ये रुख अब हवा का बदलने लगा है,
यूँ मौसम ये शोला उगलने लगा है ।
पता जब चला साजिशों का था हमको,
तो दिल कातिलों का दहलने लगा है ।
भला कब तलक क़ैद साँसे रहेंगी,
कवच वादियों का पिघलने लगा है ।
क्यूँ गुमराह होंगी दिशाएँ ये कब तक,
ये तेवर फ़लक का बदलने लगा है ।
हवाओं में फौलाद जैसा है जादू,
घटाओं का आलम छिटकने लगा है।
वो टिम-टिम सितारों को छिपना ही होगा,
अँधेरे में सूरज निकलने लगा है ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
बह्र:
122 122 122 122