Wednesday, June 24, 2020

वो शख्स इस तरह मुझे बदनाम कर गया



Re-written Gazal
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वो शख्स इस तरह मुझे बदनाम कर गया,
दिल में छुपे वो राज़ सर-ए-आम कर गया ।

नफरत नहीं मगर जो कहा बेवफ़ा मुझे,
वो शख्स इस तरह मुझे बे-दाम कर गया ।

रुक्सत हुआ तो दिल में लिए बोझ था बहुत,
वो जाते-जाते दोस्ती नीलाम कर गया ।

रुतबे पे अपने मुझको था क्या-क्या गुमाँ मगर,
किस-किस अदा से शह्र में बदनाम कर गया ।

दिलचस्प बात ये कि मुझे इल्म ही नहीं,
अपने वो क़र्ज़ सारे मेरे नाम कर  गया ।

इतनी सी आरज़ू है कोई कह सके उसे,
है कौन जिसके वास्ते वीरान कर गया ।

चर्चा भी उसकी शह्र में इज़्ज़त भी बढ़ चली,
ऐसा लगा वो ख़ुद को सुलेमान कर गया ।

ऐ 'हर्ष' ऐसी दुनियाँ में कैसे जियेगा अब,
दिल में बसा जहान वो शमशान कर गया ।

ये ज़ुल्म ये हया ओ सज़ा उसने दी मुझे,
अब सोचता हूँ वो मुझे इंसान कर गया ।

----हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2121 1221 212
मिलती है ज़िन्दगी में मुहब्बत कभी कभी

Tuesday, June 23, 2020

सज़ा बिन अदालत सुनाना तुम्हारा

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सज़ा बिन अदालत सुनाना तुम्हारा,
यूँ पलकों में फिर मुस्कराना तुम्हारा ।

बताऊँ मैं तुझको ये कैसे हक़ीक़त,
लगा दिल पे ऐसा निशाना तुम्हारा ।

समाए थे दिल के दरीचों में तुम पर,
मिला दुश्मनी का ज़माना तुम्हारा ।

कहाँ कब थी तूने लगाई ये महफ़िल,
ये कब तूने बदला ठिकाना तुम्हारा ।

सुलगती महब्बत में बैठे थे दिल में,
ये देखा है शोले बुझाना तुम्हारा ।

लुटा जिस तरह मैं लुटोगे युँ तुम भी,
मैं देखूँगा यूँ तिलमिलाना तुम्हारा ।

मुअत्तल किया क्यूँ तेरी रहमतों से,
दिया दर्द और आज़माना तुम्हारा ।

मेरे घर के चिलमन अभी तक सजे हैं,
जो पूछेंगे मुझसे न आना तुम्हारा ।

चलो जो हुआ उसको तकसीम कर लें,
मेरी थी मुहब्बत फ़साना तुम्हारा ।

हुआ अब मैं रुक्सत तेरी दिल्लगी से,
ख़ुदाई तुम्हारी, ज़माना तुम्हारा ।**

--हर्ष महाजन 'हर्ष'
122 122 122 122
मुझे प्यार की ज़िंदगी देने वाले

Saturday, June 20, 2020

जो बशर अपनों के ज़ुल्मों से बिख़र जाते हैं

💐#विनम्र_श्रद्धांजलि  💐  
 -.-.-.-.-.-.-.-.
 #प्रतिभाशाली_कलाकार_एवं_उम्दा_शख्सियत_सुशांत_सिंह_राजपूत_जी की असमय विदाई पर 🙏#विनम्र_शाब्दिक_श्रद्धांजलि 
💐💐💐

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जो बशर अपनों के ज़ुल्मों से बिख़र जाते हैं,
अपनी हस्ती को मिटा कर वो गुज़र जाते हैं ।

ले चले क़ोई भी क़ामिल उसे मंज़िल की तरफ,
फ़िर ज़िधर जाते हैं वो रूह में उतर जाते हैं ।

ग़र ख़बर थी कि वो शिकवों से ख़फ़ा हैं इतना,
कौन क़ातिल है देके दर्द-ए-ज़िगर जाते हैं ।

जो अदाओं से क़भी दिल में उतर जाएँ वो, 
इक बुराई है तो बस ये है कि मर जाते हैं ।**

ज़ुल्म जब हद से गुज़रता है तो हँसती दुनियाँ,
मौत पर शख़्स वही अश्क़ ले घर जाते हैं ।

कौन कहता है ये तक़दीर ख़ुदा लिख़ता है,
कर्म अपने हैं हथेली में उभर जाते हैं ।

----हर्ष महाजन 'हर्ष'
बशर= आदमी
क़ामिल= पूर्ण/perfect

बहर:-
2122 1122 1122 22
"दिल की आवाज़ भी सुन दिल के फ़साने पे न जा"

Friday, June 19, 2020

इश्क़ दरिया है पार कौन करे

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इश्क़ दरिया है पार कौन करे, 
बे-वजह ये शिकार कौन करे ।

ज़ुल्म इतना है ऐसी जन्नत में,
ज़िन्द अपनी बेकार कौन करे ।

इतना देता है हमको वो मौला,
ग़म में खुद को शुमार कौन करे ।

इतने भँवरे हैं इस सफ़र में यहाँ,
देखें दिल का शिकार कौन करे ।**

मेरा ईमान ही तो दौलत है,
इश्क़ इस पर सवार कौन करे ।

आजकल छू रही फ़लक को अना,
अब ये ख़िदमत भी यार कौन करे ।

है मुहब्बत मुझे ख़ुदा से मग़र,
फ़ानी दुनियाँ से प्यार कौन करे ।

---हर्ष महाजन 'हर्ष'
बहर:-
2122 1212 22(112)

Thursday, June 18, 2020

मत सोच हम भी खेल में हारे नहीं हुए

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मत सोच हम भी खेल में हारे नहीं हुए,
बस इतना फ़र्क है कि किनारे नहीं हुए ।

उनकी निग़ाहें नाज़ का मारा नहीं मग़र,
तहज़ीब इतनी थी कि इशारे नहीं हुए ।

ख़्वाहिश थी आके ख़ुद वो रिझा ले मुझे मग़र,
ख़त लिख के कह दिया कि  तुम्हारे नहीं हुए ।

औरों के रंज ओ ग़म दिए उसने अगर  मुझे,
फिर उनके क्यूँ नसीब हमारे नहीं हुए ।

हर शख्स चाहने लगा था इस कदर मुझे,
पर ज़िंदगी में वो भी सहारे नहीं हुए ।

-----हर्ष महाजन 'हर्ष'
बहर:-
221  2121 1221 212
मिलती है ज़िन्दगी में मुहब्बत कभी कभी

Wednesday, June 17, 2020

जो कली ख़िलनी थी मसल डाली

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जो कली ख़िलनी थी मसल डाली,
फिर वो ज़ालिम ने घर ख़बर डाली ।

जो चमन इतना खूबसूरत था,
 उसने दहशत से बद-नज़र डाली ।

जब मिली ख़ाक में ही इज़्ज़त तो,
उसने कुछ ऐसी बात कर डाली ।

इतनी उजड़ी फ़ज़ा थी गुलशन की,
फिर न खलकत ने भी क़दर डाली ।

अब ज़माने से माँगे है वो सिला,
कितनी भोली नज़र किधर डाली ।

इतनी लाचारगी वो मुफ़लिस की,
फिर दुआ मरने की थी कर डाली ।

मुख़्तसर हो गया युँ उसका सफ़र,
उसने सब ख़त में हो निडर डाली ।

हुक्मरां कैसे कोई बदलेगा,
जिनकी दौलत से जेब भर डाली ।

वक़्त बदला तो 'हर्ष' बदलेगा,
जो सियासत के घर नज़र डाली ।

----हर्ष महाजन 'हर्ष'

बहर:-
2122 1212 22(112)
"याद में तेरी जाग-जाग के हम
रात भर करवटें बदलते रहे ।"

Tuesday, June 16, 2020

मेरा कोई भी वस्ल-ए-यार नहीं

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मेरा कोई भी वस्ल-ए-यार नहीं,
तुम भी कहते हो ऐतबार नहीं ।

 देखी दिलकश अदा जो आखों में,
कैसे कह दूँ कि तुझको प्यार नहीं 

राज-ए-दिल कैसे कोई जानेगा,
कोई ग़म है या कह दे यार नहीं ।

मुझको देखा भी तूने परखा भी,
कैसे समझूँ तू बेकरार नहीं ।

करना होगा तुझे यकीं मुझ पर,
देखा है मुझसा राज़दार नहीं ।

खेले लब पे तेरे हँसी अब क्यूँ,
क्या तुझे मेरा इन्तिज़ार नहीं 

जाम-ए-उल्फ़त नहीं पिया लेकिन ,
अब तुझे खुद पे इख़्तियार नहीं ।

गर ये दुश्मन बनी है तन्हाई,
पर ये उलझन कोई दीवार नहीं ।

---हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1212 22(112)
यूँ ही तुम मुझसे बात करती हो ।

Monday, June 15, 2020

उठके मैयत से निकल कह दो मना लें तुमको

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उठके मैयत से निकल कहदो मना लें तुमको,
तू सितारा है ज़मीं पे तो बुला लें तुमको ।

शोहरत ने जो तुम्हें आज चुराया हमसे,
हम भी नग्मों में सनम आज सजा लें तुमको ।

तेरे ग़म में जो कभी शौक़ यहाँ पाले थे,
चल के मैख़ाने में सोचा कि दिखा लें तुमको ।

तेरी हसरत कि निग़ाहों से गिरा दे हमको,
अपनी हसरत कि निगाहों में उठा लें तुमको ।

जिन चराग़ों से मिली रौशनी मंज़िल के लिए,
आओ किस्मत के अँधेरों से बचा लें तुमको ।

हमने सोचा था कि इक शाम तेरे नाम करें,
दिल ने फिर चाहा उसी शाम मना लें तुमको ।

अपने तुम प्यार को सब नाज़ से रखना लेकिन,
सोचा खोया है सनम अपना बता लें तुमको ।

दिल मुहब्बत के अगर लम्हों को जीना चाहे,
मेरी मैयत में मिलेंगे वो सँभाले तुमको ।

--हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1122 1122 22(112)
दिल की आवाज भी सुन दिल के फ़साने पे न जा

Saturday, June 13, 2020

कभी महफिलों में कभी महकशी पर,

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कभी महफिलों में कभी महकशी पर,
मिला तंज मुझको मेरी हर हँसी पर ।

मुझे ज़िंदगी में जो प्यारा था सब से,
उसी ने था ढाया सितम ज़िन्दगी पर ।

किया अंजुमन से ज़ुदा बेरुख़ी से,
न रो भी सका आँसुओं की कमी पर ।

ख़ुदा जब से बिछुड़ा मैं, बिछुड़ी है जन्नत,
मिले ज़ख़्म इतने युँ रूह की ज़मी पर ।

उड़ा भी बहुत आसमाँ पे मैं इतना,
गुनाहों पे सोचा न समझा बदी पर ।

ख़ताओं को मेरी वफ़ा तू समझ के,
ख़ुदा पर्दा रखना मेरी बेबसी पर ।

चरागों पे थी ज़िन्दगी जो मुनस्सर,
वो बुझने लगे हैं मेरी बेख़ुदी पर ।

-हर्ष महाजन 'हर्ष'

122 122 122 122
मुझे प्यार की ज़िंदगी देने वाले ।

महकशी--शराब पीना
अंजुमन--महफ़िल
बदी----अंधेरा, बुराई
मुनस्सर,--depend

Friday, June 5, 2020

हम तो अपनों से सब ही हारे थे

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हम तो अपनों से सब ही हारे थे,
जुर्म कुछ उनके कुछ हमारे थे ।

बे-वफ़ाओं से थी निभाई वफ़ा,
अब वो मुश्किल में सब किनारे थे ।

जो उठाते थे उँगलियाँ हम पर,
साथ उनके ही दिन गुज़ारे थे ।

टूटकर जिनको हमने चाहा कभी,
हमको पत्थर उन्हीं ने मारे थे ।

हमको जन्नत ज़मीं पे मिल जाये,
काश मिल जाएं जो सहारे थे ।

--हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1212 22/112
यूँ ही तुम मुझसे बात करती हो

Thursday, June 4, 2020

वो रोया बहुत बे-हया कहते कहते

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वो रोया बहुत बे-हया कहते कहते,
ज़ुदा हो गया बे-वफ़ा कहते कहते ।

समंदर में कश्ती उतारो न ऐसे,
मैं हारा तूफानी हवा कहते कहते ।

हुआ हादसा दोस्ती में यक़ीनन,
मैं टूटा बहुत बावफ़ा कहते कहते ।

ख़ुदा हाथ में कुछ लकीरें दे ऐसी
थका हूँ मुझे दे रज़ा कहते कहते ।

सितम उसका दिल को छुआ इस तरह वो ,
जो अश्क़ों से रुक्सत हुआ कहते कहते ।

मुहब्बत में दिल ने सहा दर्द इतना,
बहुत पीया मैंने दवा कहते कहते ।

ग़में दास्ताँ अपनी कैसे लिखूँगा,
वो दिल ले गया अलविदा कहते कहते ।

चली महफिलों में ग़ज़ल ऐसी ऐसी,
*तेरे हुस्न को 'बेवफ़ा' कहते कहते* ।

खुदा ने जो पूछा मुहब्बत हुई क्या ?
तो तड़पा बहुत ये सज़ा कहते कहते ।

-------हर्ष महाजन 'हर्ष'
122 122 122 122
तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ