छलक कर आंखों से अपनी कहीं सागर न बन जाऊँ,
न दिल को चोट दो इतनी कहीं पत्थर न बन जाऊँ।
यूँ जुल्फों को गिरा कर तुम मुझे बेहोश न कर दो,
तो फिर गुज़रे पलों का ख़ुद मैं इक मंज़र न बन जाऊँ ।
ज़माने की हदों को तोड़ निगाह-ए-नाज़ से देखो,
मगर डर है मुहब्बत का कहीं रहबर न बन जाऊँ।
कशिश रुखसार पे इतनी कि देखें तो हुए घायल,
कहीं मैं वक़्त से पहले तेरा दिलबर न बन जाऊँ ।
मैं ज़िंदा हूँ कि शायद तुम कभी मिल जाओगे मुझको,
फनां होंगी उमीदें तो दिल-ए-मुज़्तर न बन जाऊँ ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
1222 1222 1222 1222
25 जनवरी 22
निगाह-ए-नाज़=प्यार भरी नज़र
दिल-ए-मुज़्तर=व्याकुल, बैचेन
एक शानदार गजल, हर शेर लाजवाब, शब्दों का चयन बहुत बढ़िया👌👏
ReplyDeleteआपकी आमद औऱ उस पर आपकी होंसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया । इस बज़्म को यूँ ही रौशन करते रहिए आदरणीय।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
Deleteछलक कर आंखों से अपनी कहीं सागर न बन जाऊँ,
ReplyDeleteन दिल को चोट दो इतनी कहीं पत्थर न बन जाऊँ।
यूँ जुल्फों को गिरा कर तुम मुझे बेहोश न कर दो,
तो फिर गुज़रे पलों का ख़ुद मैं इक मंज़र न बन जाऊँ ।////
बहुत बढ़िया प्रस्तुति हर्ष जी। बहुत प्यारी ग़ज़ल है! अपना तो इस विधा में हाथ तंग है 🙏🙏
रेणु जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका आपको ये पेशकश पसंद आई । सच कहूं तो ये आपकी दरियादिली औऱ ऊपर वाले का कर्म है आदरनीय । यूँ ही आते रहियेगा ।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
ReplyDeleteप्रतिलिपी पर भी मुझे फॉलो कर सकते हैं ।
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जरूर हर्ष जी, मैं भी वहां अर्से से हुं, ये अलग बात है वहां मेरे पाठक कम है। अत्यंत आभार आपका 🙏🙏
Deleteवक़्त से पहले तेरा दिलबर ...
ReplyDeleteयूँ तो हर शेर कमाल है और ये ख़ास है ... प्रेम रैंक के कुछ शेर तो सच में लाजवाब कर रहे हैं ...
आपकी पसंदंगी के लिए दिली धन्यवाद आपका । ये आपका नज़रिया है जो मेरे लफ़्ज़ों में उतार आता है आदरनीय । उम्मीद करता हूँ आप आइंदा भी होंसिला अफजाई के लिए आते रहेंगे ।
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