Sunday, February 25, 2018

महफ़िल में तेरी लौट के आता नहीं कोई

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महफ़िल में फिर से लौट के आता नहीं कोई,
कानून बज़्म के भी निभाता नहीं कोई ।

कितने ही दौर चल चुके ग़ज़लों के अब तलक,
दीवानों सा क्युँ मस्ती में आता नहीं कोई ।

कुछ टोलियाँ बनीं हैं नशा खोरों की यहाँ,
पर शहरियों को तनिक सताता नहीं कोई ।

अब ज़िन्दगी में देख लीं तब्दीलियां बहुत,
पर फासलों का राग सुहाता नहीं कोई ।

अब हो रहीं बगावतें घर-घर में हर तरफ,
पर दिल में छिपी बात बताता नहीं कोई ।

--------------हर्ष महाजन

221 2121 1221 212

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