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घर किसी के दिया इक, जला कर के देख़,
क्या मिलेगा सकूँ, आज़मा कर के देख़ ।
सरहदों पर हैं बुझते, चिरागों के घर,
जो हक़ीक़त है ख़ुद की बना कर के देख़ ।
देखनी है दिलों में, ख़ुशी अपनों की,
मिट सकें रंजिशें तो, मिटा कर के देख़ ।
दुश्मनी भी है गर, दिल धड़कते मगर,
दिल मिले हों न हों, मुस्करा कर के देख़ ।
इक़ अना के लिए, अजनबी हो गए,
पर ख़ुदा के लिए सर झुका कर के देख़,
कब ख़ुशी कब थे ग़म कब हुए चश्म नम,
यादें अपनी पुरानी, उठा कर के देख़ ।
ज़िन्दगी के लिए, वस्ल की चाह में
अपने दिल में ख़ुदा को बिठा कर के देख़ ।
---हर्ष महाजन 'हर्ष'
212 212 212 212
बहुत बहुत शुक्रिया मनोज कायल जी ।
ReplyDeleteसादर
मीना जी मेरी रचना चर्चा मंच पर रखने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।
ReplyDeleteसादर
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ जून २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
श्वेता सिन्हा जी 'पांच लिंकों का आनंद पर...'
Deleteपर मेरी रचना को शेयर करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।
सादर !!
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय ओंकार जी आपकी आमद और प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत शुक्रिया । उम्मीद करता हूँ आप यूँ ही आते रहेंगे ।
Deleteसादर ।
वाह! वाह!! बहुत उम्दा!!!
ReplyDeleteआदरणीय विश्वमोहन जी ।
Deleteज़र्रानवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया ।
सादर
वाह , ......हर शेर गज़ब भाव लिए हुए
ReplyDeleteदेखनी है दिलों में, ख़ुशी अपनों की,
मिट सकें रंजिशें तो, मिटा कर के देख़ ।
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इक़ अना के लिए, अजनबी हो गए,
पर ख़ुदा के लिए सर झुका कर के देख़,
सटीक सीख ।
आदरनीय संगीता स्वरुप जी आपको ये पसंद आई इसके लिए बहुत बहुत नवाज़िश आपकी । और मेरी नेहनस्त इसी वक्त वसूल हो जाती है जब श्रोताओं तक वही बात पहुंचे जो हम कहना चाहें । आपकी आमद का एक बार फिर शुक्रिया ।
Deleteसादर
"घर किसी के दिया इक, जला कर के देख़,
ReplyDeleteक्या मिलेगा सकूँ, आज़मा कर के देख़।" - सुकून देती पंक्तियाँ ...
आदरणीय सुबोध सिन्हा जी ।
Deleteबहूत बहुत नवाज़िश आपकी ।
आते रहिएगा ।
सादर ।
बहुत लाजवाब लेखन सर
ReplyDeleteआदरणीय प्रीति मिश्रा जी आपकी ये ग़ज़ल पसंदगी जे लिए दिली शुक्रिया ।
Deleteसादर ।
ज़िन्दगी के लिए, वस्ल की चाह में
ReplyDeleteअपने दिल में ख़ुदा को बिठा कर के देख़ ।
बहुत खूब !! एक-एक शेर लाजबाब,सादर नमन आपको
आदरणीय कामिनी सिन्हा जी ।
Deleteबहुत बहुत नवाज़िश आपकी ।
आपको रचना पसंद आई ।
सादर ।
हर शेर अपने आप में परिपूर्ण,सुंदर शानदार रचना।
ReplyDeleteआदरणीय जिज्ञासा जी बहुत बहुत शुकृया6 आपका ।
Deleteसादर
देखनी है दिलों में, ख़ुशी अपनों की,
ReplyDeleteमिट सकें रंजिशें तो, मिटा कर के देख़ ।
वाह!!!
एक से बढ़कर एक शेर..कमाल की गजल।
बेहद शुक्रिया आदरणीय सुधा देवरानी जी ।
Deleteआपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत बहुत धन्यवाद ।
सादर
भावपूर्ण ... अच्छी गज़ल ...
ReplyDeleteआदरणीय दिगम्बर नासवा जी
ReplyDeleteबहुत बहुत नवाज़िश आपकी ।
सादर
कब ख़ुशी कब थे ग़म कब हुए चश्म नम,
ReplyDeleteयादें अपनी पुरानी, उठा कर के देख़ ।
सुन्दर ग़ज़ल...
आदरनीय विजास नैनवाल जी आपका तहे दिल से शुक्रिया ।
Deleteसादर
बेहद खूबसूरत रचना 👌
ReplyDeleteआदरणीय अनुराधा चौहान जी पजीराई का बहुत बहुत शुक्रिया ।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(18-7-21) को "प्रीत की होती सजा कुछ और है" (चर्चा अंक- 4129) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
आदरणीय कामिनी जी इस रचना को चर्चा में शामिल करने लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।
Deleteसादर
बेहतरीन लाजबाव सृजन
ReplyDeleteआपकी आमद औऱ उस पर आपकी होंसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विनभारती जी।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
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