Friday, June 12, 2015

*वो शख्स इस तरह मुझे बदनाम कर गया



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वो शख्स इस तरह मुझे बदनाम कर गया,
दिल में छुपे वो राज़ सर-ए-आम कर गया ।

दिलचस्प बात ये कि उसे इल्म ही नहीं,
नादानियों में हवस मिरे नाम  कर गया ।

रुक्सत हुआ तो दिल में लिए बोझ था बहुत,
वो जाते-जाते दोस्ती नीलाम कर गया ।

नफरत नहीं मुझे मगर आँखों मेंहै नमी,
वो शख्स इस तरह मुझे बे-दाम कर गया ।

रुतबे पे अपने मुझको था क्या-क्या गुमाँ मगर,
इक पल में सारे शहर में तमाम कर गया

हर्ष महाजन

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*एक तरही गजल दिए गये मिसरे पर

Monday, June 1, 2015

मुझसे रुठोगे अगर तुम तो किधर मैं जाऊंगा





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मुझसे रुठोगे अगर तुम तो किधर मैं जाऊँगा,
मैं हूँ आईना जो टूटा तो बिखर मैं जाऊँगा |

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कुछ ख़लिश होगी तुझे ये राह बदलेगा अगर,
दिल में चाहत तो रहेगी अब जिधर मैं जाऊँगा |
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लोग कहते हैं नशा ग़म को भुला देता अबस,
जो भी मयख़ाना मिलेगा फिर उधर मैं जाऊँगा |

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रौशनी देकर शमा ख़ुद को जला देती मगर ,
यूँ वफ़ा सबसे निभाओ तो सिहर मैं जाऊँगा |

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मैंने वादा था किया तुमसे दिलो जाँ बनके यूँ,
तुम भी दे दो गर जिगर अपना निथर मैं जाऊँगा |



हर्ष महाजन 'हर्ष'



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