ग़ज़ल
हवा आज कुछ ठीक होगी तो जाने,
बहुत बदले हैं हमने अपने ठिकाने ।
यूँ ख़्वाबों की अपने तो परवाज होगी,
लगे थे जो सदमात उनको भुलाने ।
सदाकत भी भूले रफ़ाक़त भी भूले,
सभी भूलें हैं हम पुराने जमाने ।
कभी हादसों में हुआ इश्क़ लेकिन,
मिलेंगे तड़प कर गले अब लगाने ।
कभी होगी पतझड़ कभी फिर बहारें,
मुहब्बत में रिश्ते सभी हैं निभाने ।
फ़क़त हम अज़ीयत में जीये अभी तक,
चलो अब उजालों अँधेरा छुपाने ।
हुई शादमानी मिला हमसफ़र जो,
मुहब्बत चली अब हमें आजमाने ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
122 122 122 122
★★★
सदमात= गम ही गम
परवाज़=उड़ान
सदाकत=सच्चाई
रफाकत=मेलजोल
अज़ीयत= तकलीफें
शादमानी= खुशी, प्रसन्नता
★★★★★
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ४ फरवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (०४ -०२ -२०२२ ) को
'कह दो कि इन्द्रियों पर वश नहीं चलता'(चर्चा अंक -४३३१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हर शेर उम्दा बहुत सुंदर सराहनीय गजल ।
ReplyDeleteसुंदर समीक्षा हेतु बहुत बहुत शुक्रिया ।
Deleteज़िन्दगी भर ये आज़माइश चलती रहती है । बेहतरीन ग़ज़ल ।👌👌👌👌
ReplyDeleteआपकी आमद और समीक्षा
Deleteके लिए धन्यवाद !!
वाह! बहुत खूब
ReplyDeleteशुकृया
Deleteअत्यंत सुंदर
ReplyDeleteआभार5
Deleteउम्दा ग़ज़ल।
ReplyDeleteज़र्रानावाज़ी का शुक्रिया
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