Monday, August 3, 2020

गर मुहब्बत सहारा नहीं

सुफआना कलाम

***
गर मुहब्बत सहारा नहीं,
दुश्मनी से गुज़ारा नहीं ।

पास अपने बुला लो हमें,
या तो कह दो तुम्हारा नहीं ।

दूरियाँ सह न पायेंगे हम,
तेरे बिन अब गुज़ारा नहीं ।

प्यार मिलता है तकदीर से,
फिर मिलेगा दुबारा नहीं ।

अपने मन पे है कैसा गरूर,
हो सका ये हमारा नहीं ।

'हर्ष' है तो ख़ुशी हर तरफ़,
दूर हुए गर ख़ुदारा नहीं ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'

ख़ुदारा= किसी चीज़ का छोटा सा अंश

बहर:
212 212 212 

*ज़िन्दगी प्यार का गीत है*

9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 04 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. मेरी ग़ज़ल को स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।

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    1. शुक्रिया सुशील जी ।

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    1. बेहद शुक्रिया अनीता जी ।

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  4. बहुत बहुत आभार आदरणीय ।

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    1. शुक्रिया अनीता जी ।
      सादर

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