल हुए,
दीवाने बन झाँका करते दिल के यूँ दरीचे लोग |

© हर्ष महाजन

कभी हक की रोशनी में कभी हक के फासलों में,



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कभी हक की रोशनी में कभी हक के फासलों में,
वो शख्स ज़िंदगी में......जाने कहाँ-कहाँ से गुजरा |
 
कभी दिल की धडकनों में कभी अश्कों के सफ़र में
था हर भंवर में शामिल.......मैं जहां-जहां से गुज़रा ।

मुझे कुछ पता नहीं था.......ये इश्क क्या बला थी,
वो जिस गली से गुज़रा.......मैं वहाँ-वहाँ से गुज़रा ।

कभी इश्क में था ये दिल,  इक बे-रुखी से गुज़रा
वो अश्कों के सफ़र में......संग इम्तिहाँ से गुज़रा ।

मैं खुद हैराँ हूँ उस पर किस किस डगर से गुजरा,

दुनिया के तंज़-ओ-गम के भी कारवां से गुज़रा |



हर्ष महाजन

रात भर तेरे गम में चाक रहे




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रात भर तेरे गम में चाक रहे, आँख भर-भर के जाम चलते रहे,
इक झलक पाने को मैखाने में, यूँ ही चढ़-चढ़ के दाम चलते रहे |

क्यूँ ये रातें हैं अब अंधेरों सी, चाँद छुप-छुप के क्यूँ निकलता है,
जिस तरह जल रहा था परवाना, मेरे दिल से सलाम चलते रहे |

खौफ अब क्यूँ नजर नहीं आता, इश्क जब गैरों में मचलने लगे,
दर्द उठ-उठ सकूं यूँ देता रहा, जब तक उनके पयाम चलते रहे |

चाँद की चाहतों में दीवाना, उम्र भर भटके बादलों की तरह ,
इश्क महफूज़ मैयतों में सदा, जब वफाओं के जाम चलते रहे |

जब से उलझी हैं इश्क की राहें, तेरा नाम सजदे में पुकारा है,
और पतझड़ में गिरते पत्तों पर, तेरा लिख-लिख के नाम चलते रहे |

यूँ तो ये शहर बदनसीबों का, गम में भी करते शायरों से गिला,
है मगर हर्षबेरहम शायर , फिर भी उनके कलाम चलते रहे |


हर्ष महाजन

मुझे नाज़ है तू नसीब है



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मुझे नाज़ है तू नसीब है,
मेरी ज़िन्दगी के करीब है |

तुझे इतनी भी तो खबर नहीं,
मेरा इश्क तुझसे अजीब है |

मैं तो छोड़ दूं ये जहां अगर,
कोई ओर तेरा हबीब है |

तिरे गम से गर मैं जुदा हुआ,
न तू ये समझना नसीब है |

मेरा दिल बहुत है उदास अब,
ज्यूँ हो सर पे मेरे सलीब है |


हर्ष महाजन
122-122-1212