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इश्क़ दरिया है पार कौन करे,
बे-वजह ये शिकार कौन करे ।
ज़ुल्म इतना है ऐसी जन्नत में,
ज़िन्द अपनी बेकार कौन करे ।
इतना देता है हमको वो मौला,
ग़म में खुद को शुमार कौन करे ।
इतने भँवरे हैं इस सफ़र में यहाँ,
देखें दिल का शिकार कौन करे ।**
मेरा ईमान ही तो दौलत है,
इश्क़ इस पर सवार कौन करे ।
आजकल छू रही फ़लक को अना,
अब ये ख़िदमत भी यार कौन करे ।
है मुहब्बत मुझे ख़ुदा से मग़र,
फ़ानी दुनियाँ से प्यार कौन करे ।
---हर्ष महाजन 'हर्ष'
बहर:-
2122 1212 22(112)
लाजवाब
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया जोशी जी ।
Deleteसादर ।