ग़ज़ल
यार जब लौट के दर पे मेरे आया होगा,
आख़िरी ज़ोर मुहब्बत ने लगाया होगा ।
याद कर कर के वो तोड़ी हुई क़समें अपनी,
आज अश्कों के समंदर में नहाया होगा ।
ज़िक्र जब मेरी ज़फ़ाओं का किया होगा कहीं,
ख़ुद को उस भीड़ में तन्हा ही तो पाया होगा ।
दर्द अपनी ही अना का भी सहा होगा बहुत,
फिर से जब दिल में नया बीज लगाया होगा ।
जब दिया आस का बुझने लगा होगा उसने,
फिर हवाओं को दुआओं से मनाया होगा ।
----हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1122 1122 22(112)
होके मज़बूर मुझे उसने भुलाया होगा ।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ नवंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
शुकृया श्वेता सिन्हा जी ।
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया सुशील जी
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