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बेवफ़ा को अश्क़ों की क्यूँ हो ख़बर,
कर गया दिल को मेरे जो बे- ज़िगर ।
चाँद उतरा है ज़मी पर थी ख़बर,
अब नहीं होता कोई मुझको असर ।
इतना अर्सा था वो मेरा आशना,
पर अधूरा कर गया मेरा सफ़र ।
जिन लबों पर मुस्कराहट थी कभी,
अब नहीं करती ख़बर कोई असर ।
अश्क़ों से दामन है इतना भर गया,
अब नहीं चाहत कोई हो हमसफ़र ।
जिनको मुद्दत से कोई तरसा किये,
कह नहीं सकते हो कोई मोतबर ।
आशियाँ दिल में बनाने के लिए,
सह लिया मैं बेवफ़ाई का क़हर ।
---हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 2122 212
"तुम न जाने किस जहॉं में खो गए"
मोतबर = भरोसेमंद