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अगर शोहरत यहाँ इंसान की बदनाम हो जाए,
तो हक में जो करोगे बात वो इल्जाम हो जाए ।
मुझे ग़म ये नहीं मुझको यहाँ पढता नहीं कोई,
मेरी चाहत मेरा ये ग़म कोई सर-ए-आम हो जाए।
ये उसकी जुल्फों के सदके लिखें मैंने बहुत नग्में,
मगर हर बार देखो ये कलम नीलाम हो जाये ।
कभी तो चूम ले मुझको मेरे जज़्बात की खातिर,
न जाने किस घडी इस ज़िन्दगी की शाम हो जाए ।
मेरी चाहत के मैं दीया बनूँ और वो बने बाती ,
मगर डर है जमाने का न ये नाकाम हो जाए ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
1222 1222 1222 1222
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 2 फरवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
हार्दिक आभार पम्मी जी ।
Deleteमुझे ग़म ये नहीं मुझको यहाँ पढता नहीं कोई,
ReplyDeleteमेरी चाहत मेरा ये ग़म कोई सर-ए-आम हो जाए।
–वाह वाह
बहुत खुशी हुई पढ़कर
आभार आपका आदरनीय ।
Deleteवाह बहुत खूब!
ReplyDeleteशुक्रिया मनीषा जी ।
Deleteअगर शोहरत यहाँ इंसान की बदनाम हो जाए,
ReplyDeleteतो हक में जो करोगे बात वो इल्जाम हो जाए ।
वाह , बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ।। हर शेर अपनी कहानी कहता हुआ ।
आदरनीय संगीता जी तहे दिल से धन्यवाद ।
Deleteकभी तो चूम ले मुझको मेरे जज़्बात की खातिर,
ReplyDeleteन जाने किस घडी इस ज़िन्दगी की शाम हो जाए ।वाह!!!
बहुत ही लाजवाब गजल।
पसंदंगी के लिए कोटि कोटि धन्यवाद
Deleteमेरी चाहत के मैं दीया बनूँ और वो बने बाती ,
ReplyDeleteमगर डर है जमाने का न ये नाकाम हो जाए ।
सुंदर शेर।
ज़र्रानावाज़ी का शुक्रिया आपका ।
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