ओस की बूंदें जब हमको मोती लगें,
दूबों पर टिकती हमको वो सोती लगें ।
वो सितारों को खुद में ही खोती लगें ।
मुट्ठियों में कभी बन्द कर लूँ भी गर,
जो लकीरें है हाथों में धोती लगें ।
जब वो पत्तों से छल-छल सी धुन वो करें,
गिर के टप-टप वो सुंदर सी मोती लगें ।
उँगली के पोरों पे कैद जब भी करूँ,
दिल में उठती उमंगों को ढोती लगें ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
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