Saturday, June 18, 2016

तेरी जुल्फों से नज़र मुझसे हटाई न गई



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तेरी जुल्फों से नज़र मुझसे हटाई न गई
,
और आँखों से पलक मुझसे गिराई न गई |

मैं भी इक फूल कभी पर था अंधेरों में खिला,
दिल था जुल्फों में सजूँ मुझसे बताई न गई |

यूँ न दो ऐसी सदा गैरों को, हो मुझपे सितम
है लहर सीने में दर्दों की बताई न गई |

यूँ तो ख़्वाबों में कभी ज़ुल्फ़ को झटको हो सनम,
हैं वो नागिन सी कभी मुझसे जताई न गई |

मैं तो भटका हूँ उजालों में अंधेरों की तरह,

पर दिया-बाती कभी मुझसे जलाई न गई |

मेरी जब मौत की चर्चा जो सर-ए-आम हुई,

आग इतनी थी जली मुझसे बुझाई न गई |


हर्ष महाजन


2122-1122-1122-112
( रमल मुसमान मखबून महफूज़ )



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