Thursday, July 22, 2021

वो टिम-टिम सितारों को छिपना ही होगा

 ये रुख अब हवा का बदलने लगा है,

यूँ मौसम ये शोला उगलने लगा है ।


पता जब चला साजिशों का था हमको,

तो दिल कातिलों का दहलने लगा है ।


भला कब तलक क़ैद साँसे रहेंगी,

कवच वादियों का पिघलने लगा है ।


क्यूँ गुमराह होंगी दिशाएँ ये कब तक,

ये तेवर फ़लक का बदलने लगा है ।


हवाओं में फौलाद जैसा है जादू,

घटाओं का आलम छिटकने लगा है।


वो टिम-टिम सितारों को छिपना ही होगा,

अँधेरे में सूरज निकलने लगा है ।


हर्ष महाजन 'हर्ष'

बह्र:

122 122 122 122

Saturday, July 17, 2021

इतना हुआ था बे-कदर ज़ख्मों को पी गया

 2212 2212 2212 12


इतना हुआ बे-कदर इन ज़ख्मों को पी गया,

इक बे-वफ़ा सी ज़िंदगी अश्कों मे जी गया |


कुछ इस तरह है अब मेरी यादोँ का ये सफ़र,

कुछ रिस रहें हैं ज़ख़्म अब कुछ मैं ही सी गया ।


यूँ इस तरह से गर्दिशों में छोड़कर मुझे,

नज़रों में था जो शख्स मेरे दिल से भी गया ।


दुनियाँ में जो मैं जी रहा इज़्ज़त ओ शान से,

क्या गर्दिश-ए-दौरा चला फिर नाम ही गया ।


वो बे-वफ़ा या बे-हया था यार वो मेरा,

शिकवे ज़ुबाँ पे रंज-ओ-ग़म ख़ुद मैं ही पी गया ।


हर्ष महाजन 'हर्ष'