...
वो शख्स इस तरह मुझे बदनाम कर गया,
दिल में छुपे वो राज़ सर-ए-आम कर गया ।
दिलचस्प बात ये कि उसे इल्म ही नहीं,
नादानियों में हवस मिरे नाम कर गया ।
रुक्सत हुआ तो दिल में लिए बोझ था बहुत,
वो जाते-जाते दोस्ती नीलाम कर गया ।
नफरत नहीं मुझे मगर आँखों मेंहै नमी,
वो शख्स इस तरह मुझे बे-दाम कर गया ।
रुतबे पे अपने मुझको था क्या-क्या गुमाँ मगर,
इक पल में सारे शहर में तमाम कर गया
हर्ष महाजन
221 2121 1221 212
*एक तरही गजल दिए गये मिसरे पर
वो शख्स इस तरह मुझे बदनाम कर गया,
दिल में छुपे वो राज़ सर-ए-आम कर गया ।
दिलचस्प बात ये कि उसे इल्म ही नहीं,
नादानियों में हवस मिरे नाम कर गया ।
रुक्सत हुआ तो दिल में लिए बोझ था बहुत,
वो जाते-जाते दोस्ती नीलाम कर गया ।
नफरत नहीं मुझे मगर आँखों मेंहै नमी,
वो शख्स इस तरह मुझे बे-दाम कर गया ।
रुतबे पे अपने मुझको था क्या-क्या गुमाँ मगर,
इक पल में सारे शहर में तमाम कर गया
हर्ष महाजन
221 2121 1221 212
*एक तरही गजल दिए गये मिसरे पर