Wednesday, July 6, 2016

घर-घर में यहाँ देख ये मंज़र ही मिलेगा

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घर-घर में यहाँ देख ये मंज़र ही मिलेगा,
हर शख्स में नफरत का बवंडर ही मिलेगा |

आँखों से बहे अश्क भी ये सोचते होंगे,
ढूंढेगे नया घर तो वो बंज़र ही मिलेगा |

इतना है कपट शहर में हर बंदा परेशाँ,
हर घर में है कातिल कोई अंदर ही मिलेगा |

अब हो चुके हर शख्स में दर्दों के ज़खीरे,
इस शहर की हर आँख में खंज़र ही मिलेगा |

कैसे रुकेंगे आँखों से अब बहते ये दरिये,
गर उठ गया तूफ़ान समंदर ही मिलेगा |

हर्ष महाजन


221 / 1221 / 1221 / 122
बहरे हज़ज़ मुसम्मन अखरब मख्फूफ़ महजूफ
*दुश्मन न करे दोस्त ने ये काम किया है*

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