खूबसूरत ग़ल्त-फहमी हो गयी,
बीज दिल में इक हसीना बो गयी ।
बीज दिल में इक हसीना बो गयी ।
क्यूँ उसे अब ढूँढता हूँ दर-बदर,
क्या मुक़द्दर में मुहब्बत हो गयी ।
ग़म खुशी के रंगों को बस देखकर,
मेरे हाथों की वो रेखा खो गयी ।
कर दिया इज़हार उसने प्यार का,
फिर अचानक मेरी धड़कन सो गयीं ।
रोशनी बुझने लगी दिए कि अब,
मेरे दिल से जो निकल के वो गयी ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 2122 212
उम्दा हृदय स्पर्शी ग़ज़ल।
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब।
बहुत बहुत शुक्रिया मन की वीना जी ।
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