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बन के दरिया गर समंदर...आँखों से चला आया हो,
दिल को मुमकिन है किसी गम ने बहुत तड़पाया हो ।
अपने ही गुलशन की कलियां गैर जब लगने लगें
तो समझना ज़ख्म कोई दिल से आ टकराया हो ।
खुश्क आँखों में अगर अश्क़ों की आ जाए महक,
तो यकीनन माँ का साया ख्वाब में उभर आया हो ।
पतझड़ों में हैराँ मौसम कुछ शज़र क्यूँ खिल गये,
अश्क़ शायद इनके साये.....में कभी टपकाया हो ।
कोई किस्मत में नहीं.............ढूँढा बहुत संसार में,
ये भी था मुमकिन खुदा ने उसको खुद भटकाया हो ।
-----------------हर्ष महाजन
बहरे रमल मुसम्मन महजूफ
2122 2122 2122 212
बन के दरिया गर समंदर...आँखों से चला आया हो,
दिल को मुमकिन है किसी गम ने बहुत तड़पाया हो ।
अपने ही गुलशन की कलियां गैर जब लगने लगें
तो समझना ज़ख्म कोई दिल से आ टकराया हो ।
खुश्क आँखों में अगर अश्क़ों की आ जाए महक,
तो यकीनन माँ का साया ख्वाब में उभर आया हो ।
पतझड़ों में हैराँ मौसम कुछ शज़र क्यूँ खिल गये,
अश्क़ शायद इनके साये.....में कभी टपकाया हो ।
कोई किस्मत में नहीं.............ढूँढा बहुत संसार में,
ये भी था मुमकिन खुदा ने उसको खुद भटकाया हो ।
-----------------हर्ष महाजन
बहरे रमल मुसम्मन महजूफ
2122 2122 2122 212
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