Wednesday, April 15, 2020

रुख़ से पर्दा उठा के देख लिया (तरही)

***

रुख़ से पर्दा उठा के देख लिया,
बिजली दिल पे गिरा के देख लिया ।

घुटनों के बल जो चल सकूँ खुद ही,
उसने आंगन बना के देख लिया ।

टूटकर भी वो ज़िद्द पे था काबिज़, 
ख़ुद को अश्कों में ला के देख लिया ।

रौशनी फिर भी हो सकी न कभी,
दिल को दीया बना के देख लिया ।

उनका दिल से निकलना था वाज़िब ,
ये भी दिल को सुना के देख लिया ।

होगा मिलने से कुछ नहीं हासिल
*बा रहा आज़मा के देख लिया ।*

ज़ुल्फ़ें रूख़ पे गिरीं थी यूँ शायद,
चाँद उनमें छुपा के  देख लिया ।

कद्र जो कर सका बशर न कोई,
ऐसी दुनिया बसा के देख लिया ।

ज़ख्म दिल के सभी उभर आए
खुद ही पर्दा हटा के देख लिया ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1212 22(112)

बा-रहा=प्राय:

No comments:

Post a Comment