Wednesday, June 17, 2020

जो कली ख़िलनी थी मसल डाली

***

जो कली ख़िलनी थी मसल डाली,
फिर वो ज़ालिम ने घर ख़बर डाली ।

जो चमन इतना खूबसूरत था,
 उसने दहशत से बद-नज़र डाली ।

जब मिली ख़ाक में ही इज़्ज़त तो,
उसने कुछ ऐसी बात कर डाली ।

इतनी उजड़ी फ़ज़ा थी गुलशन की,
फिर न खलकत ने भी क़दर डाली ।

अब ज़माने से माँगे है वो सिला,
कितनी भोली नज़र किधर डाली ।

इतनी लाचारगी वो मुफ़लिस की,
फिर दुआ मरने की थी कर डाली ।

मुख़्तसर हो गया युँ उसका सफ़र,
उसने सब ख़त में हो निडर डाली ।

हुक्मरां कैसे कोई बदलेगा,
जिनकी दौलत से जेब भर डाली ।

वक़्त बदला तो 'हर्ष' बदलेगा,
जो सियासत के घर नज़र डाली ।

----हर्ष महाजन 'हर्ष'

बहर:-
2122 1212 22(112)
"याद में तेरी जाग-जाग के हम
रात भर करवटें बदलते रहे ।"

No comments:

Post a Comment