***
जाम खाली सामने खलते रहे,
ज़ख़्म दिल के दिल में ही पलते रहे l
नीदों से जब हो गए हम बेदखल,
साथ बीते दिन सभी खलते रहे ।
चाँद जब बदली से फिर-फिर झाँकता,
दिल में उठते कुछ भँवर छलते रहे ।
ज़िन्दगी वीरान जब होने लगी,
सपने फिर बन ख़ौफ़ सँग चलते रहे ।
इन लबों पर क्यूँ भला आती हँसी,
आफ़ताब-ए-इश्क़ में जलते रहे ।
-हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 2122 212
'दिल के अरमां आंसुओं में बह गए'
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २८ अगस्त २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
मेरी रचना "पांच लिंकों का आनंद पर" रखने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।
Deleteवाह
ReplyDeleteशुक्रिया सुशील कुमार जोशी जी ।
Deleteवाह !हमेशा की तरह लाजवाब सर।
ReplyDeleteसादर
अनिता जी दिली शुक्रिया ।
Deleteजाम खाली सामने खलते रहे, .. बिहार की शराबबंदी के दर्द को उजागर करती पंक्ति ..:)
ReplyDeleteशुक्रिया सिन्हा जी ।
Deleteलाजवाब
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया ।
ReplyDelete