Saturday, April 7, 2018

बसती है मुहब्बतों की बस्तियाँ कभी-कभी


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बसती है मुहब्बतों की बस्तियाँ कभी-कभी,
रौंदती उन्हें ग़मों की तल्खियाँ कभी-कभी ।
ज़िन्दगी हूई जो बे-वफ़ा ये छोड़ा सोचकर,
डूबती समंदरों में कश्तियाँ कभी-कभी ।
गर सफ़र में मन का हमसफर मिले तो सोचना ,
ज़िंदगी में लगती हैं ये अर्जियाँ कभी-कभी ।

उठ गए जो मुझको देख उम्र का लिहाज़ कर,
मुस्कराता देख अपनी झुर्रियाँ कभी-कभी ।
इश्क़ में यकीन होना लाजिमी तो है मगर,
दूर-दूर दिखती हैं ये मर्ज़ियाँ कभी-कभी ।

ज़िन्दगी में दोस्ती का आज भी मुकाम है,
फुरकतें भी लाज़िमी हैं दरमियाँ कभी-कभी ।
बेदिली की आग में वो छोड़ गए थे साथ जब,
सुनता हूँ सदाओं में वो सिसकियाँ कभी-कभी ।
डोलता नहीं हूँ देख शोखियों भरा ये दिल,
पर लुभायें ज़ुल्फ़ की ये बदलियाँ कभी-कभी ।

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हर्ष महाजन
वज़्न--212 1212 1212 1212 
अर्कान-- फ़ाइलुन मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन
बह्र - बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर अक्बूज़ मक्बूज़ मक्बूज़
*कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे।*
*मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या कसूर है*
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