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तन्हा बैठे हो कुछ तो इशारा करो,
सोच अपनी कभी तो अवारा करो ।
जब कभी मॉज़ों में मन बहलने लगे,
तो समंदर में कश्ती उतारा करो ।
उम्र भर उँगलियों पे नचाया मुझे,
आज मौका है तुम भी तो हारा करो ।
खुशबुओं से अगर तरबतर ने लगूँ,
हक़ तुम्हें भी है दिल को अँगारा करो ।
शाम को जब कभी घर पे आया करो,
मेरी ज़ुल्फ़ों को खुद ही सँवारा करो ।
शेर तुम हो अगर, मैं हुँ तेरी ग़ज़ल ,
आज से गा के मुझको पुकारा करो ।
ज़ुल्म करके मुझे क़ैद कर लो अगर,
नज़्र से पी के सर पे भी वारा करो ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
212 212 212 212
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