Tuesday, June 22, 2021

घर किसी के दिया इक, जला कर के देख़

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घर किसी के दिया इक, जला कर के देख़,

क्या मिलेगा सकूँ,     आज़मा कर के देख़ ।


सरहदों पर हैं बुझते,        चिरागों के घर,

जो हक़ीक़त है ख़ुद की बना कर के देख़ ।


देखनी है दिलों में,     ख़ुशी अपनों की,

मिट सकें रंजिशें तो, मिटा कर के देख़ ।


दुश्मनी भी है गर,   दिल धड़कते  मगर,

दिल मिले हों न हों, मुस्करा कर के देख़ ।


इक़ अना के लिए,      अजनबी हो गए,

पर ख़ुदा के लिए सर झुका कर के देख़,


कब ख़ुशी कब थे ग़म कब हुए चश्म नम,

यादें अपनी पुरानी,       उठा कर के देख़ ।


ज़िन्दगी के लिए,          वस्ल की चाह में 

अपने दिल में ख़ुदा को बिठा कर के देख़ ।


---हर्ष महाजन 'हर्ष'

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30 comments:

  1. बहुत बहुत शुक्रिया मनोज कायल जी ।

    सादर

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  2. मीना जी मेरी रचना चर्चा मंच पर रखने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।

    सादर

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ जून २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. श्वेता सिन्हा जी 'पांच लिंकों का आनंद पर...'
      पर मेरी रचना को शेयर करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।

      सादर !!

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  4. बहुत ही सुन्दर

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    1. आदरणीय ओंकार जी आपकी आमद और प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत शुक्रिया । उम्मीद करता हूँ आप यूँ ही आते रहेंगे ।
      सादर ।

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  5. वाह! वाह!! बहुत उम्दा!!!

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    1. आदरणीय विश्वमोहन जी ।
      ज़र्रानवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया ।

      सादर

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  6. वाह , ......हर शेर गज़ब भाव लिए हुए

    देखनी है दिलों में, ख़ुशी अपनों की,

    मिट सकें रंजिशें तो, मिटा कर के देख़ ।
    ********

    इक़ अना के लिए, अजनबी हो गए,

    पर ख़ुदा के लिए सर झुका कर के देख़,

    सटीक सीख ।

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    1. आदरनीय संगीता स्वरुप जी आपको ये पसंद आई इसके लिए बहुत बहुत नवाज़िश आपकी । और मेरी नेहनस्त इसी वक्त वसूल हो जाती है जब श्रोताओं तक वही बात पहुंचे जो हम कहना चाहें । आपकी आमद का एक बार फिर शुक्रिया ।

      सादर

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  7. "घर किसी के दिया इक, जला कर के देख़,
    क्या मिलेगा सकूँ, आज़मा कर के देख़।" - सुकून देती पंक्तियाँ ...

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    1. आदरणीय सुबोध सिन्हा जी ।
      बहूत बहुत नवाज़िश आपकी ।
      आते रहिएगा ।
      सादर ।

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  8. बहुत लाजवाब लेखन सर

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    1. आदरणीय प्रीति मिश्रा जी आपकी ये ग़ज़ल पसंदगी जे लिए दिली शुक्रिया ।

      सादर ।

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  9. ज़िन्दगी के लिए, वस्ल की चाह में

    अपने दिल में ख़ुदा को बिठा कर के देख़ ।

    बहुत खूब !! एक-एक शेर लाजबाब,सादर नमन आपको

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    1. आदरणीय कामिनी सिन्हा जी ।
      बहुत बहुत नवाज़िश आपकी ।
      आपको रचना पसंद आई ।
      सादर ।

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  10. हर शेर अपने आप में परिपूर्ण,सुंदर शानदार रचना।

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    1. आदरणीय जिज्ञासा जी बहुत बहुत शुकृया6 आपका ।
      सादर

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  11. देखनी है दिलों में, ख़ुशी अपनों की,

    मिट सकें रंजिशें तो, मिटा कर के देख़ ।

    वाह!!!
    एक से बढ़कर एक शेर..कमाल की गजल।

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    1. बेहद शुक्रिया आदरणीय सुधा देवरानी जी ।
      आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत बहुत धन्यवाद ।

      सादर

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  12. भावपूर्ण ... अच्छी गज़ल ...

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  13. आदरणीय दिगम्बर नासवा जी
    बहुत बहुत नवाज़िश आपकी ।

    सादर

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  14. कब ख़ुशी कब थे ग़म कब हुए चश्म नम,
    यादें अपनी पुरानी, उठा कर के देख़ ।

    सुन्दर ग़ज़ल...

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    1. आदरनीय विजास नैनवाल जी आपका तहे दिल से शुक्रिया ।
      सादर

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  15. बेहद खूबसूरत रचना 👌

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    1. आदरणीय अनुराधा चौहान जी पजीराई का बहुत बहुत शुक्रिया ।

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  16. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(18-7-21) को "प्रीत की होती सजा कुछ और है" (चर्चा अंक- 4129) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. आदरणीय कामिनी जी इस रचना को चर्चा में शामिल करने लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।
      सादर

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  17. बेहतरीन लाजबाव सृजन

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    1. आपकी आमद औऱ उस पर आपकी होंसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विनभारती जी।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

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