Monday, May 30, 2016

लोग अपनों के हुनर पर फब्तियां कसने लगे




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लोग अपनों के हुनर पर फब्तियां कसने लगे,
आस्तीं में सांप थे कुछ बे-वजह डसने लगे |

उन गुनाहों का सफ़र कैसे चले जो सर न हों,
जुर्म करता वो मज़े में बे-कसूर फसने लगे |

आजकल माहौल जीने का कहाँ शहरों में अब,
 
देख लुटती अस्मतें अब शहरिये हंसने लगे |

जो खिलाफत ज़ुल्म की करता बुलंद आवाज़ में,
इक शिकंजा उनपे रक्षक बे-सबब कसने लगे |

क्या कोई समझेगा दह्शत से भरी इस ज़िन्द को,
हर तरफ दहशत-ज़दा अपनों में ही बसने लगे |
 

हर्ष महाजन

०००

2122 2122 2122 212


Friday, May 27, 2016

अब ज़िन्दगी के ज़ख्म सब तहरीर करूंगा



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अब ज़िन्दगी के ज़ख्म सब तहरीर करूंगा,
जो भी किये गुनाह सब शमशीर करूंगा |

दुनिया में मेरे कोई गम-ए-हिज्र चलेगा,
मैं उम्र भर उस शख्स की तौकीर करूंगा ।

गैरों के घर में बे-वफ़ा गर दीप जलेगा
उनकी जुबां तराश कर मैं तीर करूंगा ।

गर हो अदाएं तेरी मेरी शाम बनेगी
तेरी कसम मैं जुल्फों को ज़ंजीर करूंगा ।

दिल तेरा गर धडकेगा मेरी साँसे चलेंगी,
हर शाम को रंगीन सी तस्वीर करूंगा ।

हर्ष महाजन



तौकीर
=  सम्मान

तू देख खुदा ऐसा कहीं मंज़र न मिलेगा,




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तू देख खुदा ऐसा कहीं मंज़र न मिलेगा,
अब कातिलों के शहर में खंज़र न मिलेगा |

अब देखो तुम ऐसा कहीं मंज़र न मिलेगा,
इन कातिलों के शहर में खंज़र न मिलेगा ।

आँखों से बहते अश्क भी अब सोचते हैं ये
ढूंढेंगे ऐसा घर भी तो ये घर न मिलेगा ।

ढूंढें कोई गमख्वार अब गैरों के शहर में,
दुश्मन तो मिलेगा मगर रहबर न मिलेगा ।

अब हो गया इन आंखों में दर्दों का ज़खीरा,
टूटेगा ऐसे अश्कों का समंदर न मिलेगा ।

हर्ष महाजन

मुझको जीने का खुदा आके सलीका दे दे


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मुझको जीने का खुदा आके सलीका दे दे
हूँ  मुहब्बत में कोई आके तरीका दे दे ।

प्यार जिससे है मुझे उसके फ़साने हैं बहुत

ऐ खुदा चुपके से ज़ख्मों का ज़खीरा दे दे ।


जाने दुनिया ने क्यूँ झाँका मेरे दिल में यूँ ही
राज़ कोई तो मुहब्बत का लचीला दे दे |

कर दिया उसने कतल फिर भी मैं टुकड़ों में जिया,

अर्ज़ इतनी है खुदा दिल भी फकीरा दे दे ।


रात दिन मुझको सताये है वो बनके साया,
जा बसूं दिल में मैं उसके वो सलीका दे दे |


हर्ष महाजन