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सज़ा बिन अदालत सुनाना तुम्हारा,
यूँ पलकों में फिर मुस्कराना तुम्हारा ।
बताऊँ मैं तुझको ये कैसे हक़ीक़त,
लगा दिल पे ऐसा निशाना तुम्हारा ।
समाए थे दिल के दरीचों में तुम पर,
मिला दुश्मनी का ज़माना तुम्हारा ।
कहाँ कब थी तूने लगाई ये महफ़िल,
ये कब तूने बदला ठिकाना तुम्हारा ।
सुलगती महब्बत में बैठे थे दिल में,
ये देखा है शोले बुझाना तुम्हारा ।
लुटा जिस तरह मैं लुटोगे युँ तुम भी,
मैं देखूँगा यूँ तिलमिलाना तुम्हारा ।
मुअत्तल किया क्यूँ तेरी रहमतों से,
दिया दर्द और आज़माना तुम्हारा ।
मेरे घर के चिलमन अभी तक सजे हैं,
जो पूछेंगे मुझसे न आना तुम्हारा ।
चलो जो हुआ उसको तकसीम कर लें,
मेरी थी मुहब्बत फ़साना तुम्हारा ।
हुआ अब मैं रुक्सत तेरी दिल्लगी से,
ख़ुदाई तुम्हारी, ज़माना तुम्हारा ।**
--हर्ष महाजन 'हर्ष'
122 122 122 122
मुझे प्यार की ज़िंदगी देने वाले
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