...
कहूँ मैं कैसे मुझे खुद पे इख्तियार नहीं,
लगे है दुनियाँ में अब मेरा कोई यार नहीं ।
ये दिन ये रात कई इस खिजां में बीते मगर,
ये अश्क़ आज भी आँखों में गिरफ्तार नहीं ।
किसी पे वक़्त कहाँ पूछे मुझसे हाल यहां,
ये आशियाँ है जहां अब तलक बहार नहीं ।
ये अश्क़ निकलें तो दर्दे गुबार निकलेगा यूँ,
मगर हैं ख्वाब जो आँखों को ऐतबार नहीं ।
ये दर्द ए सहरा बना दिल भी 'हर्ष'आज तेरा,
किसी कली को याँ खिलने का इंतज़ार नहीं ।
-----------हर्ष महाजन
बहर
1212 1122 1212 112
कहूँ मैं कैसे मुझे खुद पे इख्तियार नहीं,
लगे है दुनियाँ में अब मेरा कोई यार नहीं ।
ये दिन ये रात कई इस खिजां में बीते मगर,
ये अश्क़ आज भी आँखों में गिरफ्तार नहीं ।
किसी पे वक़्त कहाँ पूछे मुझसे हाल यहां,
ये आशियाँ है जहां अब तलक बहार नहीं ।
ये अश्क़ निकलें तो दर्दे गुबार निकलेगा यूँ,
मगर हैं ख्वाब जो आँखों को ऐतबार नहीं ।
ये दर्द ए सहरा बना दिल भी 'हर्ष'आज तेरा,
किसी कली को याँ खिलने का इंतज़ार नहीं ।
-----------हर्ष महाजन
बहर
1212 1122 1212 112
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