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ये मुक़द्दर ख़ुदा जो आबाद किया,
बेरुख़ी ज़िन्दगी को नॉशाद किया ।
राह ये बन्दग़ी की आसाँ तो न थी,
तूने कर यूँ निग़ाह इरशाद किया ।
तन्हा सी ज़िन्दगी को तेरा ही सबब,
टूटे दिल को जो मेरे फौलाद किया ।
तूने दिल की उड़ान महफूज़ यूँ की,
आसमाँ तूने मेरा आज़ाद किया ।
जो था दिल में कभी, वो मेरा हो गया,
अब नसीबा ये कैसे इज़ाद किया ।
जो मेरा ऐ ख़ुदा वो तेरा ही तो है,
होंसिले से भी तूने तादाद किया ।
मैं तो मजबूर हूँ गुनाहों से मगर,
इस ख़तावार को तूने शाद किया ।
-हर्ष महाजन 'हर्ष'
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