पुरानी डायरी से एक ग़ज़ल .....
...
खिजाँ आयी है किस्मत में बहारों का भी दम निकले,
जहाँ ढूँढें हम अरमां को , वहां अरमां भी कम निकले |
हजारों गम हुए दिल में न मुझको राख ये कर दें ,
कहीं इन ज़र्द आँखों से नदी बन के न हम निकले |
तुम्हें लिख-लिख के ख़त अक्सर कभी हम भूल जाते थे,
पुराने ख़त दराजों से जो निकले आज, नम निकले |
किसी की जुस्तजू करके कि खुद को खो चुके हैं हम,
उधर से बेरुखी उनकी इधर दुनिया से हम निकले |
जगह छोड़ी है जख्मों ने कहाँ अब 'हर्ष' सीने में,
कहीं इन सुर्ख ज़ख्मों से न लावा बनके गम निकले |
_________हर्ष महाजन ©
1222 1222 1222 1222
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खिजाँ आयी है किस्मत में बहारों का भी दम निकले,
जहाँ ढूँढें हम अरमां को , वहां अरमां भी कम निकले |
हजारों गम हुए दिल में न मुझको राख ये कर दें ,
कहीं इन ज़र्द आँखों से नदी बन के न हम निकले |
तुम्हें लिख-लिख के ख़त अक्सर कभी हम भूल जाते थे,
पुराने ख़त दराजों से जो निकले आज, नम निकले |
किसी की जुस्तजू करके कि खुद को खो चुके हैं हम,
उधर से बेरुखी उनकी इधर दुनिया से हम निकले |
जगह छोड़ी है जख्मों ने कहाँ अब 'हर्ष' सीने में,
कहीं इन सुर्ख ज़ख्मों से न लावा बनके गम निकले |
_________हर्ष महाजन ©
1222 1222 1222 1222
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