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मुझे ग़म है मेरा कोई यहाँ दीवाना नहीं है,
यक़ीनन दुनियाँ ने मुझको यहाँ पहचाना नहीं है ।
हुआ हूँ पारा-पारा देख ज़माने की अदाओं को,
मुझे क्यूँ लगता था कोई यहाँ बेगाना नहीं है ।
चले तलवारों की माफ़िक़ ज़ुबाँ अपने क़रीबों की,
लगे वैसे भी अब मौसम यहाँ सुहाना नहीं है ।
हुए हमदर्द अब दुश्मन खुदाया दे क़फ़न मुझको,
यहाँ बे-दर्द दुनियाँ में मेरा ठिकाना नहीं है ।
तज़ुर्बा हो गया मुझको सहे जब शोले नफ़रत के,
हुई जो साज़िशें पर 'हर्ष' यहाँ अनजाना नहीं हैं ।
हर्ष महाजन
हर्ष महाजन
एक पुरानी कृति (ज़रा नज़रों से कह दो जी निशाना चूक न जाए)