Wednesday, June 29, 2016

अपनी चाहत गर बता दूं क्या सज़ा दोगे मुझे




अपनी चाहत गर बता दूं क्या सज़ा दोगे मुझे,
तुझको चाहूँ तो क्या नज़रों से गिरा दोगे मुझे ।

मैं मुहब्बत में ज़बर का हूँ नहीं कायल मगर,
मैं करूँ ज़ाहिर अगर दिल से भुला दोगे मुझे ।

यूँ तो दिल के राज़ कोई अब तलक खोले नहीं,
गर मैं कह दूँ दास्ताँ दिल से हटा दोगे मुझे |

दफ्न कर लूं गर जुबां मैं तेरी दुनिया देख कर ,
गर समझते हो इशारा क्या सिला दोगे मुझे |

मैं हूँ मुजरिम, हरकतों से तेरी लगता है मुझे,
शाम-ए-गम कह दूँ अगर वो, क्या सज़ा दोगे मुझे |

कुछ भी हो मय हो सनम हो और थोड़े अपने गम,
आखिरिश बस है तमन्ना क्या रजा दोगे मुझे |


हर्ष महाजन


बहरे रमल मुसम्मन महजूफ
2122-2122-2122-212

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