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जाम खाली सामने खलते रहे,
ज़ख़्म दिल के दिल में ही पलते रहे l
नीदों से जब हो गए हम बेदखल,
साथ बीते दिन सभी खलते रहे ।
चाँद जब बदली से फिर-फिर झाँकता,
दिल में उठते कुछ भँवर छलते रहे ।
ज़िन्दगी वीरान जब होने लगी,
सपने फिर बन ख़ौफ़ सँग चलते रहे ।
इन लबों पर क्यूँ भला आती हँसी,
आफ़ताब-ए-इश्क़ में जलते रहे ।
-हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 2122 212
'दिल के अरमां आंसुओं में बह गए'