Wednesday, August 5, 2020

जो दुश्मन है कभी तुमको नहीं अपना कहा करते,

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जो दुश्मन है कभी तुमको नहीं अपना कहा करते,
ये कलयुग है यहॉं अपने नहीं अपने हुआ करते ।

कभी मैंने किसी का भी बुरा चाहा नहीं अब तक,
मगर किस्मत ने हाथों में लिखी ठोकर तो क्या करते ।

जिन्हें है ग़म कि दुनियाँ में क्युँ ऊपर है ख़ुदा उनसे,
हुआ मंज़र तबाही का ख़ुदा भी क्या वफ़ा करते ।

नहीं मैं बेख़बर अब रूबरू हूँ मौत से लेकिन,
यहाँ पर दोस्त दुश्मन से भी बदतर क्यूँ जफ़ा करते ।

ज़माने में हुआ करते है ऐसे भी ये मंज़र क्यों,
वफ़ा करके भी आंखों में समन्दर क्यों रहा करते ।

------हर्ष महाजन 'हर्ष'

1222 1222 1222 1222
"मुहब्बत हो गयी जिनको वो परवाने कहां जाएं"

14 comments:

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    1. शुक्रिया जिसहि जी ।

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  2. नहीं मैं बेख़बर अब रूबरू हूँ मौत से लेकिन,
    यहाँ पर दोस्त दुश्मन से भी बदतर क्यूँ जफ़ा करते
    ...बहुत खूब!

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    1. पसंदगी पर आपके स्नेहिल शब्दों का बहुत बहुत शुक्रिया कविता रावत जी ।

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  3. मीना भारद्वाज जी मेरी ग़ज़ल को "राम देखै है, राम न्याय करेगा" में स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।
    सादर ।

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  4. वाह!लाजवाब सृजन।
    सादर

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    1. शुक्रिया अनीता सैनी जी ।
      सादर ।

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  5. बहुत बहुत शुक्रिया हिन्दीगुरु जी ।
    सादर ।

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  6. जिन्हें है ग़म कि दुनियाँ में क्युँ ऊपर है ख़ुदा उनसे,
    हुआ मंज़र तबाही का ख़ुदा भी क्या वफ़ा करते ।

    बहुत खूब.लाजबाब गजल ,सादर नमन आपको

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    1. पसंदगी के लिए बेहद शुक्रिया कामिनी सिन्हा जी ।
      सादर ।

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  7. बहुत ही सुंदर

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    1. शुक्रिया ओंकार जी ।
      सादर ।

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  8. जिन्हें है ग़म कि दुनियाँ में क्युँ ऊपर है ख़ुदा उनसे,
    हुआ मंज़र तबाही का ख़ुदा भी क्या वफ़ा करते ।
    वाह!!!
    लाजवाब गजल

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सुधा जी ।
      सादर ।

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