Friday, January 8, 2016

तेरी नज़रों से जो उतरूँ क्यूँ न मर जाऊं अभी

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तेरी नज़रों से जो उतरूँ क्यूँ न मर जाऊं अभी,
ज़िंदगी को यूँ ही रौशान क्यूँ न कर जाऊं अभी |
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ख्वाब बनकर मेरी आँखों में, समा जाए अगर,
ये नसीहत ही सही खुद....मैं सुधर जाऊं अभी |
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ये तमन्ना थी कि मुझको भी रिझाये तू कभी,
गर ये मुमकिन हो समंदर में उतर जाऊं अभी |
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बेवफा दुनिया कहे मुझको...तो परवाह है किसे,
बेवफा तू जो कहे तो.......न बिखर जाऊं अभी |
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ज़ुल्म इतने सहे दुश्मन की, निगाहों से सदा,
तू भी नफरत जो करेगी तो किधर जाऊं अभी |

हर्ष महाजन

तर्ज़ : “रंग और नूर की बारात किसे पेश करूँ”

Thursday, January 7, 2016

जाने अखियों से छलकते अश्क क्यूँ उस याद में



जाने अखियों से छलकते अश्क क्यूँ उस याद में,
जिसने तडपाया मुझे जलती हुई इक आग में |

इतना गम बन आह निकले आज फिर इस ज़हन से,
दिल धड़कता भी रहेगा आस रख फ़रियाद में |

जिस्म से ज्यूँ रूह निकले होता क्या पूछो मुझे,
आरज़ू उसके मिलन की रह गई जब खवाब में |

ज़ुल्फ़ दिल पे यूँ थी काबिज़ भूल कर भूला नहीं,
चल रहा अब तक नशा देखा कभी न शराब में |

जिन हवाओं में कयामत अब तलक देखी न थी,
रूह को छू कर निकलती बन अदा वो शबाब में |

हर्ष महाजन

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