Wednesday, November 11, 2020

यार जब लौट के दर पे मेरे आया होगा,

 

ग़ज़ल



यार जब लौट के दर पे मेरे आया होगा,

आख़िरी ज़ोर मुहब्बत ने लगाया होगा ।


याद कर कर के वो तोड़ी हुई क़समें अपनी,

आज अश्कों के समंदर में नहाया होगा ।


ज़िक्र जब मेरी ज़फ़ाओं का किया होगा कहीं,

ख़ुद को उस भीड़ में तन्हा ही तो पाया होगा ।


दर्द अपनी ही अना का भी सहा होगा बहुत,

फिर से जब दिल में नया बीज लगाया होगा ।


जब दिया आस का बुझने लगा होगा उसने,

फिर हवाओं को दुआओं से मनाया होगा ।


----हर्ष महाजन 'हर्ष'

2122 1122 1122 22(112)

होके मज़बूर मुझे उसने भुलाया होगा ।

मुहब्बत की जब इंतिहा कीजियेगा,

 **



मुहब्बत की जब इंतिहा कीजियेगा,

निगाहों से तुम भी नशा कीजियेगा ।


सफ़र दिल से दिल तक लगे जब भी मुश्किल ,

दुआओं की फिर तुम दवा कीजियेगा ।


नज़र ज़ुल्फ़ों पे गर टिकें ग़ैरों की तो,

यूँ आँखों में नफ़रत अदा कीजियेगा ।


मुझे सोच, हों चश्म, नम तो समझना,

ये जज़्बात अपने अता कीजियेगा ।


ये है इल्तिज़ा मर भी जाऊँ तो इतनी,

ख़ुदा से न तुम ये गिला कीजियेगा ।


मेरी आरज़ू , बंदगी तुम समझ कर,

अदा फिर उम्मीद-ए-वफ़ा कीजियेगा ।


निगाहों में मेरी फ़क़त तुम ही मंज़िल,

मुक़द्दर की अब इब्तिदा कीजियेगा ।



हर्ष महाजन 'हर्ष'

122 122 122 122

अज़ी रूठ कर तुम कहाँ जाइयेगा

मुझको हरसूं नशा सा रहता है


...

मुझको हरसूं नशा सा रहता है,

जैसे मुझमें खुदा सा रहता है ।


चाहतों का जो पूछो मुझसे कभी,

उनसे क्यूँ दिल जला सा रहता है ।


फिर भी रहता है ख़ौफ़ मुझमें क्यूँ ,

दिल भी ख़ुद से डरा सा रहता है ।


बोझ लगती हैं राहें भी अपनीं,

ज़ख्म गहरा हरा सा रहता है ।


जब भी नज़दीक होती मन्ज़िल तो,

दर्द भी फिर भला सा रहता है ।


----हर्ष महाजन 'हर्ष'

◆◆◆◆

2122 1212 22

Friday, September 11, 2020

जाने क्यूँ आज है औरत की ये औरत दुश्मन,

 

जाने क्यूँ आज है औरत की ये औरत दुश्मन,
पास दौलत है तो उसकी है ये दौलत दुश्मन ।

दोस्त इस दौर के दुश्मन से भी बदतर क्यूँ हैं,
देख होती है मुहब्बत की हकीकत दुश्मन ।

माँग लो जितनी ख़ुदा से भी ये ख़ुशियाँ लेकिन,
हँसते-हँसते भी हो जाती है ये जन्नत दुश्मन ।

मैं बदल सकता था हाथों की लकीरों को मगर,
यूँ न होती वो अगर मेरी मसर्रत दुश्मन ।

ऐसे इंसानों की बस्ती से रहो दूर जहॉं,
'हर्ष' हो जाए मुहब्बत की मुहब्बत दुश्मन ।

***
2122 1122 1122 22


Wednesday, August 26, 2020

जाम खाली सामने खलते रहे



***
जाम खाली सामने खलते रहे,
ज़ख़्म दिल के दिल में ही पलते रहे l

नीदों से जब हो गए हम बेदखल,
साथ बीते दिन सभी खलते रहे ।

चाँद जब बदली से फिर-फिर झाँकता,
दिल में उठते कुछ भँवर छलते रहे ।

ज़िन्दगी वीरान जब होने लगी,
सपने फिर बन ख़ौफ़ सँग चलते रहे ।

इन लबों पर क्यूँ भला आती हँसी,
आफ़ताब-ए-इश्क़ में जलते रहे ।

-हर्ष महाजन 'हर्ष'

2122 2122 212
'दिल के अरमां आंसुओं में बह गए'

Friday, August 21, 2020

अपने जीते जी ये दवा कर ले

***

अपने जीते जी ये दवा कर ले,
मौत से पहले ही दिया कर ले ।

बेवफा और दुनियाँ में कातिल,
कर दे कामिल तु या फनां कर ले ।

हम तो हैं वक़्त के सुनो पाबंद,
मेरे संग मिल के ये दुआ कर ले ।

मैं तो घबरा गया हूँ इस जग में,
या ख़ुदा मुझ्को आशना कर ले ।

दर्दे ग़म अपनों का सहूँ कितना,
आ ख़ुदा दुनियाँ से जुदा कर ले ।

जो तू चाहे दिवानगी से अगर,
प्यार की आ तू इंतिहा कर ले ।

धौंकिनी सी लगी चले दिल पर,
दिल से दिल आ के मुब्तिला कर ले ।

कोई पूछेगा मुझसे क्यूँ आखिर,
आके कोई भी मशविरा कर ले ।

चाँद तो पहले ही ख़फ़ा लेकिन,
कोई तो मुझसे फिर वफ़ा कर ले ।

मेरा मकसूद मेरी मंज़िल पर,
है तुझे ग़म तो आ गिला कर ले ।

है तू अब भी मुहब्बतों में अगर,
लग ज़िगर और हौंसला कर ले ।


-------हर्ष महाजन 'हर्ष'

2122 1212 22(112)
"मेरी किस्मत में तू नहीं शायद"

Tuesday, August 11, 2020

लगा दोस्तों को गँवारा नहीं था

***

लगा  दोस्तों को  गँवारा नहीं था,
तभी महफ़िलों में पुकारा नहीं था ।

ज़ुदा तो हुए सब बहे अश्क़ इतने,
मग़र अश्क़ कोई हमारा नहीं था ।

ये चाहा करूँ बेदख़ल उनको ख़ुद से,
मग़र हमको दिल का इशारा नहीं था ।

बहुत मात लहरों को दी हमने लेकिन,
समंदर में कोई, किनारा नहीं था ।

लकीरों में हर पल थे ढूँढा किये हम,
अभी दिल से जिनको उतारा नहीं था ।

सफर तो दिलों का था मुश्किल नहीं पर,
अना में किसी ने पुकारा नहीं था ।

उठी इतनी नफ़रत अचानक दिलों में,
जुदाई बिना अब गुज़ारा नहीं था ।

हमें हमसफ़र अब मिले भी तो कैसे,
मुक़द्दर का कोई भी मारा नहीं था ।

---------हर्ष महाजन 'हर्ष'

122 122 122 122
"तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ ।"

Wednesday, August 5, 2020

जो दुश्मन है कभी तुमको नहीं अपना कहा करते,

***

जो दुश्मन है कभी तुमको नहीं अपना कहा करते,
ये कलयुग है यहॉं अपने नहीं अपने हुआ करते ।

कभी मैंने किसी का भी बुरा चाहा नहीं अब तक,
मगर किस्मत ने हाथों में लिखी ठोकर तो क्या करते ।

जिन्हें है ग़म कि दुनियाँ में क्युँ ऊपर है ख़ुदा उनसे,
हुआ मंज़र तबाही का ख़ुदा भी क्या वफ़ा करते ।

नहीं मैं बेख़बर अब रूबरू हूँ मौत से लेकिन,
यहाँ पर दोस्त दुश्मन से भी बदतर क्यूँ जफ़ा करते ।

ज़माने में हुआ करते है ऐसे भी ये मंज़र क्यों,
वफ़ा करके भी आंखों में समन्दर क्यों रहा करते ।

------हर्ष महाजन 'हर्ष'

1222 1222 1222 1222
"मुहब्बत हो गयी जिनको वो परवाने कहां जाएं"

Monday, August 3, 2020

गर मुहब्बत सहारा नहीं

सुफआना कलाम

***
गर मुहब्बत सहारा नहीं,
दुश्मनी से गुज़ारा नहीं ।

पास अपने बुला लो हमें,
या तो कह दो तुम्हारा नहीं ।

दूरियाँ सह न पायेंगे हम,
तेरे बिन अब गुज़ारा नहीं ।

प्यार मिलता है तकदीर से,
फिर मिलेगा दुबारा नहीं ।

अपने मन पे है कैसा गरूर,
हो सका ये हमारा नहीं ।

'हर्ष' है तो ख़ुशी हर तरफ़,
दूर हुए गर ख़ुदारा नहीं ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'

ख़ुदारा= किसी चीज़ का छोटा सा अंश

बहर:
212 212 212 

*ज़िन्दगी प्यार का गीत है*

Wednesday, June 24, 2020

वो शख्स इस तरह मुझे बदनाम कर गया



Re-written Gazal
****************************
***
वो शख्स इस तरह मुझे बदनाम कर गया,
दिल में छुपे वो राज़ सर-ए-आम कर गया ।

नफरत नहीं मगर जो कहा बेवफ़ा मुझे,
वो शख्स इस तरह मुझे बे-दाम कर गया ।

रुक्सत हुआ तो दिल में लिए बोझ था बहुत,
वो जाते-जाते दोस्ती नीलाम कर गया ।

रुतबे पे अपने मुझको था क्या-क्या गुमाँ मगर,
किस-किस अदा से शह्र में बदनाम कर गया ।

दिलचस्प बात ये कि मुझे इल्म ही नहीं,
अपने वो क़र्ज़ सारे मेरे नाम कर  गया ।

इतनी सी आरज़ू है कोई कह सके उसे,
है कौन जिसके वास्ते वीरान कर गया ।

चर्चा भी उसकी शह्र में इज़्ज़त भी बढ़ चली,
ऐसा लगा वो ख़ुद को सुलेमान कर गया ।

ऐ 'हर्ष' ऐसी दुनियाँ में कैसे जियेगा अब,
दिल में बसा जहान वो शमशान कर गया ।

ये ज़ुल्म ये हया ओ सज़ा उसने दी मुझे,
अब सोचता हूँ वो मुझे इंसान कर गया ।

----हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2121 1221 212
मिलती है ज़िन्दगी में मुहब्बत कभी कभी

Tuesday, June 23, 2020

सज़ा बिन अदालत सुनाना तुम्हारा

***

सज़ा बिन अदालत सुनाना तुम्हारा,
यूँ पलकों में फिर मुस्कराना तुम्हारा ।

बताऊँ मैं तुझको ये कैसे हक़ीक़त,
लगा दिल पे ऐसा निशाना तुम्हारा ।

समाए थे दिल के दरीचों में तुम पर,
मिला दुश्मनी का ज़माना तुम्हारा ।

कहाँ कब थी तूने लगाई ये महफ़िल,
ये कब तूने बदला ठिकाना तुम्हारा ।

सुलगती महब्बत में बैठे थे दिल में,
ये देखा है शोले बुझाना तुम्हारा ।

लुटा जिस तरह मैं लुटोगे युँ तुम भी,
मैं देखूँगा यूँ तिलमिलाना तुम्हारा ।

मुअत्तल किया क्यूँ तेरी रहमतों से,
दिया दर्द और आज़माना तुम्हारा ।

मेरे घर के चिलमन अभी तक सजे हैं,
जो पूछेंगे मुझसे न आना तुम्हारा ।

चलो जो हुआ उसको तकसीम कर लें,
मेरी थी मुहब्बत फ़साना तुम्हारा ।

हुआ अब मैं रुक्सत तेरी दिल्लगी से,
ख़ुदाई तुम्हारी, ज़माना तुम्हारा ।**

--हर्ष महाजन 'हर्ष'
122 122 122 122
मुझे प्यार की ज़िंदगी देने वाले

Saturday, June 20, 2020

जो बशर अपनों के ज़ुल्मों से बिख़र जाते हैं

💐#विनम्र_श्रद्धांजलि  💐  
 -.-.-.-.-.-.-.-.
 #प्रतिभाशाली_कलाकार_एवं_उम्दा_शख्सियत_सुशांत_सिंह_राजपूत_जी की असमय विदाई पर 🙏#विनम्र_शाब्दिक_श्रद्धांजलि 
💐💐💐

***

जो बशर अपनों के ज़ुल्मों से बिख़र जाते हैं,
अपनी हस्ती को मिटा कर वो गुज़र जाते हैं ।

ले चले क़ोई भी क़ामिल उसे मंज़िल की तरफ,
फ़िर ज़िधर जाते हैं वो रूह में उतर जाते हैं ।

ग़र ख़बर थी कि वो शिकवों से ख़फ़ा हैं इतना,
कौन क़ातिल है देके दर्द-ए-ज़िगर जाते हैं ।

जो अदाओं से क़भी दिल में उतर जाएँ वो, 
इक बुराई है तो बस ये है कि मर जाते हैं ।**

ज़ुल्म जब हद से गुज़रता है तो हँसती दुनियाँ,
मौत पर शख़्स वही अश्क़ ले घर जाते हैं ।

कौन कहता है ये तक़दीर ख़ुदा लिख़ता है,
कर्म अपने हैं हथेली में उभर जाते हैं ।

----हर्ष महाजन 'हर्ष'
बशर= आदमी
क़ामिल= पूर्ण/perfect

बहर:-
2122 1122 1122 22
"दिल की आवाज़ भी सुन दिल के फ़साने पे न जा"

Friday, June 19, 2020

इश्क़ दरिया है पार कौन करे

***

इश्क़ दरिया है पार कौन करे, 
बे-वजह ये शिकार कौन करे ।

ज़ुल्म इतना है ऐसी जन्नत में,
ज़िन्द अपनी बेकार कौन करे ।

इतना देता है हमको वो मौला,
ग़म में खुद को शुमार कौन करे ।

इतने भँवरे हैं इस सफ़र में यहाँ,
देखें दिल का शिकार कौन करे ।**

मेरा ईमान ही तो दौलत है,
इश्क़ इस पर सवार कौन करे ।

आजकल छू रही फ़लक को अना,
अब ये ख़िदमत भी यार कौन करे ।

है मुहब्बत मुझे ख़ुदा से मग़र,
फ़ानी दुनियाँ से प्यार कौन करे ।

---हर्ष महाजन 'हर्ष'
बहर:-
2122 1212 22(112)

Thursday, June 18, 2020

मत सोच हम भी खेल में हारे नहीं हुए

***

मत सोच हम भी खेल में हारे नहीं हुए,
बस इतना फ़र्क है कि किनारे नहीं हुए ।

उनकी निग़ाहें नाज़ का मारा नहीं मग़र,
तहज़ीब इतनी थी कि इशारे नहीं हुए ।

ख़्वाहिश थी आके ख़ुद वो रिझा ले मुझे मग़र,
ख़त लिख के कह दिया कि  तुम्हारे नहीं हुए ।

औरों के रंज ओ ग़म दिए उसने अगर  मुझे,
फिर उनके क्यूँ नसीब हमारे नहीं हुए ।

हर शख्स चाहने लगा था इस कदर मुझे,
पर ज़िंदगी में वो भी सहारे नहीं हुए ।

-----हर्ष महाजन 'हर्ष'
बहर:-
221  2121 1221 212
मिलती है ज़िन्दगी में मुहब्बत कभी कभी

Wednesday, June 17, 2020

जो कली ख़िलनी थी मसल डाली

***

जो कली ख़िलनी थी मसल डाली,
फिर वो ज़ालिम ने घर ख़बर डाली ।

जो चमन इतना खूबसूरत था,
 उसने दहशत से बद-नज़र डाली ।

जब मिली ख़ाक में ही इज़्ज़त तो,
उसने कुछ ऐसी बात कर डाली ।

इतनी उजड़ी फ़ज़ा थी गुलशन की,
फिर न खलकत ने भी क़दर डाली ।

अब ज़माने से माँगे है वो सिला,
कितनी भोली नज़र किधर डाली ।

इतनी लाचारगी वो मुफ़लिस की,
फिर दुआ मरने की थी कर डाली ।

मुख़्तसर हो गया युँ उसका सफ़र,
उसने सब ख़त में हो निडर डाली ।

हुक्मरां कैसे कोई बदलेगा,
जिनकी दौलत से जेब भर डाली ।

वक़्त बदला तो 'हर्ष' बदलेगा,
जो सियासत के घर नज़र डाली ।

----हर्ष महाजन 'हर्ष'

बहर:-
2122 1212 22(112)
"याद में तेरी जाग-जाग के हम
रात भर करवटें बदलते रहे ।"

Tuesday, June 16, 2020

मेरा कोई भी वस्ल-ए-यार नहीं

***

मेरा कोई भी वस्ल-ए-यार नहीं,
तुम भी कहते हो ऐतबार नहीं ।

 देखी दिलकश अदा जो आखों में,
कैसे कह दूँ कि तुझको प्यार नहीं 

राज-ए-दिल कैसे कोई जानेगा,
कोई ग़म है या कह दे यार नहीं ।

मुझको देखा भी तूने परखा भी,
कैसे समझूँ तू बेकरार नहीं ।

करना होगा तुझे यकीं मुझ पर,
देखा है मुझसा राज़दार नहीं ।

खेले लब पे तेरे हँसी अब क्यूँ,
क्या तुझे मेरा इन्तिज़ार नहीं 

जाम-ए-उल्फ़त नहीं पिया लेकिन ,
अब तुझे खुद पे इख़्तियार नहीं ।

गर ये दुश्मन बनी है तन्हाई,
पर ये उलझन कोई दीवार नहीं ।

---हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1212 22(112)
यूँ ही तुम मुझसे बात करती हो ।

Monday, June 15, 2020

उठके मैयत से निकल कह दो मना लें तुमको

***

उठके मैयत से निकल कहदो मना लें तुमको,
तू सितारा है ज़मीं पे तो बुला लें तुमको ।

शोहरत ने जो तुम्हें आज चुराया हमसे,
हम भी नग्मों में सनम आज सजा लें तुमको ।

तेरे ग़म में जो कभी शौक़ यहाँ पाले थे,
चल के मैख़ाने में सोचा कि दिखा लें तुमको ।

तेरी हसरत कि निग़ाहों से गिरा दे हमको,
अपनी हसरत कि निगाहों में उठा लें तुमको ।

जिन चराग़ों से मिली रौशनी मंज़िल के लिए,
आओ किस्मत के अँधेरों से बचा लें तुमको ।

हमने सोचा था कि इक शाम तेरे नाम करें,
दिल ने फिर चाहा उसी शाम मना लें तुमको ।

अपने तुम प्यार को सब नाज़ से रखना लेकिन,
सोचा खोया है सनम अपना बता लें तुमको ।

दिल मुहब्बत के अगर लम्हों को जीना चाहे,
मेरी मैयत में मिलेंगे वो सँभाले तुमको ।

--हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1122 1122 22(112)
दिल की आवाज भी सुन दिल के फ़साने पे न जा

Saturday, June 13, 2020

कभी महफिलों में कभी महकशी पर,

***

कभी महफिलों में कभी महकशी पर,
मिला तंज मुझको मेरी हर हँसी पर ।

मुझे ज़िंदगी में जो प्यारा था सब से,
उसी ने था ढाया सितम ज़िन्दगी पर ।

किया अंजुमन से ज़ुदा बेरुख़ी से,
न रो भी सका आँसुओं की कमी पर ।

ख़ुदा जब से बिछुड़ा मैं, बिछुड़ी है जन्नत,
मिले ज़ख़्म इतने युँ रूह की ज़मी पर ।

उड़ा भी बहुत आसमाँ पे मैं इतना,
गुनाहों पे सोचा न समझा बदी पर ।

ख़ताओं को मेरी वफ़ा तू समझ के,
ख़ुदा पर्दा रखना मेरी बेबसी पर ।

चरागों पे थी ज़िन्दगी जो मुनस्सर,
वो बुझने लगे हैं मेरी बेख़ुदी पर ।

-हर्ष महाजन 'हर्ष'

122 122 122 122
मुझे प्यार की ज़िंदगी देने वाले ।

महकशी--शराब पीना
अंजुमन--महफ़िल
बदी----अंधेरा, बुराई
मुनस्सर,--depend

Friday, June 5, 2020

हम तो अपनों से सब ही हारे थे

***
हम तो अपनों से सब ही हारे थे,
जुर्म कुछ उनके कुछ हमारे थे ।

बे-वफ़ाओं से थी निभाई वफ़ा,
अब वो मुश्किल में सब किनारे थे ।

जो उठाते थे उँगलियाँ हम पर,
साथ उनके ही दिन गुज़ारे थे ।

टूटकर जिनको हमने चाहा कभी,
हमको पत्थर उन्हीं ने मारे थे ।

हमको जन्नत ज़मीं पे मिल जाये,
काश मिल जाएं जो सहारे थे ।

--हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1212 22/112
यूँ ही तुम मुझसे बात करती हो

Thursday, June 4, 2020

वो रोया बहुत बे-हया कहते कहते

***

वो रोया बहुत बे-हया कहते कहते,
ज़ुदा हो गया बे-वफ़ा कहते कहते ।

समंदर में कश्ती उतारो न ऐसे,
मैं हारा तूफानी हवा कहते कहते ।

हुआ हादसा दोस्ती में यक़ीनन,
मैं टूटा बहुत बावफ़ा कहते कहते ।

ख़ुदा हाथ में कुछ लकीरें दे ऐसी
थका हूँ मुझे दे रज़ा कहते कहते ।

सितम उसका दिल को छुआ इस तरह वो ,
जो अश्क़ों से रुक्सत हुआ कहते कहते ।

मुहब्बत में दिल ने सहा दर्द इतना,
बहुत पीया मैंने दवा कहते कहते ।

ग़में दास्ताँ अपनी कैसे लिखूँगा,
वो दिल ले गया अलविदा कहते कहते ।

चली महफिलों में ग़ज़ल ऐसी ऐसी,
*तेरे हुस्न को 'बेवफ़ा' कहते कहते* ।

खुदा ने जो पूछा मुहब्बत हुई क्या ?
तो तड़पा बहुत ये सज़ा कहते कहते ।

-------हर्ष महाजन 'हर्ष'
122 122 122 122
तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ

Saturday, May 30, 2020

मेरी हसरत है तू छोड़ा तो किधर जाओगे

***

मेरी हसरत तू है, बिछुड़ोगे किधर जाओगे,
दिल में उल्फ़त है मेरे इतनी निखर जाओगे ।

जब भी उट्ठेगा भँवर दिल में तेरी यादों का,
है यकीं ख़्वाबों में तुम खुद ही उतर जाओगे ।

ये नसीबा है तेरा मेरी वफ़ा की ख़ातिर,
वरना मौसम की तरह यूँ ही गुज़र जाओगे ।

अपने किरदार को तुम जल्द सँभालो वरना,
इस ज़माने की निग़ाहों से उतर जाओगे ।

यूँ हक़ीक़त में न ख़्वाबों से गिराना मुझको,
मैं गिरा दूंगा जो नज़रों से किधर जाओगे ।

कोई फ़रियाद तेरे दिल में अगर है तो कहो,
पाँव रक्खोगे दो कश्ती में बिख़र जाओगे ।

ज़ुल्म देखेगा ज़माना भी मुहब्बत  पे सितम,
मुझसे उल्फ़त का सफ़र छोड़ अगर जाओगे ।

--हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1122 1122 22
पाँव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी ।

इश्क़ में गर आहें खाली जाएंगी

***

इश्क़ में गर आहें खाली जाएंगी
कुछ कमाने फिर संभाली जायेंगी ।

प्यार की वो जंग छू ले जब फलक,
मौत तक कसमें उठा ली जाएंगी ।

बेवफाई का कभी दिल में हो शक,
उल्फतें दिल की बिठा ली जाएंगी ।

जब गमों की बाढ़ सी आने लगे,
कश्तियाँ दिल से निकाली जाएंगी ।

साजिशें गर उठ चलीं खुद इश्क़ में,
रंजिशें फिर जल्द हटा ली जाएंगी ।

टूट कर जिसको भी चाहा हो अगर,
मंज़िलें ख़्वाबों में पा ली जाएंगी ।

जब चमन दिल का खिजां होने लगे,
हसरतें दिल की खंगाली जाएंगी ।

आखों से दिल का सफर करना हो जब,
नावेँ अश्क़ों में बहा ली जाएंगी ।

गर थमेगा प्यार का लंबा सफ़ऱ
अर्थी में यादें निकाली जाएंगी ।

 हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 2122 212
दिल के अरमां आंसुओं में बह गए

Friday, May 29, 2020

कब तलक नाज़ उठाएगा ज़माना तेरा

***
कब तलक नाज़ उठाएगा ज़माना तेरा,
अब तो भाता भी नहीं ज़ुल्फ़ गिराना तेरा ।

मैं भी ख़ामोश हूँ अब देख अदाएं तेरी,
लब पे आता ही नहीं कोई फ़साना तेरा ।

याद आती है तेरे खुश्क लबों की जुम्बिश,
मुझसे जब पहली दफा हाथ मिलाना तेरा ।

वो भी था वक़्त हवाओं में तेरे गीत चले,
देख बदली है फ़ज़ा और दिवाना तेरा ।

यूँ महब्बत के नशे में ये जलन  ठीक नहीं,
मेरा हर यार बना  ठौर ठिकाना तेरा ।

हर्ष महाजन
2122 1122 1122 22
दिल की आवाज़ भी सुन मेरे फ़साने पे न जा

Friday, May 1, 2020

मेरे दिल का कोई नवाब आ गया

...

मेरे दिल का कोई नवाब आ गया,
पुराने ख़तों का हिसाब आ गया ।

जिसे अब तलक मैं था समझा नहीं,
वो ले के पुरानी किताब आ गया ।

मुहब्बत ने पाई बुलंदी मगर,
क्युँ बहती नदी में सैलाब आ गया  ।

यूँ बिखरा हूँ मैं फूल बनकर अभी,
सुहाना मुझे याद ख़्वाब आ गया।

है अपना कोई दुश्मनों में यहाँ,
लगा कांटों में इक गुलाब आ गया ।

-हर्ष महाजन 'हर्ष'
122 122 122 12
तुम्हारी नज़र क्यूँ ख़फ़ा हो गयी ।

Tuesday, April 28, 2020

ये मुक़द्दर ख़ुदा जो आबाद किया (सूफियाना)



***
ये मुक़द्दर ख़ुदा जो आबाद किया,
बेरुख़ी ज़िन्दगी को नॉशाद किया  ।

राह ये बन्दग़ी की आसाँ तो न थी,
तूने कर यूँ निग़ाह इरशाद किया ।

तन्हा सी ज़िन्दगी को तेरा ही सबब,
टूटे दिल को जो मेरे फौलाद किया ।

तूने दिल की उड़ान महफूज़ यूँ की,
आसमाँ तूने मेरा आज़ाद किया ।

जो था दिल में कभी, वो मेरा हो गया,
अब नसीबा ये कैसे इज़ाद किया ।

जो मेरा ऐ ख़ुदा वो तेरा ही तो है,
होंसिले से भी तूने तादाद किया ।

मैं तो मजबूर हूँ गुनाहों से मगर,
इस ख़तावार को तूने शाद किया ।

-हर्ष महाजन 'हर्ष'

2122 1212 2112

Monday, April 27, 2020

इक बावफ़ा मुहब्बत बदनाम करते करते(तरही)


***
इक बावफ़ा मुहब्बत बदनाम करते करते,
कब तक कोई जियेगा सरे-आम करते-करते ।

वो आइना बना है  दुश्मन सा इस नगर में,
मंज़िल बता रहा है बदनाम करते-करते ।

लहरों का रुख़ समंदर में ख़िल गया अचानक,
बोझिल हुआ ख़ुदा को पैग़ाम करते-करते ।

वो बेवफ़ा था लेकिन दुश्मन मग़र नहीं था,
मैं रो रहा हूँ ग़ज़लें अंजाम करते-करते ।

इस भीड़ में हूँ तन्हा ताईद कर रहा हूँ,
ख़ुद को ही खो चुका हूँ नाकाम करते-करते ।

इक मेरा रंजोगम था बेपर्दा हो चुका जो,
बदनाम कर गया है इल्ज़ाम करते-करते ।

वो दूर तो नहीं है, पर शूल हैँ डगर में,
मैं थक गया हूँ मंज़िल गुलफ़ाम करते-करते ।

ज़िंदा तो हूँ मैं लेकिन, आराम कर रहा था,
कुछ औऱ थक गया हूँ आराम करते-करते ।*'

तन्हा सी ज़िन्दगी में, इक ख़्वाब ढूँढता था,
गुज़री है उम्र ख़ुद को सद्दाम  करते-करते ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2122 221 2122

Friday, April 24, 2020

मेरे यकीं को न नजरों से तुम गिरा देना


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मेरे यकीं को न नजरों से तुम गिरा देना,
कोई भी जुर्म अगर है तो फिर सज़ा देना ।

मैदान-ए-इश्क़ में तुझ सा कोई करीब नहीं,
करूँ बुरा भी कभी थोड़ा सा मुस्करा देना ।

मैं उन दिलों में भी धड़का हूँ जो पसंद नहीं,
ये कैसी आग है उलफ़त में तू बुझा देना ।

मेरी ग़ज़ल में कभी तुम भी बात अपनी करो,
रखूँगा मतले में तुझको मुझे बता देना ।

तड़प तड़प के ये दिल जाने कब तमाम हुआ,
तो क्या लिखा है मुक़द्दर में तुम सुना देना ।

कभी तुझे यूँ लगे अश्क़ चश्म पर भारी,
तो फिर नसीब के वो अश्क़ दो गिरा देना ।

सज़ा मिली है बहुत कुछ गुनाह औऱ मगर,
बिछुड़ के रोया बहुत और मत सज़ा देना ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
1212 1122 1212 112(22)


24-04-2020

Wednesday, April 22, 2020

आज इक शख्स मुझे ख्वाब दिखाने आया

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आज इक शख़्स मुझे ख़्वाब दिखाने आया,
चाँद उतरा है ज़मी पर ये बताने आया ।

बेपनाह आंखों में अश्कों का सफ़ऱ रख बाकी ,
आज ख़त उसके मैं छत पे था जलाने आया ।

सिसकियाँ उठने लगीं दिल से जो काबू न हुईं,
मैं मुहब्बत के समंदर में नहाने आया ।

किसमें दम था कि मेरे दिल पे कोई घाव करे,
पर मुक़द्दर ही मेरा मुझको रुलाने आया ।

कुछ तो हाथों में लिए बैठे हैं खंज़र लेकिन,
इनमें इक दोस्त बचाने के बहाने आया ।

मेरी किस्मत में हमेशा से है धोख़ा यारो,
मैं भी खुल कर के उन्हें आज नचाने आया ।

ज़िन्दगी 'हर्ष' ने अब तक है जी अश्क़ों में मगर,
अब जो हिम्मत है तो मैं उसको बताने आया ।

-हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1122 1122 112(22)
दिल की आवाज़ भी सुन मेरे फ़साने पे न जा

मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ (तरही)

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दिल से इक किस्सा सुहाना चाहता हूं,
इक फ़क़त दिलभर बनाना चाहता हूँ ।

आज बगिया में खिले हैं फूल इतने,
बन के भँवरा खुद दिखाना चाहता हूं ।

आग पानी में लगा दूँ तुम कहो तो,
इन हवाओं को बताना चाहता हूँ ।

एक तितली उम्र भर पहलू में बैठे,
बन परिंदा मैं निभाना चाहता हूँ ।

देख लूँ तेरी अगर आँखों में  नफ़रत,
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ ।*

क्यूँ मुहब्बत दे नहीं सकते वो मुझको,
अब सफ़र मैं भी सुहाना चाहता हूं ।

क्या दिलों को रौंदकर सीखा है तुमने,
ग़ज़लों में अपनी उठाना चाहता हूँ।

---- हर्ष महाजन :हर्ष'
2122 2122 2122
छोड़ दो आँचल ज़माना क्या कहेगा

Monday, April 20, 2020

ऐसी बस्ती में जाऊँ क्या (तरही)

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ऐसी बस्ती में जाऊँ क्या,
कातिल का घर बतलाऊँ क्या ।

कुछ खस्ता हालत में है वो,
थोड़ा झूटा हो जाऊँ क्या ।*

अब जंग के गहरे सागर में,
खुद ही कश्ती में आऊँ क्या ।

आते जो ख्वाबों में अक्सर,
उनको ये ग़म समझाऊँ क्या ।

हर पग पे उल्लू दिखता है,
ये कह उनको पछताऊँ क्या ।

बस दुश्मन से सत्ता छीनों,
ये सुन-सुन अब घबराऊँ क्या ।

हम किस माटी में जन्में है,
कुछ वो नग्में सुनवाऊं क्या ।

हमलों में सब कुछ उजड़ा है,
अब पीड़ा इक-इक गाऊँ क्या ।

किस घर में मातम छाया है,
छत पे दीया जलवाऊँ क्या ।

------------हर्ष महाजन 'हर्ष'
22-22-22-22
मैं पल दो पल का शायर

Sunday, April 19, 2020

बिना साज़ जो भी सजेगी ग़ज़ल

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बिना साज़ जो भी सजेगी ग़ज़ल,
वो धड़कन की धुन पे चलेगी ग़ज़ल ।

उठेगी कभी दिल से लब तक कभी,
यकीनन ज़ुबाँ पे सजेगी ग़ज़ल ।

अगर सांचे में ढ़ल न पाएँगे लफ्ज़,
तो बन के सज़ा वो खलेगी ग़ज़ल ।

चमन गर न बदला न बदली फ़िज़ा,
अंधेरों में खुद ही बनेगी ग़ज़ल ।

अगर ग़म समंदर हुआ अश्क़ों का
तो दिल में सुलगकर जलेगी  ग़ज़ल ।

कभी होगा आँखोँ से दिल तक सफर,
वही 'हर्ष' तुझको फलेगी ग़ज़ल ।

 हर्ष महाजन 'हर्ष'
122 122 122 12(22)

Wednesday, April 15, 2020

रुख़ से पर्दा उठा के देख लिया (तरही)

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रुख़ से पर्दा उठा के देख लिया,
बिजली दिल पे गिरा के देख लिया ।

घुटनों के बल जो चल सकूँ खुद ही,
उसने आंगन बना के देख लिया ।

टूटकर भी वो ज़िद्द पे था काबिज़, 
ख़ुद को अश्कों में ला के देख लिया ।

रौशनी फिर भी हो सकी न कभी,
दिल को दीया बना के देख लिया ।

उनका दिल से निकलना था वाज़िब ,
ये भी दिल को सुना के देख लिया ।

होगा मिलने से कुछ नहीं हासिल
*बा रहा आज़मा के देख लिया ।*

ज़ुल्फ़ें रूख़ पे गिरीं थी यूँ शायद,
चाँद उनमें छुपा के  देख लिया ।

कद्र जो कर सका बशर न कोई,
ऐसी दुनिया बसा के देख लिया ।

ज़ख्म दिल के सभी उभर आए
खुद ही पर्दा हटा के देख लिया ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1212 22(112)

बा-रहा=प्राय:

Sunday, April 12, 2020

तन्हा बैठे हो कुछ तो इशारा करो

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तन्हा बैठे हो कुछ तो इशारा करो, 
सोच अपनी कभी तो अवारा करो ।

जब कभी मॉज़ों में मन बहलने लगे,
तो समंदर में कश्ती उतारा करो ।

उम्र भर उँगलियों पे नचाया मुझे,
आज मौका है तुम भी तो हारा करो ।

खुशबुओं से अगर तरबतर ने लगूँ,
हक़ तुम्हें भी है दिल को अँगारा करो ।

शाम को जब कभी घर पे आया करो,
मेरी ज़ुल्फ़ों को खुद ही सँवारा करो ।

शेर तुम हो अगर, मैं हुँ तेरी ग़ज़ल ,
आज से गा के मुझको पुकारा करो ।

ज़ुल्म करके मुझे क़ैद कर लो अगर,
नज़्र से पी के सर पे भी वारा करो । 

हर्ष महाजन 'हर्ष'
212 212 212 212

Friday, April 10, 2020

हिन्द की दहलीज़ पर ऐसी फ़िज़ा रख जाऊँगा

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हिन्द की दहलीज़ पर ऐसी फ़िज़ा रख जाऊँगा,
मज़हबी खुश्बु से महकी इक वफ़ा रख जाऊंगा ।

सरहदों से आ रहे जो बीज नफ़रत के मगर,
मरक़ज़ों में मैं फ़िज़ाओं की हवा रख जाऊँगा ।

कौन जाने किस घड़ी खो जाए अब किसका सफ़र,
हर डगर पे मैं मुहब्बत का दिया रख जाऊँगा ।

गर यकीं तुमको निगाहें ग़ैर सी रखतें है तो,
आने वाली नस्ल पर इक हादसा रख जाऊँगा ।

रंग गर दरिया-दिली से बन्दग़ी का चढ़ गया,
टूटकर भी हर तरफ मैं इक नशा रख जाऊँगा ।

हादसों में बस्तियाँ गर नफ़रतों से भर गयीं,
रख यकीं मैं जंग का मक़सद नया रख जाऊँगा ।


-हर्ष महाजन 'हर्ष'

Saturday, April 4, 2020

किताब ए ज़िन्दगी में देखे थे ईमान के दुश्मन

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किताब ए ज़िन्दगी में देखे थे ईमान के दुश्मन,
ज़माने भर के तबलीगी हुए इंसान के दुश्मन,

मिटा है इस कदर इस मुल्क से चैनो अमन देखो,
मुहब्बत भूल थी इनसे, हुए ये जान के दुश्मन ।

गुनाहों का ये आलम देखो तो इतने ये बे-गैरत,
सियासत ताक पे रख, हो गए फरमान के दुश्मन ।

ये सोचा था दिवारें मज़हबी हम तोड़ डालेंगे
मगर सद्भावना में हो रहे बलिदान के दुश्मन ।

सबाब ए इश्क की दौलत तो भारत में बहुत लेकिन,
उठी नफरत की ऐसी बाढ़ कि हलकान है दुश्मन ।

कि रोको अब तबाही के ये मंज़र ज़हर उगलेंगे,
पलट दो उनके मंसूबे जो हिंदोस्तान के दुश्मन ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
1222 1222 1222 1222

Friday, April 3, 2020

सभी इस क़ज़ा में रज़ा हो गए ।


...

सभी इस क़ज़ा* में रज़ा* हो गए ।
मगर कुछ नमाज़ी ज़ुदा हो गए ।

मुहब्बत में हम किसी से कम तो नहीं,
मगर सरफिरे कुछ ख़फ़ा हो गए ।

जहाँ फ़ासलों पर अमल न हुआ,
वहाँ कुछ बशर* ग़मज़दा हो गए ।

जिन्हें मान अपना निभाते रहे,
वही हमवतन अब ख़ुदा हो गए ।

सियासत कहीं बेअसर तो नहीं ?
हैं कुछ शह्र में बा-ख़ता हो गए ।

यूँ सीने में अहसास जिनके नहीं,
हमारे लिए वो सज़ा हो गए ।

ख़तावार को गर सज़ा न हुई,
तो हम बे-ख़ता बे-हया हो गए ।

चलो मिट चलें अब अमन के लिये,
सभी हमनफस*, हमनवा* हो गए ।

ख़ुदा हमको ऐसी ख़ुदाई न दे,
जहाँ हुक्मरां ही सज़ा हो गए ।

------हर्ष महाजन 'हर्ष'
122 122 122 12
तुम्हारी नज़र क्यूँ खफा हो गयी ।
*********************
*क़ज़ा=कर्तव्यपालनता
रज़ा=राज़ी होना
बशर=आदमी
हमनफस=एक साथ सांस लेने वाले ।
हमनवा=एक साथ आवाज देने वाले

Wednesday, April 1, 2020

जो दिल्ली को मैयत बनाने लगे

...

जो दिल्ली को मैयत बनाने लगे, 
वो मरकज़ में महफ़िल सजाने लगे ।

वो कैसी थी मस्ज़िद थी कैसी दुकाँ,
जहां लौ से लौ वो जलाने लगे ।

हकीकत परखने को राजी न थे,
वो पतझड़ सा खुद को गिराने लगे ।

हुए रूबरू तो मिले कुछ निशाँ,
बिना जंग लाशें बिछाने लगे ।

ज़नाजे बहुत निकलेंगे अब यहाँ,
हवा के थपेड़े बताने लगे ।

---------हर्ष महाजन 'हर्ष'

122 122 122 12
बहारों ने मेरा चमन लूट कर

Tuesday, March 31, 2020

तबाही की कोई हकीकत बता दे,

***

कॅरोना की कोई हकीकत बता दे,
अगर ये हुनर है तो जग से मिटा दे ।

ये नफरत की आंधी हो जिसमें भी इतनी,
तो है इल्तिज़ा खुद ख़ुदा ही सुला दे ।

न जाने ये महफ़िल बनी सबकी दुश्मन,
अगर पास रहना है दूरी बढ़ा दे ।

न गर्दिश में हों अब सितारे भी किसी के,
न खुद घर से निकले, न खुद को गिला दे ।

अजब छा रहे आसमाँ पर ये बादल,
यूँ कब तक कटेंगे अँधेरे बता दे ।

ये कैसी कयामत, कयामत से पहले,
जहाँ फासले ज़िंदगी को मिला दे ।

तड़पते हुए मुस्कराना ज़रूरी,
खुदा ये सियासत ज़मीं से उठा दे ।

---हर्ष महाजन 'हर्ष'।
122 122 122 122
कॅरोना

Saturday, March 28, 2020

...

जाने निकल के घर से, सड़कों पे आते हैं क्यूँ,
ये लोग ज़िन्दगी को ठेंगा दिखाते हैं क्यूँ ।

क्यूँ बेखबर है दुनियाँ जब हर तरफ खबर है,
हर शख्स में है कातिल, ऐसा बताते हैं क्यूँ ।

कैसी है आपदा ये, हर शख्स डरा हुआ है,
खुदगर्ज़ बन के अपने घर को जलाते हैं क्यूँ ।

लाखों की भीड़ देखो, दिल्ली से चल पड़ी है
कुछ हो रही सियासत, जाने बताते हैं क्यूँ ।

इतने घने ये बादल, जाने गुबार किसका,
दुनियाँ से रोशनी को ऐसे चुराते हैं क्यूँ ।'

ये वक़्त बेवफा है, समझो तो ज़िन्दगी है,
वर्णा यूँ बस्तियों में, मातम बुलाते हो क्यूँ ।

-------हर्ष महाजन 'हर्ष'

221 2122 221 2122