Wednesday, June 29, 2016

मेरे हबीब मुझमें आज क्या तलाशते

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मेरे हबीब मुझमें आज क्या तलाशते,
मेरा वजूद हो गया खुदा के वास्ते

अभी तलक किये कतल जुबां के रास्ते,
उठेंगे अबकि हाथ बस दुआ के वास्ते |

रहम नहीं लोगों में अब फंसी है ज़िंदगी,
यूँ भी तो होंठ सी लिए सदा के वास्ते |

चलेगी कब तलक ये मुक्तिसर सी ज़िंदगी,
जुटा लिए हैं फूल कुछ खिजाँ के वास्ते |

नहीं है डर ऐ ‘हर्ष’ अब हमें तो मौत का,
क़ज़ा भी कम लगे है अब सज़ा के वास्ते |


हर्ष महाजन

1212-1212-1212-12
(Non Standard )

अपनी चाहत गर बता दूं क्या सज़ा दोगे मुझे




अपनी चाहत गर बता दूं क्या सज़ा दोगे मुझे,
तुझको चाहूँ तो क्या नज़रों से गिरा दोगे मुझे ।

मैं मुहब्बत में ज़बर का हूँ नहीं कायल मगर,
मैं करूँ ज़ाहिर अगर दिल से भुला दोगे मुझे ।

यूँ तो दिल के राज़ कोई अब तलक खोले नहीं,
गर मैं कह दूँ दास्ताँ दिल से हटा दोगे मुझे |

दफ्न कर लूं गर जुबां मैं तेरी दुनिया देख कर ,
गर समझते हो इशारा क्या सिला दोगे मुझे |

मैं हूँ मुजरिम, हरकतों से तेरी लगता है मुझे,
शाम-ए-गम कह दूँ अगर वो, क्या सज़ा दोगे मुझे |

कुछ भी हो मय हो सनम हो और थोड़े अपने गम,
आखिरिश बस है तमन्ना क्या रजा दोगे मुझे |


हर्ष महाजन


बहरे रमल मुसम्मन महजूफ
2122-2122-2122-212

Monday, June 27, 2016

तिरछी पड़ी तेरी नज़र की हम दिवाने हो गये

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तिरछी पड़ी तेरी नज़र की हम दिवाने हो गये,
थे ख्वाब गुजरी रात के वो सब पुराने हो गये |
.
अपनी अना की चोट से धड़कन को मैंने खो दिया,
प्यार के किस्से थे जो पल में फ़साने हो गये |

मिलते थे तुम तो ज़िंदगी में ख़्वाबों की थी कश्तियाँ,
सच बहारों के वो दिन गुजरे ज़माने हो गये |

हम तो रहे थे हम-बगल चाहा बने अब हम-सफ़र,
पर ख्वाब वो अपने सुहाने सब ठिकाने हो गये |

उठने लगा जो रफ्ता-रफ्ता अब ज़हन से इक धुंआ,
अश्कों भरे ये तनहा पल अपने खजाने हो गये |

ये दर्द फिर-फिर सीने में अब ढूंढता है रास्ता,
अब ज़ख्म इतने हो गये वो भी दिवाने हो गये |


हर्ष महाजन

बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम
2212 - 2212 - 2212 - 2212

मेरी अधीर आँखें हैं सागर पिए हुए

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मेरी अधीर आँखें हैं सागर पिए हुए,
वो बह रही है उम्र से आंसू लिए हुए |

इक वक़्त था वो शैदा थे मेरे शबाब पर,
पर आज गैरों से वो हैं शिर्कत किये हुए |


मेरा जुनूं था उनका मैं सिजदा करूँ कभी,
अब क्या कहूँ वो चोट है दिल पर दिए हुए |


पूंछा किये हैं अश्क तो मेरे तरीन दोस्त,
पर दाग वो किसे कहूँ, हैं लब सिए हुए |


अब छू रही बुलंदी को आन्हें जरा सुनों,
ये कौन शै है दिल को यूँ पत्थर किये हुए | 



हर्ष महाजन 


मुजारी मुसम्मन अखरब मख्फूफ़ महजूफ
221 2121 1221 212

Sunday, June 26, 2016

राज़ अपना......उछाला है उसने

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राज़ अपना.....उछाला है उसने,
अपना घर खुद उजाड़ा है उसने |
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कैसे आँगन में बिछ गये कांटे,
ये शज़र यूँ उखाड़ा है उसने |

दिल में कोई भी गम नहीं था गर,
रिश्ता फिर क्यूँ बिगाड़ा है उसने |

बिखरा घर ऐसे, टूटा ज्यूँ दर्पण,
क्यूँ ज़हर यूँ उतारा है उसने |

“हर्ष” हैरां था खोया होश-ओ-खबर,
इक सफा-ए-ज़िन्द फाड़ा है उसने |


हर्ष महाजन


खफीफ मुसद्दस मखबून महफूज़ मकतू
2122 1212 22

पल दो पल की रुक्सती क्यूं ज़ार-ज़ार कर चली





पल दो पल की रुक्सती क्यूं ज़ार-ज़ार कर चली,
दिल से मेरे दिल्लगी क्यूँ बार-बार कर चली ।
.
ज़ुल्फ़ फिर अदा से अपनी शानों पर बिखेर कर,
दिल चुरा के मुझको शर्म सार यार कर चली |

मुझसे गर खफा बता मैं ज़िन्दगी बदल चलूँ,
पर बदलती ये निगाह तार-तार कर चली ।

दिल में छवि थी हूर की वो अजनबी सी कल्पना,
कल्पना में ही सनम वो आर-पार कर चली |

ज़ुल्म इंतिहा पे उसका नूर आँखों में सजे,
ये अदा भी मेरी आँखें जार-जार कर चली |


हर्ष महाजन
2121-2121-2121-212
(Non-Standard)

Monday, June 20, 2016

जीने नहीं देता मुझे गरूर शख्स का

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जीने नहीं देता मुझे गरूर शख्स का,
भूला नहीं हूँ अब तलक सरूर शख्स का |

ये हिचकियाँ मुझे चलें यूँ रोज़ रात भर,
शायद मिजाज़ बदला है ज़रूर शख्स का |

तकदीर ने जो ख़्वाब थे यूँ ही मसल दिये,
बर्बाद कर गया मुझे मगरूर शख्स का |

टूटा ही था बिखर गया हुआ वो तर-बतर
कुछ साजिशों में छल गया शऊर शख्स का |

मैं चीखता हूँ ख़्वाब में वो नाम सोच कर,
जो लूटेगा ज़मीर तक गरूर शख्स का |


_______हर्ष महाजन

बहर :
221-2121-2121-212
(Non-Standard)

गुफ्तगू करके वो अक्सर मुझको ही छलता रहा

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गुफ्तगू करके वो अक्सर मुझको ही छलता रहा,
राज़ दिल के पूछता बचपन से संग चलता रहा |

आदतन उसने कभी अपनी जुबां खोली नहीं,
ये जिगर उसके हुनर का सोच मैं सलता रहा |

वो तो था मसरूफ इतना मौसमी फितरत लिए,
हर शज़र पर आदतन वो बेल बन चढ़ता रहा |

जाने कितनी बार कातिल चाहतों का था मगर,
मैं तो नींदों से था गाफिल ख़्वाबों में जलता रहा |

हमसफ़र तो था मगर घुंघरू सा बजता ही रहा,
ज़िंदगी भर बनके साहिल शख्स वो खलता रहा |


_____हर्ष महाजन
बहरे रमल मुसम्मन महफूज़
2122-2122-2122-212
*चुपके-चुपके रात-दिन आंसू बहाना याद है |
*यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी
*आपकी नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे

आँखों से टपकता हर कतरा, आंसू होगा तुम क्या जानों


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आँखों से टपकता हर कतरा, आंसू होगा तुम क्या जानों,
दे खुशियों में भी संग मेरा, आंसू होगा तुम क्या जानों |

जब रूह तडपे फिर चश्म झरें, उनको ही आंसू कहते हैं,
जब कपट झरे अखियन से ज़रा, आंसू होगा तुम क्या जानों |

गम में वो कभी दामन में गिरें, उनको ही आंसू कहते हैं,
कभी टपक पड़े बैरंग कतरा, आंसू होगा तुम क्या जानों |

ख़्वाबों में अखियाँ नम हों कभी, उनको ही आंसू कहते हैं,
जब छल बन पलकों से उतरा, आंसू होगा तुम क्या जानों |

जब कतल हों अरमां टपक पड़ें, उनको ही आंसू कहते हैं,
गर बे-मौसम अखियों से गिरा, आंसू होगा तुम क्या जानों |


______________हर्ष महाजन

Sunday, June 19, 2016

ऐ खुदा दिल में कभी उसके जिकर आएगा

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ऐ खुदा दिल में कभी उसके जिकर आएगा,
हुई रहमत तो तू पत्थर से निकल आएगा |


ये तो सोचा भी न था चाँद यूँ होगा मद्धम,
दी थी आवाज़ वो कश्ती में उतर आएगा | 


मुझको मालूम था मसरूफ वो तन्हाई में,
उसमें लावा था जो सदियों से पिघल आएगा | 


हैं अना उसमें समझता हूँ मैं, झुकता भी हूँ,
लफ़्ज़ों –लफ़्ज़ों में वो टुकड़ों में बिखर आएगा |


आओ अब लौट चलें नींद से करवट लेकर,
वरना नगमों से भरा जाम
छलक आएगा |

हादसा इश्क का हकीकत में यूँ उछला शायद,
हर जुबां पर कभी अपना भी जिकर आएगा |

हर्ष महाजन 


2122-1122-1122-22
1122-1122-1122-22

(रमल मुसम्मन मखबून मह्जुफ़ मकतू )
* ज़हर चुपके से बड़ी शान से खाया होगा

Saturday, June 18, 2016

तेरे कदमों का निशाँ दिल पे मिला है मुझको



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तेरे कदमों का निशाँ दिल पे मिला है मुझको,
जो खलल उसमें हुआ उसका गिला है मुझको |

मेरी महफ़िल तो मगर सच में तुझी से रौशन,
जब से आने का पता तेरा चला है मुझको
|

हो रहे आज फसादों के जो मंज़र इतने,
ये सबब तेरी अदाओं से मिला है मुझको |


जो निगाहों की जुबां समझे वही है साहिल,
बे मुरव्वत से बता कैसा सिला है मुझको |

मौत दिल की हो, बदन की, या मुकम्मिल लेकिन,
दे खबर राख सा, कोई तो जला, है मुझको |



हर्ष महाजन
 2122-1122-1122-22
1122-1122-1122-22

(रमल मुसम्मन मखबून मह्जुफ़ मकतू )
कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया


तेरी जुल्फों से नज़र मुझसे हटाई न गई



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तेरी जुल्फों से नज़र मुझसे हटाई न गई
,
और आँखों से पलक मुझसे गिराई न गई |

मैं भी इक फूल कभी पर था अंधेरों में खिला,
दिल था जुल्फों में सजूँ मुझसे बताई न गई |

यूँ न दो ऐसी सदा गैरों को, हो मुझपे सितम
है लहर सीने में दर्दों की बताई न गई |

यूँ तो ख़्वाबों में कभी ज़ुल्फ़ को झटको हो सनम,
हैं वो नागिन सी कभी मुझसे जताई न गई |

मैं तो भटका हूँ उजालों में अंधेरों की तरह,

पर दिया-बाती कभी मुझसे जलाई न गई |

मेरी जब मौत की चर्चा जो सर-ए-आम हुई,

आग इतनी थी जली मुझसे बुझाई न गई |


हर्ष महाजन


2122-1122-1122-112
( रमल मुसमान मखबून महफूज़ )