Friday, October 28, 2016

मेरी धड़कन को दुनिया मनाती रही

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मेरी धड़कन को दुनिया मनाती रही,
चुप थी बे-दर्दी हम को रुलाती रही |

दिल था टूटा मगर मैं न टूटा कभी ,
बे-वफ़ा थी जो नज़रें चुराती रही |

इक खलिश थी मुझे उसको भी रंज था,
जाने फिर क्यूँ वो मातम मनाती रही |

बात जो कुछ भी थी बीच उसके मेरे,
बे-वफ़ा गैरों को क्यूँ बताती रही |

मैं तो मायूस था वो खफा थी मगर ,
मैं भुलाता रहा वो याद आती रही |
हर्ष महाजन


212 212 212 212

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