Sunday, February 27, 2022

न जाने मुझको वो क्यूँ तलखियाँ दिखा के गया

न जाने मुझको वो क्यूँ तलखियाँ दिखा के गया,
था बावफ़ा वो मगर मुझको क्यूँ रुला के गया ।

हुआ यकीन मुझे इस फरेबी दुनियाँ पे अब,
गुलाब बन जो मिला कांटे फिर चुभा के गया ।

शिकायतें थीं मुझे पर गिले भी उसको बहुत,
ख्याल अपनी वो ग़ज़लों में कुछ सुना के गया ।

निभा रहा था वो शिद्दत से दोस्ती को मगर,
जले चरागों को दिल से वो क्यूँ बुझा के गया ।

यकीं था इश्क़ पे जिसको गुमाँ भी मुझपे बहुत,
जुदाई के वो सनम दिन क्यूँ अब थमा के गया ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
1212 1122 1212 22/112

गुनगुनाइए इस धुन पर:-

◆न मुँह छुपा के जियो औऱ न सर झुका के जियो ।

Friday, February 25, 2022

दगा दिया था अपनों ने यही मुझे मलाल था

दगा दिया था अपनों ने यही मुझे मलाल था ।
कसूर भी था अपनों की ज़मीर का कमाल था ।

यूँ हसरतों की आग जिनकी रूह तक निगल गई,
ये वलवलों का जोर था या उनका ही बवाल था ।

मैं जिस के वास्ते भी लिख रहा था वो इबारतें,
वो जिस तरह जुदा हुआ था वो भी इक सवाल था ।

चुना था जिसने हमसफ़र उसी ने छोड़ा ये सफर,
न यार ही रहा यूँ हसरतों का इंतकाल था ।

नसीब में नहीं था जो उसी का रंजो गम था ये,
किसे पता ये बे-वफा का रंग बे-मिसाल था ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
1212 1212 1212 1212 

वलवलों=उमंग
बवाल= झंझट
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Wednesday, February 23, 2022

लफ्ज़ दे जाते हैं जो ज़ख़्म दिखाएँ कैसे,

लफ्ज़ दे जाते हैं जो ज़ख़्म दिखाएँ कैसे,
दर्द सीने में जो उठता है बताएँ कैसे ।

वो जो कहता है कि लफ़्ज़ों में है जन्नत लेकिन,
लफ्ज़ मरहम है बता फिर वो लगाएँ कैसे ।

मीठी धड़कन को लिए पास से गुजरेगा कोई,
उससे उठती जो खनक दिल को सुनाएँ कैसे ।

जिसकी चोटों ने मुझे चैन से रहने न दिया,
उसपे इल्ज़ाम मुहब्बत का बनाएँ कैसे ।

इश्क़ करते भी नहीं औऱ किनारा भी नहीं,
दिल की महफ़िल में बता उसको बिठायें कैसे ।

उसकी जुल्फें ही गुनाहों का सबब है लेकिन,
ज़ह्र से अपने कसक उसकी मिटायें कैसे ।

ये भी सोचा था कि दिलबर का नजारा कर लूँ,
पर बता उसकी मुहब्बत को जगाएँ कैसे ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1122 1122 22(112)

इसी बह्र पर गीत गुनगुना कर देखें
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●दिल की आवाज भी सुन दिल के फसाने पे न जा 
● ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात 
●कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया 
●चुनरी सँभाल गोरी उड़ी चली जाए रे 
●कोई हमदम न रहा कोई सहारा न रहा 
●पाँव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी 
●तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं
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Tuesday, February 22, 2022

उठ के महफ़िल से चला उसने मनाया भी नहीं


उठ के महफ़िल से चला उसने मनाया भी नहीं,
कोई शिकवा या गिला मुझको बताया भी नहीं ।

ज़िन्दगी में था सुना है वो बहुत खुश भी मगर,
उसने कोई दीप मुहब्बत का जलाया भी नहीं ।

किस तरह चेहरे पे चेहरा था टिकाया उसने,
दिल पे कितने हैं ज़ख़्म उसके दिखाया भी नहीं ।

मैनें खोई थी मुहब्बत यूँ ही किसकी खातिर,
जिसने वादा तो कभी अपना निभाया भी नहीं ।

उसके अहसास को छूने की थी जुर्रत मैनें,
उसकी हसरत थी कि नफ़रत ये जताया भी नहीं ।

आज दिल पे जो निगाहों से दिया उसने ज़ख़्म,
मुझपे इल्जाम कोई उसने लगाया भी नही ।

आजकल मुझको बहारें भी खिजां लगती हैं,
'हर्ष' ने खुद भी कभी मुझको सताया भी नहीं ।


हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1122 1122 22(112)
◆दिल की आवाज भी सुन दिल के फसाने पे न जा ।
◆रंग और नूर की बारात कुसी पेश करूँ
◆तेरी तस्वीर को सीने पे लगा रक्खा है ।


Saturday, February 19, 2022

जाने अखियों से छलकते अश्क क्यूँ उस याद में

 



                          ग़ज़ल

जाने अखियों से छलकते अश्क क्यूँ उस याद में,
जिसने तडपाया मुझे जलती हुई इक आग में |

बेसबब ग़म आह बन निकलेगी उसके लहजे से,
दिल धड़कता पर रहेगा आस रख फ़रियाद में |

जिस्म से ज्यूँ रूह निकले होता क्या पूछो मुझे,
आरज़ू उसके मिलन की ज्यूँ रहे जब ख़्वाब में |

ज़ुल्फ़ दिल पे यूँ है काबिज़ भूल कर भूला नहीं,
चल रहा जिसका नशा देखो अभी भी शराब में |

जिन हवाओं में कयामत अब तलक देखी न थी,
वो अदा इन आँखों ने देखी थी उनके शबाब में ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'


Monday, February 7, 2022

रूठी है ज़िन्दगी तो मुक़द्दर बदल गए

 

                    ग़ज़ल

रूठी है ज़िन्दगी तो मुक़द्दर बदल गए ,
दुनियाँ के भी हों जैसे ये तेवर बदल गए ।

दीवार-ओ-दर में खुश था जहाँ तुम थे साथ पर,
कब नींव के न जाने ये पत्थर बदल गए ।

जिनके भी साये में रहे हम उम्र भर जहाँ,
अब क्यूँ सभी शज़र वो वहॉं पर बदल गए ।

रक्खा किये थे जिनको यूँ शानों पे हर जगह,
दिल के करीब शख्स वो अंदर बदल गए ।

रिश्तों में रक्खा बैर सदा उसने इस तरह,
नदियों में बंट के फिर वो समंदर बदल गए ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2121 1221 212


●मिलती है ज़िन्दगी में मुहब्बत कभी कभी
●‎पहले‬ तो अपने दिल की रजा जान जाइए |


Saturday, February 5, 2022

पतझड़ हुई तो टिक न सका शाख पे लेकिन

पतझड़ हुई तो टिक न सका शाख पे लेकिन,
कमज़ोर नहीं था पत्ता वो बुनियाद से लेकिन ।

आँखों से गिरा अश्क़ जो दामन में खो गया,
वो मिट तो गया जान-ए-वफ़ा शान पे लेकिन ।

महका रहा था रोज शज़र को था मगर वो,
पतझड़ हुई तो छोड़ा उसी पेड़ ने लेकिन ।

क्या सोच के था चुन लिया यूँ भीड़ में मुझको,
पत्ते तो हरे लाखों थे उस पेड़ के लेकिन ।

जब डोलियों में बैठ चलें बेटियाँ अपनी,
घर-घर तो रहे पर रहे वीरानी में लेकिन ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
221  1221  1221 122

इस बहर पर कुछ गीत देखिये  और इनमें किसी भी धुन पर मेरी ग़ज़ल गुनगुनाइयेगा

● दुनिया में जब आए हैं तो जीना ही पड़ेगा
● ये शाम की तन्हाईयाँ ऐसे में तेरा गम

Wednesday, February 2, 2022

हवा आज कुछ ठीक होगी तो जाने

 

               ग़ज़ल

हवा आज कुछ ठीक होगी तो जाने,
बहुत बदले हैं हमने अपने ठिकाने ।

यूँ ख़्वाबों की अपने तो परवाज होगी,
लगे थे जो सदमात उनको भुलाने ।

सदाकत भी भूले रफ़ाक़त भी भूले,
सभी भूलें हैं हम पुराने जमाने ।

कभी हादसों में हुआ इश्क़ लेकिन,
मिलेंगे तड़प कर गले अब लगाने ।

कभी होगी पतझड़ कभी फिर बहारें,
मुहब्बत में रिश्ते सभी हैं निभाने ।

फ़क़त हम अज़ीयत में जीये अभी तक,
चलो अब उजालों अँधेरा छुपाने ।

हुई शादमानी मिला हमसफ़र जो,
मुहब्बत चली अब हमें आजमाने ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
122 122 122 122
★★★
सदमात= गम ही गम
परवाज़=उड़ान
सदाकत=सच्चाई
रफाकत=मेलजोल
अज़ीयत= तकलीफें
शादमानी= खुशी, प्रसन्नता
★★★★★