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वो मेरा हुस्न औ वफ़ा हूँ मैं,
उसकी यादों में मुब्तिला हूँ मैं ।
चाँद बदली में छुप रहा लेकिन,
माना उसने कि बा-वफा हूँ मैं।
राहे तूफान में फँसी कश्ती,
ऐसी राहों में सँग चला हूँ मैं ।
दिल से नादाँ हूँ ये कहा उसने,
उसकी चाहत का सिलसिला हूँ मैं
तिरछी नज़रों से देखना उसका,
बुझ के हर बार ही जला हूँ मैं । (गिरह)
ग़ैर रखकर किए थे ज़ुल्म बहुत,
मेरे अपनों का ही छला हूँ मैं।
मेरे हाथों की कुछ लकीरों ने,
लिख दिया मुझको इक बला हूँ मैं
इतना गिर-गिर के संभला हूँ लेकिन,
अब तलक़ कितनों को ख़ला हूँ मैं
-------हर्ष महाजन
2122 1212 22/122