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लगा दोस्तों को गँवारा नहीं था,
तभी महफ़िलों में पुकारा नहीं था ।
ज़ुदा तो हुए सब बहे अश्क़ इतने,
मग़र अश्क़ कोई हमारा नहीं था ।
ये चाहा करूँ बेदख़ल उनको ख़ुद से,
मग़र हमको दिल का इशारा नहीं था ।
बहुत मात लहरों को दी हमने लेकिन,
समंदर में कोई, किनारा नहीं था ।
लकीरों में हर पल थे ढूँढा किये हम,
अभी दिल से जिनको उतारा नहीं था ।
सफर तो दिलों का था मुश्किल नहीं पर,
अना में किसी ने पुकारा नहीं था ।
उठी इतनी नफ़रत अचानक दिलों में,
जुदाई बिना अब गुज़ारा नहीं था ।
हमें हमसफ़र अब मिले भी तो कैसे,
मुक़द्दर का कोई भी मारा नहीं था ।
---------हर्ष महाजन 'हर्ष'
122 122 122 122
"तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ ।"
लगा दोस्तों को गँवारा नहीं था,
तभी महफ़िलों में पुकारा नहीं था ।
ज़ुदा तो हुए सब बहे अश्क़ इतने,
मग़र अश्क़ कोई हमारा नहीं था ।
ये चाहा करूँ बेदख़ल उनको ख़ुद से,
मग़र हमको दिल का इशारा नहीं था ।
बहुत मात लहरों को दी हमने लेकिन,
समंदर में कोई, किनारा नहीं था ।
लकीरों में हर पल थे ढूँढा किये हम,
अभी दिल से जिनको उतारा नहीं था ।
सफर तो दिलों का था मुश्किल नहीं पर,
अना में किसी ने पुकारा नहीं था ।
उठी इतनी नफ़रत अचानक दिलों में,
जुदाई बिना अब गुज़ारा नहीं था ।
हमें हमसफ़र अब मिले भी तो कैसे,
मुक़द्दर का कोई भी मारा नहीं था ।
---------हर्ष महाजन 'हर्ष'
122 122 122 122
"तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ ।"
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुशील कुमार जोशी जी ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ अगस्त २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
नमस्कार ।
Deleteमेरी रचना को 'पांच लिंकों का आनंद' पर स्थान देने हेतु शुक्रिया ।
सादर
बेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteवाह....
मेरे ब्लॉग "ग़ज़लयात्रा" पर आपका स्वागत है -
http://ghazalyatra.blogspot.com/?m=1
शुक्रिया वर्ष जी ।
Deleteवाह वाह
ReplyDeleteShukriya vimal kumar shukla ji
Deleteवाह ... क्या बात क्या बात ... जिंदाबाद ...
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया आदरणीय नासवा जी ।
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