...
मेरे दिल का कोई नवाब आ गया,
पुराने ख़तों का हिसाब आ गया ।
जिसे अब तलक मैं था समझा नहीं,
वो ले के पुरानी किताब आ गया ।
मुहब्बत ने पाई बुलंदी मगर,
क्युँ बहती नदी में सैलाब आ गया ।
यूँ बिखरा हूँ मैं फूल बनकर अभी,
सुहाना मुझे याद ख़्वाब आ गया।
है अपना कोई दुश्मनों में यहाँ,
लगा कांटों में इक गुलाब आ गया ।
-हर्ष महाजन 'हर्ष'
122 122 122 12
तुम्हारी नज़र क्यूँ ख़फ़ा हो गयी ।
मेरे दिल का कोई नवाब आ गया,
पुराने ख़तों का हिसाब आ गया ।
जिसे अब तलक मैं था समझा नहीं,
वो ले के पुरानी किताब आ गया ।
मुहब्बत ने पाई बुलंदी मगर,
क्युँ बहती नदी में सैलाब आ गया ।
यूँ बिखरा हूँ मैं फूल बनकर अभी,
सुहाना मुझे याद ख़्वाब आ गया।
है अपना कोई दुश्मनों में यहाँ,
लगा कांटों में इक गुलाब आ गया ।
-हर्ष महाजन 'हर्ष'
122 122 122 12
तुम्हारी नज़र क्यूँ ख़फ़ा हो गयी ।
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