Thursday, March 29, 2018

वो मेरा हुस्न औ वफ़ा हूँ मैं

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वो मेरा हुस्न औ वफ़ा हूँ मैं,
उसकी यादों में मुब्तिला हूँ मैं ।

चाँद बदली में छुप रहा लेकिन,
माना उसने कि बा-वफा हूँ मैं।

राहे तूफान में फँसी कश्ती,
ऐसी राहों में सँग चला हूँ मैं ।

दिल से नादाँ हूँ ये कहा उसने,
उसकी चाहत का सिलसिला हूँ मैं

तिरछी नज़रों से देखना उसका,
बुझ के हर बार ही जला हूँ मैं । (गिरह)

ग़ैर रखकर किए थे ज़ुल्म बहुत,
मेरे अपनों का ही छला हूँ मैं।

मेरे हाथों की कुछ लकीरों ने,
लिख दिया मुझको इक बला हूँ मैं 

इतना गिर-गिर के संभला हूँ लेकिन,
अब तलक़ कितनों को ख़ला हूँ मैं 

-------हर्ष महाजन
2122 1212 22/122

Tuesday, March 27, 2018

दुश्मन भी अगर दोस्त हों तो नाज़ क्यूँ न हो

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दुश्मन भी अगर दोस्त हों तो नाज़ क्यूँ न हो,
महफ़िल भी हो ग़ज़लें भी हों फिर साज़ क्यूँ न हो ।

है प्यार अगर जुर्म मुहब्बत क्यूँ बनाई,
गर है खुदा तुझमें तो वो, हमराज़ क्यूँ  न हो ।

रखते हैं नकाबों में अगर राज़-ए-मुहब्बत,
जो हो गई बे-पर्दा तो आवाज़ क्यूँ न हो ।

दुश्मन की कोई चोट न होती है गँवारा,
गर ज़ख्म देगा दोस्त तो नाराज़ क्यूँ न हो ।

संगीत की तरतीब में तालीम बहुत है,
फिर गीत ग़ज़ल में सही अल्फ़ाज़ क्यूँ न हो ।

झेला है उसने इश्क़-ए-समंदर में पसीना,
वो ईंट से रोड़ा बना अंदाज़ क्यूँ न हो ।

इंसान की औलाद हूँ, न हिन्दू मुसलमाँ,
है 'हर्ष' मेरा नाम तो फ़ैयाज़ क्यूँ न हो ।

-----------हर्ष महाजन
221 1221 1221 122

Monday, March 26, 2018

अपनी ही ख़ता पर हो परिशां,जो दिल पे लगा कर रोते हैं

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अपनी ही ख़ता पर हो परिशां,जो दिल पे लगा कर रोते हैं,
वो लोग इमां के सच्चे हैं.............पर चैन से यारो सोते हैं ।

होता है फिदा दिल उनका भी,..धनवान वो मन के होते हैं,
होती है अदाएँ अल्लड़ सी.........दिल भंवरों से ही होते हैं ।

अब घुट ही न जाये दम उनका इन ग़ैर सी दिखती राहों में,
जो कीमती लम्हों को अपने.....फुटपाथ पे सोकर खोते हैं ।

अब छोड़ के कैसे जाएं वो कुछ कीमती रिश्तों की खातिर
जो रोज़ बिताते सड़कों पर.....खुशियों के पल जो बोते हैं ।

बर्बाद किये गुलशन इनके....कुछ वक़्ती गुनाहों ने लेकिन
जब पर्दा उठता कर्मों का......फिर अश्क़  बहाकर धोते हैं ।

हर्ष महाजन 

221 1222 22 221 1222 22

Sunday, March 18, 2018

महफ़िल में नशा प्यार का लाना ही नहीं था



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महफ़िल में नशा प्यार का लाना ही नहीं था ।
तो नग़मा मुहब्बत का सुनाना ही नहीं था ।

रौशन किया जो हक़ से तुझे जिसने था दिल में,
वो तेरी निगाहों का निशाना ही नहीं था

कर-कर के भलाई यहाँ रुस्वाई मिले तो,
ऐसा तुझे किरदार निभाना ही नहीं था ।

है डर तुझे हो जाएगा फिर दिल पे वो क़ाबिज़,
सँग उसके तुझे जश्न मनाना ही नहीं था।

होते हैं अगर कत्ल यहाँ हिन्दू मुसलमाँ, 
मंदिर किसी मस्ज़िद को बनाना ही नही था।

डर डूब के मरने का तेरे दिल में था इतना,
तो इश्क़ के दरिया में नहाना ही नहीं था ।

हर्ष महाजन
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Monday, March 5, 2018

तरही ग़ज़ल :ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया'

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दरमियाँ अब तेरे मेरे क्या रह गया,
फासला तो हुआ पर नशा रह गया ।

उठ चुका तू मुहब्बत में इतना मगर
मैं गिरा इक दफ़ा तो गिरा रह गया ।

ज़ह्र मैं पी गया, बात ये, थी नहीं,
दर्द ये, मौत से क्यों ज़ुदा रह गया ।

मौत से, कह दो अब, झुक न पाऊँगा मैं,
सर झुकाने को बस इक खुदा रह गया ।

टूट कर फिर से बिखरुं, ये हिम्मत न थी,
इस जहाँ को बताता, गिला रह गया ।

खत जो तेरा पढ़ा चश्म-ए-तर हो गए,
बा-वफ़ा था मैं अब बे-वफ़ा रह गया ।

ज़िन्दगी में चलीं आँधियाँ इस कदर,
'ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया'

------------हर्ष महाजन

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