ग़ज़ल
जाने अखियों से छलकते अश्क क्यूँ उस याद में,
जिसने तडपाया मुझे जलती हुई इक आग में |
बेसबब ग़म आह बन निकलेगी उसके लहजे से,
दिल धड़कता पर रहेगा आस रख फ़रियाद में |
जिस्म से ज्यूँ रूह निकले होता क्या पूछो मुझे,
आरज़ू उसके मिलन की ज्यूँ रहे जब ख़्वाब में |
ज़ुल्फ़ दिल पे यूँ है काबिज़ भूल कर भूला नहीं,
चल रहा जिसका नशा देखो अभी भी शराब में |
जिन हवाओं में कयामत अब तलक देखी न थी,
वो अदा इन आँखों ने देखी थी उनके शबाब में ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
वाह , क्या बात ।
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल ।
बहुत बहुत धन्यवाद संगीत जी आपका ।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-2-22) को "प्यार मैं ही, मैं करूं"(चर्चा अंक 4348)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार
Deleteवाह ! बेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteशानदार गज़ल
ReplyDeleteबहुत खूब
बधाई
आग्रह है मेरे भी ब्लॉग में सम्मलित हों
ReplyDeleteजी
Deleteउम्दा सृजन।
ReplyDeleteहृदय स्पर्शी ग़ज़ल।
हार्दिक आभार वीणा जी ।
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