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अगर शोहरत यहाँ इंसान की बदनाम हो जाए,
तो हक में जो करोगे बात वो इल्जाम हो जाए ।
मुझे ग़म ये नहीं मुझको यहाँ पढता नहीं कोई,
मेरी चाहत मेरा ये ग़म कोई सर-ए-आम हो जाए।
ये उसकी जुल्फों के सदके लिखें मैंने बहुत नग्में,
मगर हर बार देखो ये कलम नीलाम हो जाये ।
कभी तो चूम ले मुझको मेरे जज़्बात की खातिर,
न जाने किस घडी इस ज़िन्दगी की शाम हो जाए ।
मेरी चाहत के मैं दीया बनूँ और वो बने बाती ,
मगर डर है जमाने का न ये नाकाम हो जाए ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
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