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जो दुश्मन है कभी तुमको नहीं अपना कहा करते,
ये कलयुग है यहॉं अपने नहीं अपने हुआ करते ।
कभी मैंने किसी का भी बुरा चाहा नहीं अब तक,
मगर किस्मत ने हाथों में लिखी ठोकर तो क्या करते ।
जिन्हें है ग़म कि दुनियाँ में क्युँ ऊपर है ख़ुदा उनसे,
हुआ मंज़र तबाही का ख़ुदा भी क्या वफ़ा करते ।
नहीं मैं बेख़बर अब रूबरू हूँ मौत से लेकिन,
यहाँ पर दोस्त दुश्मन से भी बदतर क्यूँ जफ़ा करते ।
ज़माने में हुआ करते है ऐसे भी ये मंज़र क्यों,
वफ़ा करके भी आंखों में समन्दर क्यों रहा करते ।
------हर्ष महाजन 'हर्ष'
1222 1222 1222 1222
"मुहब्बत हो गयी जिनको वो परवाने कहां जाएं"
वाह लाजवाब।
ReplyDeleteशुक्रिया जिसहि जी ।
Deleteनहीं मैं बेख़बर अब रूबरू हूँ मौत से लेकिन,
ReplyDeleteयहाँ पर दोस्त दुश्मन से भी बदतर क्यूँ जफ़ा करते
...बहुत खूब!
पसंदगी पर आपके स्नेहिल शब्दों का बहुत बहुत शुक्रिया कविता रावत जी ।
Deleteमीना भारद्वाज जी मेरी ग़ज़ल को "राम देखै है, राम न्याय करेगा" में स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।
ReplyDeleteसादर ।
वाह!लाजवाब सृजन।
ReplyDeleteसादर
शुक्रिया अनीता सैनी जी ।
Deleteसादर ।
बहुत बहुत शुक्रिया हिन्दीगुरु जी ।
ReplyDeleteसादर ।
जिन्हें है ग़म कि दुनियाँ में क्युँ ऊपर है ख़ुदा उनसे,
ReplyDeleteहुआ मंज़र तबाही का ख़ुदा भी क्या वफ़ा करते ।
बहुत खूब.लाजबाब गजल ,सादर नमन आपको
पसंदगी के लिए बेहद शुक्रिया कामिनी सिन्हा जी ।
Deleteसादर ।
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteशुक्रिया ओंकार जी ।
Deleteसादर ।
जिन्हें है ग़म कि दुनियाँ में क्युँ ऊपर है ख़ुदा उनसे,
ReplyDeleteहुआ मंज़र तबाही का ख़ुदा भी क्या वफ़ा करते ।
वाह!!!
लाजवाब गजल
बहुत बहुत शुक्रिया सुधा जी ।
Deleteसादर ।