tag:blogger.com,1999:blog-53300228361144357982024-02-20T00:06:18.513-08:00बोलती ग़ज़लें ग़ज़ल एक छंद काव्य है | एक लम्बा सफ़र तय कर आजकल ये जिस मुकाम पर है इसने अपने अंदर उर्दू और हिन्दी दोनों भाषाओँ को सम्मिलित किया है | अपने सफ़र में नज़ाकत और नफ़ासत के कई तेवर बदलती हुई प्रस्तुत ग़ज़लें अपने बनाव और श्रृंगार में कई जगह शराब और शबाब में मदहोश नज़र आती है और फिर कई जगह गम से लबरेज़ तथा खुद अहसासों का चित्रण ब्यान करती हैं | अल्फास तो खुद दास्ताँ बन ग़ज़ल का सत बयाँ कर देते हैं | आम आदमी से जुड़ी और मानवीय संवेदनाओं से भरपूर मेरी कलम से निकली पसंदीदा कुछ ग़ज़लें | Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.comBlogger222125tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-5856213633871743282023-08-29T19:48:00.002-07:002023-08-29T19:50:43.464-07:00 न दिल में रखना अना तू इतनी, कि वो मुहब्बत निगल न जाये<p style="text-align: left;"> ***</p><p style="text-align: left;"><br /></p><p style="text-align: left;">न दिल में रखना अना तू इतनी, कि वो मुहब्बत निगल न जाये,</p><p style="text-align: left;">ख्याल रखना कि बिन तुम्हारे ये दिल से धड़कन निकल न जाये ।</p><p style="text-align: left;"><br /></p><p style="text-align: left;">तुम्हारी यादें हैं मेरी मंज़िल, तुझी से मेरा है आशियाँ अब,</p><p style="text-align: left;">बता दो तुम राजे दिल भी अपना, कहीं ये डर मुझको छल न जाये ।</p><p style="text-align: left;"><br /></p><p style="text-align: left;">थकी हैं पलकें हैं खुश्क आँखे, फ़क़त ये उलझन है बेबसी की,</p><p style="text-align: left;">हुए जो इतने निशब्द लब अब, कहीं ये चुप दिल को खल न जाए ।</p><p style="text-align: left;"><br /></p><p style="text-align: left;">ज़रा तो दिल में उतर के देखो, तमाम किस्से बदल गए हैं,</p><p style="text-align: left;">बड़ा ही दुश्मन है ये ज़माना, निगाहें उनकी निगल न जाये ।</p><p style="text-align: left;"><br /></p><p style="text-align: left;">उठी जो दिल पे ख़लिश सी इतनी, नज़र भी करती सवाल कितने,</p><p style="text-align: left;">कि अब अँधेरों की सरसराहट में दिल के अरमां ही ढल न जाये ।</p><p style="text-align: left;"><br /></p><p style="text-align: left;">हर्ष महाजन 'हर्ष'</p><p style="text-align: left;">12122 12122 12122 12122</p><p style="text-align: left;">"छुपा लो यूँ दिल में प्यार मेरा कि जैसे मंदिर में लौ दिए की"</p>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-28334298024192022672022-06-13T22:47:00.000-07:002022-06-13T22:47:13.133-07:00अगर दूसरा प्यार छूकर गया है<p> </p><div align="left"><p dir="ltr"><i><b>अगर दूसरा प्यार छूकर गया है,</b></i><br />
<i><b>समझना हया का वो पर्दा उठा है ।</b></i></p>
<p dir="ltr"><i><b>ज़ुबां पर भी चर्चे यूं होंगे जहां में,</b></i><br />
<i><b>यूं देखोगे तंजो से हर दिल भरा है ।</b></i></p>
<p dir="ltr"><i><b>बहुत चाहोगे दिल से तुम गुनगुनाना,</b></i><br />
<i><b>मगर देखोगे साज टूटा पड़ा है ।</b></i></p>
<p dir="ltr"><i><b>यूं निकलेंगे दिल से जो गम के फसाने,</b></i><br />
<i><b>लगेगी तुम्हें ज़िंदगी इक सज़ा है ।</b></i></p>
<p dir="ltr"><i><b>बुलंदी मिलेगी मुहब्बत में लेकिन,</b></i><br />
<i><b>लगेगा ये इल्जाम तू बेवफ़ा है ।</b></i></p>
<p dir="ltr"><i><b>हर्ष महाजन 'हर्ष'</b></i></p>
<p dir="ltr"><i><b><a href="tel:122122122122">122 122 122 122</a></b></i><br />
<i><b>"तेरे प्यार का आसरा चाहता हूं"</b></i><br />
</p>
</div><p dir="ltr"><br />
</p>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-85273569329422822862022-04-04T09:47:00.002-07:002022-04-04T09:47:15.047-07:00उनके किस्से नए भी पुराने लगे<div style="text-align: left;"> </div><div align="left"><p dir="ltr"><i><b>उनके किस्से नए भी पुराने लगे,</b></i><br />
<i><b>जो भी दिन थे पुराने सुहाने लगे ।</b></i></p>
<p dir="ltr"><i><b>उनकी ज़ुल्फ़ों तले शाम होगी कभी,</b></i><br />
<i><b>ऐसा मौसम बना पर ज़माने लगे ।</b></i></p>
<p dir="ltr"><i><b>ज़ख्म नखरों ने उनके दिए थे बहुत,</b></i><br />
<i><b>आहें निकली तो उनको तराने लगे ।</b></i></p>
<p dir="ltr"><i><b>जिनके आने से दिल था समंदर हुआ,</b></i><br />
<i><b>गैर की बाहों में दिल लुटाने लगे ।</b></i></p>
<p dir="ltr"><i><b>रो पड़ा था फलक बेवफा देखकर,</b></i><br />
<i><b>फिर पुराने बहाने सुनाने लगे ।</b></i></p>
<p dir="ltr"><i><b>हर्ष महाजन 'हर्ष'</b></i><br />
<i><b><a href="tel:212212212212">212 212 212 212</a></b></i><br />
<i><b>"तुम अगर साथ देने का वादा करो"</b></i><br />
</p>
</div><p dir="ltr"><br />
</p>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-10714409797540900732022-03-12T04:42:00.004-08:002022-03-12T04:42:48.702-08:00बहुत बदनाम कर के छोड़ा उसने इस जमाने में<div style="text-align: left;"><div><b><i>बहुत बदनाम कर के छोड़ा उसने इस जमाने में,</i></b></div><div><b><i>लगेंगी सदियाँ मुझको बे-वफ़ा के ग़म भुलाने में ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>ये उसकी ज़िद थी ज़ख़्मों का रहे मेरा सफ़ऱनामा, </i></b></div><div><b><i>लगाई बेसबब फिर तोहमतें उसने सताने में ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>दिखाया इश्क़ उसने आसतीं का साँप था लेकिन,</i></b></div><div><b><i>सुनाकर जुल्फों के नग्में वो आया आशियानें में ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>जगाकर दिल की धड़कन शहर-ए-दिल जब कर दिया रोशन,</i></b></div><div><b><i>भरी महफ़िल में था फिर मुब्तिला रहबर बनाने में ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>मुहब्बत में कहीं मैं इस तरह मशहूर हो जाता,</i></b></div><div><b><i>लगाता बरसों मैं भी दोस्ती को आजमाने में । </i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>हर्ष महाजन 'हर्ष'</i></b></div><div><b><i>1222 1222 1222 1222</i></b></div><div><b><i>इन नग्मों की धुन पर गुनगुनाइए</i></b></div><div><b><i>👇👇</i></b></div><div><b><i>1. मुहब्बत हो गई जिनको वो परवाने कहां जाएं</i></b></div><div><b><i>2. मुझे तेरी मुहब्बत का सहारा मिल गया होता </i></b></div><div><b><i>3. चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों </i></b></div></div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-57462359242061780852022-03-07T08:36:00.005-08:002022-03-07T08:36:48.760-08:00ख़ुदा के सामने सर को झुका लेता तो अच्छा था<div style="text-align: left;"><b><i>ख़ुदा के सामने सर को झुका लेता तो अच्छा था ,</i></b></div><div><b><i>ज़रा से ग़म ही थे उनको छुपा लेता तो अच्छा था ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>कभी लिख कर ख़तों में उनको सच खुद ही बता देता,</i></b></div><div><b><i>मुहब्बत में अना को खुद हटा लेता तो अच्छा था ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>उठीं जो बद्दुआए थीं कभी उनके लिए लेकिन,</i></b></div><div><b><i>वो थे तो ज़िंदगी मेरी बचा लेता तो अच्छा था ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>दरींचों से मैं उनके दिल में दाखिल तो हुआ लेकिन,</i></b></div><div><b><i>जो उसमें आग नफ़रत की बुझा लेता तो अच्छा था ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>खुशी से झूमना चाहत थी उनकी पर मिली गफ़लत,</i></b></div><div><b><i>ज़रा उनके लिए मैं मुस्करा लेता तो अच्छा था ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>उन्हें था नाज़ जुल्फों पर मगर उम्मीद कुछ हमसे,</i></b></div><div><b><i>मैं उनकी जुल्फें ग़ज़लों में सजा लेता तो अच्छा था ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>लबों पर प्यास शिद्दत से मगर थी दर्द से नफरत,</i></b></div><div><b><i>छुपा कर दर्द आंखों में बसा लेता तो अच्छा था ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>हर्ष महाजन 'हर्ष'</i></b></div><div><b><i>1222 1222 1222 1222</i></b></div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-15570531427177278292022-03-01T02:05:00.003-08:002022-03-01T02:05:21.444-08:00इतनी सी बात गर ये बशर जान जाएगा<div style="text-align: left;"><b><i>इतनी सी बात गर ये बशर जान जाएगा,</i></b></div><div><b><i>नश्वर जहाँ से तन्हा ये इंसान जाएगा ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>तेरे हकूक तेरे नहीं सब खुदा का है,</i></b></div><div><b><i>थोड़ा जहाँ में ठहर तू पहचान जाएगा ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>कितना संभल के भी तू बना अपना आशियाँ,</i></b></div><div><b><i>मत सोच खाली कोई भी तूफ़ान जाएगा । </i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>गर ज़िन्दगी में तुझको लगे डर अँधेरों से,</i></b></div><div><b><i>नज़रें टिकाना संग निगहबान जाएगा ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>है इल्तिज़ा ख़ुदा से बसा दे बशर कोई,</i></b></div><div><b><i>जो लिख के हिज़्र पर कोई दीवान जाएगा ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>हर्ष महाजन 'हर्ष'</i></b></div><div><b><i>221 2121 1221 212</i></b></div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-83817295019374235912022-02-27T06:19:00.002-08:002022-02-27T06:20:11.048-08:00न जाने मुझको वो क्यूँ तलखियाँ दिखा के गया<div style="text-align: left;"><b><i>न जाने मुझको वो क्यूँ तलखियाँ दिखा के गया,</i></b></div><div><b><i>था बावफ़ा वो मगर मुझको क्यूँ रुला के गया ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>हुआ यकीन मुझे इस फरेबी दुनियाँ पे अब,</i></b></div><div><b><i>गुलाब बन जो मिला कांटे फिर चुभा के गया ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>शिकायतें थीं मुझे पर गिले भी उसको बहुत,</i></b></div><div><b><i>ख्याल अपनी वो ग़ज़लों में कुछ सुना के गया ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>निभा रहा था वो शिद्दत से दोस्ती को मगर,</i></b></div><div><b><i>जले चरागों को दिल से वो क्यूँ बुझा के गया ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>यकीं था इश्क़ पे जिसको गुमाँ भी मुझपे बहुत,</i></b></div><div><b><i>जुदाई के वो सनम दिन क्यूँ अब थमा के गया ।</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>हर्ष महाजन 'हर्ष'</i></b></div><div><b><i>1212 1122 1212 22/112</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>गुनगुनाइए इस धुन पर:-</i></b></div><div><b><i><br /></i></b></div><div><b><i>◆न मुँह छुपा के जियो औऱ न सर झुका के जियो ।</i></b></div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-4162956144000673932022-02-25T09:42:00.001-08:002022-02-25T09:42:38.363-08:00दगा दिया था अपनों ने यही मुझे मलाल था<div style="text-align: left;">दगा दिया था अपनों ने यही मुझे मलाल था ।</div><div>कसूर भी था अपनों की ज़मीर का कमाल था ।</div><div><br /></div><div>यूँ हसरतों की आग जिनकी रूह तक निगल गई,</div><div>ये वलवलों का जोर था या उनका ही बवाल था ।</div><div><br /></div><div>मैं जिस के वास्ते भी लिख रहा था वो इबारतें,</div><div>वो जिस तरह जुदा हुआ था वो भी इक सवाल था ।</div><div><br /></div><div>चुना था जिसने हमसफ़र उसी ने छोड़ा ये सफर,</div><div>न यार ही रहा यूँ हसरतों का इंतकाल था ।</div><div><br /></div><div>नसीब में नहीं था जो उसी का रंजो गम था ये,</div><div>किसे पता ये बे-वफा का रंग बे-मिसाल था ।</div><div><br /></div><div>हर्ष महाजन 'हर्ष'</div><div>1212 1212 1212 1212 </div><div><br /></div><div>वलवलों=उमंग</div><div>बवाल= झंझट</div><div>◆◆◆●◆◆◆</div><div><br /></div><div><br /></div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-80503424980166487262022-02-23T03:25:00.003-08:002022-02-23T19:31:11.136-08:00लफ्ज़ दे जाते हैं जो ज़ख़्म दिखाएँ कैसे,<div style="text-align: left;"><div>लफ्ज़ दे जाते हैं जो ज़ख़्म दिखाएँ कैसे,</div><div>दर्द सीने में जो उठता है बताएँ कैसे ।</div><div><br /></div><div>वो जो कहता है कि लफ़्ज़ों में है जन्नत लेकिन,</div><div>लफ्ज़ मरहम है बता फिर वो लगाएँ कैसे ।</div><div><br /></div><div>मीठी धड़कन को लिए पास से गुजरेगा कोई,</div><div>उससे उठती जो खनक दिल को सुनाएँ कैसे ।</div><div><br /></div><div>जिसकी चोटों ने मुझे चैन से रहने न दिया,</div><div>उसपे इल्ज़ाम मुहब्बत का बनाएँ कैसे ।</div><div><br /></div><div>इश्क़ करते भी नहीं औऱ किनारा भी नहीं,</div><div>दिल की महफ़िल में बता उसको बिठायें कैसे ।</div><div><br /></div><div>उसकी जुल्फें ही गुनाहों का सबब है लेकिन,</div><div>ज़ह्र से अपने कसक उसकी मिटायें कैसे ।</div><div><br /></div><div>ये भी सोचा था कि दिलबर का नजारा कर लूँ,</div><div>पर बता उसकी मुहब्बत को जगाएँ कैसे ।</div><div><br /></div><div>हर्ष महाजन 'हर्ष'</div><div>2122 1122 1122 22(112)</div><div><br /></div><div>इसी बह्र पर गीत गुनगुना कर देखें</div><div>""""""""""""""""""""""""""""""""""""""</div><div>●दिल की आवाज भी सुन दिल के फसाने पे न जा </div><div>● ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात </div><div>●कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया </div><div>●चुनरी सँभाल गोरी उड़ी चली जाए रे </div><div>●कोई हमदम न रहा कोई सहारा न रहा </div><div>●पाँव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी </div><div>●तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं</div><div>---------------------------------</div></div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-27055068463420841572022-02-22T08:38:00.006-08:002022-02-22T08:38:55.974-08:00उठ के महफ़िल से चला उसने मनाया भी नहीं<div style="text-align: left;"><div><br /></div><div>उठ के महफ़िल से चला उसने मनाया भी नहीं,</div><div>कोई शिकवा या गिला मुझको बताया भी नहीं ।</div><div><br /></div><div>ज़िन्दगी में था सुना है वो बहुत खुश भी मगर,</div><div>उसने कोई दीप मुहब्बत का जलाया भी नहीं ।</div><div><br /></div><div>किस तरह चेहरे पे चेहरा था टिकाया उसने,</div><div>दिल पे कितने हैं ज़ख़्म उसके दिखाया भी नहीं ।</div><div><br /></div><div>मैनें खोई थी मुहब्बत यूँ ही किसकी खातिर,</div><div>जिसने वादा तो कभी अपना निभाया भी नहीं ।</div><div><br /></div><div>उसके अहसास को छूने की थी जुर्रत मैनें,</div><div>उसकी हसरत थी कि नफ़रत ये जताया भी नहीं ।</div><div><br /></div><div>आज दिल पे जो निगाहों से दिया उसने ज़ख़्म,</div><div>मुझपे इल्जाम कोई उसने लगाया भी नही ।</div><div><br /></div><div><div>आजकल मुझको बहारें भी खिजां लगती हैं,</div><div>'हर्ष' ने खुद भी कभी मुझको सताया भी नहीं ।</div></div><div><br /></div><div><br /></div><div>हर्ष महाजन 'हर्ष'</div><div>2122 1122 1122 22(112)</div><div>◆दिल की आवाज भी सुन दिल के फसाने पे न जा ।</div><div>◆रंग और नूर की बारात कुसी पेश करूँ</div><div>◆तेरी तस्वीर को सीने पे लगा रक्खा है ।</div><div><br /></div><div><br /></div></div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-92141226642397610722022-02-19T20:00:00.002-08:002022-02-19T20:00:13.356-08:00जाने अखियों से छलकते अश्क क्यूँ उस याद में<p> </p><div align="left"><p dir="ltr"><br /><br /></p>
<p dir="ltr"><b><i> ग़ज़ल</i></b></p>
<p dir="ltr"><b><i>जाने अखियों से छलकते अश्क क्यूँ उस याद में,</i></b><br />
<b><i>जिसने तडपाया मुझे जलती हुई इक आग में | </i></b></p>
<p dir="ltr"><b><i>बेसबब ग़म आह बन निकलेगी उसके लहजे से,</i></b><br />
<b><i>दिल धड़कता पर रहेगा आस रख फ़रियाद में |</i></b></p>
<p dir="ltr"><b><i>जिस्म से ज्यूँ रूह निकले होता क्या पूछो मुझे,</i></b><br />
<b><i>आरज़ू उसके मिलन की ज्यूँ रहे जब ख़्वाब में |</i></b></p>
<p dir="ltr"><b><i>ज़ुल्फ़ दिल पे यूँ है काबिज़ भूल कर भूला नहीं,</i></b><br />
<b><i>चल रहा जिसका नशा देखो अभी भी शराब में |</i></b></p>
<p dir="ltr"><b><i>जिन हवाओं में कयामत अब तलक देखी न थी, </i></b><br />
<b><i>वो अदा इन आँखों ने देखी थी उनके शबाब में ।</i></b></p>
<p dir="ltr"><b><i>हर्ष महाजन 'हर्ष'</i></b><br />
</p>
</div><p dir="ltr"><br />
</p>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-42243879866071120762022-02-07T22:11:00.003-08:002022-02-07T22:18:55.495-08:00रूठी है ज़िन्दगी तो मुक़द्दर बदल गए<p> </p><div align="left"><p dir="ltr"><b><i> ग़ज़ल</i></b></p>
<p dir="ltr"><b><i>रूठी है ज़िन्दगी तो मुक़द्दर बदल गए ,</i></b><br />
<b><i>दुनियाँ </i></b><b><i>के भी हों जैसे ये तेवर बदल गए ।</i></b></p>
<p dir="ltr"><b><i>दीवार-ओ-दर में खुश था जहाँ तुम थे साथ पर,</i></b><br />
<b><i>कब नींव के न जाने ये पत्थर बदल गए ।</i></b></p>
<p dir="ltr"><b><i>जिनके भी साये में रहे हम उम्र भर जहाँ,</i></b><br />
<b><i>अब क्यूँ सभी शज़र वो वहॉं पर बदल गए ।</i></b></p>
<p dir="ltr"><b><i>रक्खा किये थे जिनको यूँ शानों पे हर जगह,</i></b><br /><i><b>दिल के करीब शख्स वो अंदर बदल गए ।</b></i></p>
<p dir="ltr"><b><i>रिश्तों में रक्खा बैर सदा उसने इस तरह,</i></b><br />
<b><i>नदियों में बंट के फिर वो समंदर बदल गए ।</i></b></p>
<p dir="ltr"><b><i>हर्ष महाजन 'हर्ष'</i></b><br />
<b><i>221 2121 1221 212</i></b></p>
<p dir="ltr"><br />
<b><i>●मिलती है ज़िन्दगी में मुहब्बत कभी कभी</i></b><br />
<b><i>●पहले तो अपने दिल की रजा जान जाइए |</i></b><br /><br />
</p>
</div><p dir="ltr"><br />
</p>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-80740358076291052342022-02-05T03:48:00.003-08:002022-02-05T10:16:04.008-08:00पतझड़ हुई तो टिक न सका शाख पे लेकिन<div style="text-align: left;">पतझड़ हुई तो टिक न सका शाख पे लेकिन,</div><div>कमज़ोर नहीं था पत्ता वो बुनियाद से लेकिन ।</div><div><br /></div><div>आँखों से गिरा अश्क़ जो दामन में खो गया,</div><div>वो मिट तो गया जान-ए-वफ़ा शान पे लेकिन ।</div><div><br /></div><div>महका रहा था रोज शज़र को था मगर वो,</div><div>पतझड़ हुई तो छोड़ा उसी पेड़ ने लेकिन ।</div><div><br /></div><div>क्या सोच के था चुन लिया यूँ भीड़ में मुझको,</div><div>पत्ते तो हरे लाखों थे उस पेड़ के लेकिन ।</div><div><br /></div><div>जब डोलियों में बैठ चलें बेटियाँ अपनी,</div><div>घर-घर तो रहे पर रहे वीरानी में लेकिन ।</div><div><br /></div><div>हर्ष महाजन 'हर्ष'</div><div>221 1221 1221 122</div><div><br /></div><div>इस बहर पर कुछ गीत देखिये और इनमें किसी भी धुन पर मेरी ग़ज़ल गुनगुनाइयेगा</div><div><br /></div><div>● दुनिया में जब आए हैं तो जीना ही पड़ेगा</div><div>● ये शाम की तन्हाईयाँ ऐसे में तेरा गम</div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-91289225413304677962022-02-02T09:42:00.001-08:002022-02-02T09:42:22.670-08:00हवा आज कुछ ठीक होगी तो जाने<p> </p><div align="left"><p dir="ltr"> <i><b>ग़ज़ल</b></i></p>
<p dir="ltr">हवा आज कुछ ठीक होगी तो जाने,<br />
बहुत बदले हैं हमने अपने ठिकाने ।</p>
<p dir="ltr">यूँ ख़्वाबों की अपने तो परवाज होगी,<br />
लगे थे जो सदमात उनको भुलाने ।</p>
<p dir="ltr">सदाकत भी भूले रफ़ाक़त भी भूले,<br />
सभी भूलें हैं हम पुराने जमाने ।</p>
<p dir="ltr">कभी हादसों में हुआ इश्क़ लेकिन,<br />
मिलेंगे तड़प कर गले अब लगाने ।</p>
<p dir="ltr">कभी होगी पतझड़ कभी फिर बहारें,<br />
मुहब्बत में रिश्ते सभी हैं निभाने ।</p>
<p dir="ltr">फ़क़त हम अज़ीयत में जीये अभी तक,<br />
चलो अब उजालों अँधेरा छुपाने ।</p>
<p dir="ltr">हुई शादमानी मिला हमसफ़र जो,<br />
मुहब्बत चली अब हमें आजमाने ।</p>
<p dir="ltr">हर्ष महाजन 'हर्ष'<br />
<a href="tel:122122122122">122 122 122 122</a><br />
★★★<br />
सदमात= गम ही गम<br />
परवाज़=उड़ान<br />
सदाकत=सच्चाई<br />
रफाकत=मेलजोल<br />
अज़ीयत= तकलीफें<br />
शादमानी= खुशी, प्रसन्नता<br />
★★★★★</p>
<p dir="ltr"><br /></p></div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-20630562244888556412022-01-31T19:22:00.006-08:002022-01-31T19:22:48.176-08:00अगर शोहरत यहाँ इंसान की बदनाम हो जाए<div style="text-align: left;"><div>..</div><div>अगर शोहरत यहाँ इंसान की बदनाम हो जाए,</div><div>तो हक में जो करोगे बात वो इल्जाम हो जाए ।</div><div><br /></div><div>मुझे ग़म ये नहीं मुझको यहाँ पढता नहीं कोई,</div><div>मेरी चाहत मेरा ये ग़म कोई सर-ए-आम हो जाए।</div><div><br /></div><div>ये उसकी जुल्फों के सदके लिखें मैंने बहुत नग्में,</div><div>मगर हर बार देखो ये कलम नीलाम हो जाये ।</div><div><br /></div><div>कभी तो चूम ले मुझको मेरे जज़्बात की खातिर,</div><div>न जाने किस घडी इस ज़िन्दगी की शाम हो जाए ।</div><div><br /></div><div>मेरी चाहत के मैं दीया बनूँ और वो बने बाती ,</div><div>मगर डर है जमाने का न ये नाकाम हो जाए ।</div><div><br /></div><div>हर्ष महाजन 'हर्ष'</div><div>1222 1222 1222 1222</div><div><br /></div><div><br /></div></div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-25751592319640265912022-01-28T07:45:00.001-08:002022-01-28T07:45:36.459-08:00इतनी करो भी हमसे शरारत न यूँ कभी<div>...</div><div><br /></div><div>इतनी करो भी हमसे शरारत न यूँ कभी,</div><div>आँखों से उठ ही जाए शराफत न यूं कभी |</div><div><br /></div><div>देखे, जो चांदनी में, नहाया तेरा बदन,</div><div>हो जाए शह्र में ये बगावत न यूँ कभी |</div><div><br /></div><div>वो चाँद जब फलक से कभी इस तरह झुके,</div><div>देखी है इस तरह की, इबादत न यूँ कभी |</div><div><br /></div><div>आओ, चलें चमन से, कहीं दूर, गुलबदन,</div><div>ये चाँदनी, करे वो, ख़िलाफ़त न यूँ कभी |</div><div><br /></div><div>चर्चा तेरी जफ़ाओं, का ये शह्र ढो रहा,</div><div>लगने लगे ये दिल में अदालत न यूँ कभी |</div><div><br /></div><div>हर्ष महाजन 'हर्ष'</div><div>221 2121 1221 212</div><div><br /></div><div>https://www.facebook.com/167070936684712/posts/989831204408677/</div><div><br /></div><div>6th Oct 2015 edited</div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-75715841762806584082022-01-25T08:52:00.001-08:002022-01-25T08:53:03.321-08:00छलक कर आंखों से अपनी कहीं सागर न बन जाऊँ<div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">छलक कर आंखों से अपनी कहीं सागर न बन जाऊँ,</div><div style="text-align: center;">न दिल को चोट दो इतनी कहीं पत्थर न बन जाऊँ।</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">यूँ जुल्फों को गिरा कर तुम मुझे बेहोश न कर दो,</div><div style="text-align: center;">तो फिर गुज़रे पलों का ख़ुद मैं इक मंज़र न बन जाऊँ ।</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">ज़माने की हदों को तोड़ निगाह-ए-नाज़ से देखो,</div><div style="text-align: center;">मगर डर है मुहब्बत का कहीं रहबर न बन जाऊँ।</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">कशिश रुखसार पे इतनी कि देखें तो हुए घायल,</div><div style="text-align: center;">कहीं मैं वक़्त से पहले तेरा दिलबर न बन जाऊँ ।</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">मैं ज़िंदा हूँ कि शायद तुम कभी मिल जाओगे मुझको,</div><div style="text-align: center;">फनां होंगी उमीदें तो दिल-ए-मुज़्तर न बन जाऊँ ।</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">हर्ष महाजन 'हर्ष'</div><div style="text-align: center;">1222 1222 1222 1222</div><div style="text-align: center;">25 जनवरी 22</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">निगाह-ए-नाज़=प्यार भरी नज़र</div><div style="text-align: center;">दिल-ए-मुज़्तर=व्याकुल, बैचेन</div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-25089374229228006692022-01-23T11:23:00.001-08:002022-01-25T08:03:25.378-08:00आँगन में मेरे है जो शज़र तुमको इससे क्या<div style="text-align: left;">आँगन में मेरे है जो शज़र तुमको इससे क्या,<br />उजड़ेगा इससे मेरा ही घर तुमको इससे क्या ।</div><div style="text-align: left;"><br />रहबर भी मिल सका न कोई इतनी भीड़ में, <br />मुश्किल से कट रहा है सफ़र तुमको इससे क्या ।</div><div style="text-align: left;"><br />माँ-बाप बेच कर थे मकाँ तुमको दे गए,<br />दर दर भटक रहे वो इधर तुमको इससे क्या ।</div><div style="text-align: left;"><br />किस दर्द से गुजरता है शब्दों से खेलकर,<br />शायर करे कमाल मगर तुमको इससे क्या ।</div><div style="text-align: left;"><br />दीवार ग़ल्त-फहमी की तुमने जो की खड़ी,<br />बिछुड़ा था मेरा लखत-ए-जिगर तुमको इससे क्या ।</div><div style="text-align: left;"><br />टुकड़ों में बँट गया था जिगर माँ का पल में यूँ,<br />बेटी चली जो छोड़ पिहर तुमको इससे क्या ।</div><div style="text-align: left;"><br />हर्ष महाजन 'हर्ष'<br />221 2121 1221 212</div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-28985822202290592902022-01-23T11:21:00.000-08:002022-01-23T11:21:00.395-08:00ठंडी हवा का झोंका था आकर चला गया,<div style="text-align: left;">ठंडी हवा का झोंका था आकर चला गया,<br />इक मौसमी बहार लुभाकर चला गया ।</div><div style="text-align: left;"><br />तूफाँ में फँस गया था समंदर के बीच में,<br />हो जाऊँगा फ़ना यूँ रुलाकर चला गया ।</div><div style="text-align: left;"><br />रोया था कितनी बार भँवर के मैं जाल में,<br />लेकिन ख़ुदा किनारा दिखाकर चला गया ।</div><div style="text-align: left;"><br />मुझको पता तूफाँ की हक़ीक़त का चल गया,<br />कीमत यूँ ज़िन्दगी की बताकर चला गया ।</div><div style="text-align: left;"><br />फितरत वो ज़लज़ले की यहाँ थी भी इस तरह,<br />मकसद वो ज़िन्दगी के जलाकर चला गया ।</div><div style="text-align: left;"><br />हर्ष महाजन 'हर्ष'<br />221 2121 1221 212</div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-81610268676058339012022-01-20T11:12:00.003-08:002022-01-20T11:12:45.269-08:00जब भी चाहो ये मुहब्बत को निभाना लेकिन<div style="text-align: left;"><br />जब भी चाहो ये मुहब्बत को निभाना लेकिन,<br />पर तू मंदिर न वो मस्ज़िद को भुलाना लेकिन ।</div><div style="text-align: left;"><br />बीच मझधार भँवर में भी फँसी कश्ती अगर,<br />गर खुदा सच में है देखेगा बचाना लेकिन ।</div><div style="text-align: left;"><br />बे-वफाओं से तू जितनी भी मुहब्बत कर ले,<br />वो न भूलेंगे कभी दिल को दुखाना लेकिन ।</div><div style="text-align: left;"><br />जिसके जज़्बात-ओ-खयालात में नफ़रत शामिल,<br />ज़ख़्म अपने न कभी उसको दिखाना लेकिन ।</div><div style="text-align: left;"><br />लज़्ज़त-ए-इश्क़ से सरशार अगर हो तुम भी,<br />अपने अश्क़ों को न रुकने को मनाना लेकिन ।</div><div style="text-align: left;"><br />हुस्न की ताब कोई दिल को लुभाए तेरे,<br />अपनी धड़कन न धड़कने से छुपाना लेकिन ।</div><div style="text-align: left;"><br />हर्ष महाजन 'हर्ष'<br />2122 1122 1122 22(112)<br />21 जनवरी 22<br />जज़्बात-ओ-ख्यालात= भावनाएं और विचार<br />ताब=ताप, गर्मी<br />लज़्ज़त-ए-इश्क़=प्रेम और आनंद<br />सरशार=लबरेज़</div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-62836187301510803072022-01-19T19:51:00.004-08:002022-01-19T19:51:47.043-08:00आसमाँ बादल बिना नाशाद है<div style="text-align: left;"><br />आसमाँ बादल बिना नाशाद है,<br />चाँदनी फिर चाँद की आज़ाद है । </div><div style="text-align: left;"><br />जब भी मौसम से ख़िज़ाँ जाने लगे,<br />तब समझना अब फ़िज़ा आबाद है ।</div><div style="text-align: left;"><br />गर इबादत में बहाए अश्क़ जो,<br />वो ख़ुदा को इंसाँ की फरियाद है ।</div><div style="text-align: left;"><br />जो मुहब्बत तोड़ धागा खो गई,<br />ज़िंदगी उसकी फ़क़त नाशाद है ।</div><div style="text-align: left;"><br />खुदकशी को हो गया मजबूर वो,<br />शख्स वो जो प्यार में बर्बाद है ।</div><div style="text-align: left;"><br />हर्ष महाजन 'हर्ष'<br />2122 2122 212<br />20 जनवरी 22<br />नाशाद"=दुःखी, नाखुश।</div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-85677046390107836902022-01-18T04:58:00.000-08:002022-01-18T04:58:11.864-08:00सभी ने देखा है अब ख़ौफ़ इक उसकी निगाहों में<div style="text-align: left;">सभी ने देखा है अब ख़ौफ़ इक उसकी निगाहों में,<br />यकीनन राज़ है इसका उसी के ही गुनाहों में ।</div><div style="text-align: left;"><br />कभी वो दिन थे फिक्र-ए-रंज था उसको नहीं कोई,<br />न जाने क्या हुआ रहता है अब ग़म की पनाहों में ।</div><div style="text-align: left;"><br />वो टूटा अपनों के ज़ख़्मों से लगता नीम पागल अब,<br />नहीं दिखता बचा अब कोई उसके खैर-ख़्वाहों में ।</div><div style="text-align: left;"><br />ये नफ़रत बढ़ गयी शायद दयार-ए-इश्क़ में इतनी,<br />उड़ीं हैं रातों की नींदे जो उसकी ख़्वाब-गाहों में ।</div><div style="text-align: left;"><br />तसव्वुर में भी उसके तिलमिलाहट हो रही इतनी,<br />असर देखा है उठता दर्द हमने उसकी आहों में ।</div><div style="text-align: left;"><br />हर्ष महाजन 'हर्ष'<br />1222 1222 1222 1222<br />★<br />दयार-ए- इश्क़= प्यार की दुनियाँ<br />ख़्वाब-गाह=शयन-कक्ष</div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-7996041024537291952022-01-17T19:36:00.003-08:002022-01-17T21:29:55.951-08:00जो तू उठा दे मुझे रंजो ग़म से पार यहाँ<div style="height: 0px; text-align: left;"></div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">जो तू उठा दे मुझे रंजो ग़म से पार यहाँ,</div><div style="text-align: center;">मिले सकून तुझी से मुझे करार यहॉं।</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">कभी निगाह ने तेरी था मार डाला मुझे,</div><div style="text-align: center;">तुझी से दर्द मिला अर मिला ख़ुमार यहाँ ।</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">मिटा दे ज़ुल्म तू उस दिल की है तलाश मुझे,</div><div style="text-align: center;">महक उठे ये फ़िजां अर चले बहार यहाँ ।</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">तू कौन शख्स सर-ए-अंजुमन कहा था मुझे,</div><div style="text-align: center;">पुकारता जो मुझे हँस के बार बार यहाँ।</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">असीम दर्द लिए घूमता हूँ सीने में अब,</div><div style="text-align: center;">दिए हैं ग़म भी तो तूने मुझे हज़ार यहाँ ।</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">किसी को भी न मिला वो फलक जो मुझको मिला,</div><div style="text-align: center;">शब-ए-विसाल की बातें करे था यार यहाँ ।</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">यकीं मैं कैसे करूँ 'हर्ष' इन लकीरों पर,</div><div style="text-align: center;">मुहब्बतों में मिला मुझको अश्क़बार यहाँ ।</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">हर्ष महाजन 'हर्ष'</div><div style="text-align: center;">1212 1122 1212 22(112)</div><div style="text-align: center;">18 जनवरी 22</div><div style="text-align: center;">शब-ए-विसाल=मिलन की रात</div><div style="text-align: center;">अश्क़बार=रोने वाला</div><div style="text-align: center;">सर-ए-अंजुमन=भरी सभा में</div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-70251440581558678052022-01-16T19:45:00.004-08:002022-01-16T19:45:23.118-08:00जब से हुई है तुमसे मुलाकात शाम की<div style="text-align: left;"><br /><br />जब से हुई है तुमसे मुलाकात शाम की,<br />पढ़ता हूँ अब मैं गज़लें फ़क़त तेरे नाम की ।</div><div style="text-align: left;"><br />शोहरत को दी न मैनें तवज़्ज़ो भी आज तक ,<br />चाही फ़क़त ज़रा सी मुहब्बत कलाम की ।</div><div style="text-align: left;"><br />नफ़रत से हो रहे हैं ज़रर रिश्तों में भी अब,<br />उल्फ़त की रह गयी है ये तस्वीर नाम की ।</div><div style="text-align: left;"><br />पलकों में कैसे जज़्ब करूँ अश्क़ ऐ खुदा,<br />यादें रहीं न काबू फ़क़त इक वो शाम की ।</div><div style="text-align: left;"><br />रिश्तों में आ चुकी थीं दरारें भी इस तरह<br />होती नहीं है शाम बिना कोई जाम की ।</div><div style="text-align: left;"><br />हर्ष महाजन 'हर्ष'<br />221 2121 1221 212<br />17 जनवरी 22<br />★<br />ज़रर=नुकसान<br />जज़्ब= सोख</div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-5330022836114435798.post-84572159964218922642022-01-15T20:18:00.006-08:002022-01-15T20:18:46.455-08:00दर्द-ए-दिल पर किसकी हैं परछाइयाँ<div style="text-align: left;"><br />दर्द-ए-दिल पर किसकी हैं परछाइयाँ,<br />साथ जिनके इतनी हैं गहराइयाँ ।</div><div style="text-align: left;"><br />ज़िन्दगी का यूँ सफ़ऱ मुश्किल हुआ,<br />इतनी रंजिश, इतनी हैं रुसवाईयाँ।</div><div style="text-align: left;"><br />हो रही खामोश अब ये ज़िन्दगी,<br />ख़्वाब बन रह जायेंगी शहनाइयाँ।</div><div style="text-align: left;"><br />ज़ख़्म हर पल कर रहे छलनी जिगर,<br />जिस सफ़र पर इतनी थीं रानाइयाँ ।</div><div style="text-align: left;"><br />दर्द-ए-ग़म का है ठिकाना 'हर्ष' जब,<br />हमसफर जब से हुईं रुसवाईयाँ ।</div><div style="text-align: left;"><br />हर्ष महाजन 'हर्ष'<br />"तुम न जाने किस जहाँ में खो गए"<br />2122 2122 212<br />15 जनवरी 22<br />★<br />रानाइयाँ=सुंदरता<br />रुसवाईयाँ=बेइजती ,बदनामी, अपमान और दुर्गति , निंदा, जिल्लत </div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com14