ये कैसा वार मेरे यार करके छोड़ दिया,
मेरा नसीब क्यूँ बीमार करके छोड़ दिया ।
अभी-अभी तो गुलों में बहार होने को थी,
हवा को किसने गिरफ़्तार करके छोड़ दिया ।
ढली है शाम-ओ-सहर औऱ उम्र भी पल में,
हुए ज़ुदा तो गुनाहगार करके छोड़ दिया ।
वो बेवफ़ा भी कहें मुझको ये कबूल सही,
मगर है रंज मुझे प्यार करके छोड़ दिया ।
ज़ुदा हुए तो हुए इसका तो है ग़म लेकिन,
है ग़म तो उसका कि गुल **खार करके छोड़ दिया ।
लगी क्या आँख जरा सी वफ़ा भी भूल गए,
मेरा वज़ूद यूँ मझधार करके छोड़ दिया ।
ज़मी भी थम सी गयी आसमाँ ठहर सा गया,
यूँ मेरी हस्ती को बेकार करके छोड़ दिया ।
जो कद्र करता रहा उम्र भर तेरी लेकिन,
उसी चराग़ को बेज़ार करके छोड़ दिया ।
तवाफ़* करता रहूँ तेरे इर्द गिर्द लेकिन,
ये आस पास क्यूँ दीवार करके छोड़ दिया ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
1212 1122 1212 112(22)